देहरादून। राष्ट्रीय नदी गंगा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही नमामि गंगे परियोजना को ‘अर्थ गंगा’ जैसे सतत विकास मॉडल में परिवर्तित करने की मुहिम को लेकर केंद्र सरकार सक्रिय हो गई है। इसके तहत देशभर में गंगा की सहायक नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाने के साथ ही गंगा किनारे बसे करीब 4500 गांवों की आर्थिकी संवारने को कदम उठाए जाएंगे। इसमें हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन (हेस्को) तकनीकी सहयोग देगा। इस सिलसिले में जल्द ही राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और हेस्को के मध्य समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत वर्ष दिसंबर में हुई राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक में अर्थ गंगा का सुझाव दिया था। इस प्रोजेक्ट को अब मूर्त रूप दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत गंगा की सहायक नदियों के संरक्षण-संवर्धन के साथ ही इनके जलसमेट क्षेत्रों (कैचमेंट एरिया) के उपचार के अलावा गंगा किनारे बसे गांवों को भी बेहतर लाभ पहुंचाने का इरादा है। यानी पारिस्थितिकी और आर्थिकी दोनों को ही सशक्त बनाया जाना है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन अब हेस्को से हाथ मिलाने जा रहा है।
असल में हेस्को उत्तराखंड समेत विभिन्न राज्यों में नदी, जंगल, ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के साथ ही गांवों के विकास के मद्देनजर ग्रामीण तकनीकी को लेकर कार्य कर रहा है। पिछले वर्ष अप्रैल में मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने देहरादून के शुक्लापुर पहुंचकर हेस्को की तकनीकी का अवलोकन किया था। साथ ही संकेत दिए थे कि नमामि गंगे परियोजना के तहत पारिस्थितिकी और आर्थिकी संवारने के लिए हेस्को की तकनीकी का उपयोग किया जाएगा।
स्को के संस्थापक पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी के अनुसार अर्थ गंगा की मुहिम को तेजी से बढ़ाने के लिए एनएमसीजी और हेस्को के मध्य होने वाले समझौते का मसौदा तैयार हो चुका है। जल्द ही इस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। इसके बाद हेस्को की ओर से गंगा किनारे के गांवों की आर्थिकी सशक्त बनाने के मद्देनजर संदर्भव्यक्ति (रिसोर्स पर्सन) तैयार किए जाएंगे। ये ग्राम्य विकास से जुड़ी हेस्को की तकनीकी ग्रामीणों से साझा करने के साथ ही इन्हें धरातल पर उतारने में मदद करेंगे। इसके अलावा गंगा की सहायक नदियों के जलसमेट क्षेत्रों में वर्षा जल संरक्षण समेत अन्य कदम उठाए जाएंगे।