पटना/ औरंगाबाद। आज मतदान की प्रक्रिया काफी हद तक शांतिपूर्ण और स्वच्छ हो गई है। मगर बिहार में दो दशक पूर्व ऐसा समय भी था जब चुनावों में हिंसा का बोलबाला था। बूथ लूट के साथ गोलीबारी की घटनाएं खूब होती थीं।
दबंगों ने कहा महिलाओं का वोट हम ही डालते
औरंगाबाद के सेवानिवृत्त शिक्षक ललन सिंह चुनाव आते ही ऐसे ही एक वाकये को याद करने लग जाते हैं। वे कहते हैं कि तब मतदान कराना बहुत ही कठिन काम हुआ करता था। एक बार वे मजिस्ट्रेट बनकर नवीनगर में चुनाव कराने गए थे। सबकुछ सुचारू चल रहा था। मतदान के लिए लोग कतार में खड़े थे। दबे-कुचले और पिछड़ों को की कौन कहे, महिलाओं को भी वोट देने नहीं दिया जा रहा था। कुछ दबंगों ने साफ कहा कि महिलाएं हमारे यहां की वोट नहीं करतीं। हम खुद ही उनका वोट डाल देते हैं। अभी यह संवाद हो ही रहा था कि पास ही बरगद के पेड़ के पीछे से बमबारी शुरू हो गई। यह देख वहां मौजूद पोलिंग पार्टी और अफसर कांपने लगे। पुलिसवालों ने किसी तरह बम चलाने वाले एक अपराधी को पकड़ा।
800 में से मात्र 280-290 लोगों ने किया मतदान
घटना के बाद तत्कालीन डीएम और एसपी पहुंचे। सुरक्षा के मद्देनजर अपराह्न तीन बजे ही पोलिंग बंद करा दी गई। वहां कुल 800 मतदाता थे लेकिन केवल 280-290 लोगों ने ही मतदान किया।
मतदान जरूर करें
वे कहते हैं, अब परिवेश बदल गया है। कलस्टर बन जाने के कारण मतदान कराने वाली टीम को काफी सुविधा हो रही है। पहले सीधे बूथ पर ही जाना पड़ता था, इसलिए एक दिन पहले जाकर रात में किसी तरह गुजारा करना पड़ता था। नतीजा, आसपास के प्रभावी लोग दबाव बनाते थे। अब कलस्टर पर ठहरने के कारण बूथ पर सीधे सुबह 7:00 बजे पोलिंग पार्टी पहुंच जाती है। इस कारण कई तरह की असुविधा अब नहीं होती। अब मतदान में हिंसा भी न के बराबर होती है। ऐसे में लोगों को बढ़-चढ़कर मतदान की प्रक्रिया में हिस्सा लेना चाहिए।