Home Breaking News भगवान् शंकर जैसे दरिद्र देवता प्रसन्न हो भी जाएं तो आखिर क्या दे सकते हैं ?
Breaking Newsधर्म-दर्शन

भगवान् शंकर जैसे दरिद्र देवता प्रसन्न हो भी जाएं तो आखिर क्या दे सकते हैं ?

Share
Share

क्या-क्या आभूषण – श्रृंगार रखते हैं वे आपने पास , कैसे वे रहते हैं ?

“महोक्षः खट्वांगं परशुरजिनं भस्म फणिनः।
कपालं चेतीयत्तव वरद तन्त्रोपकरणम्।।
सुरास्तां तामृद्धिं दधति तु भवद्भूप्रणिहितां।
न हि स्वात्मारामं विषयमृगतृष्णा भ्रमयति।।”
【शिवमहिम्नस्तोत्र ८】

हे वरद ! यद्यपि आप परिपूर्ण परमेश्वर हैं, तथापि महोक्ष (बूढ़ा बैल),
खट्वाङ्ग (खाट का अवयव= शस्त्रविशेष, कापालिकों में प्रसिद्ध है),
परशु (टङ्क= पाषाण तोड़ने का साधन या कुठार),
अजिन (चर्म),
भस्म,
फणिन: (अनेक सर्प) और कपाल (मनुष्य के सिर की खोपरी) , ये सात वस्तु आपके तंत्रोपकरण (कुटुंबधारण के साधन) हैं ।
यह तो हुआ उनका श्रृंगार , उनकी रहनी ।

अब “वे प्रसन्न होंगे तो क्या दे सकते हैं ?”

अब “वे प्रसन्न होंगे तो क्या दे सकते हैं ?” इसे श्रीमधुसूदन सरस्वती महाभाग ने लग्भग पांच सौ वर्ष पहले “शिवमहिम्न-स्तोत्र” पर लिखी विद्वत्तापूर्ण अपनी संस्कृत टीका में उपरोक्त श्लोक की ही व्याख्या में प्रतिपादन किया है , उसका अनुवाद मात्र करता हूँ ===

“देवता लोग तो आपकी सेवा से आपको संतुष्ट करके आपके भ्रूविक्षेपमात्र (भौंहों के इशारे भर) से दी गई उस असाधारणी संपत्ति को धारण कर रहे हैं ।

आप तो अतिदरिद्र हैं, किन्तु आपके भक्त-देवता आपके प्रसाद से समृद्ध (धन-धान्य-ऐश्वर्यादि में आपसे भी अधिक सम्पन्न) हैं —– इस विरोध को ‘तु’ शब्द प्रकट कर रहा है ; क्योंकि जो औरों को धनवान बनाता है, वह उनकी अपेक्षा अधिक धनवान होता है —- यह बात लोक में प्रसिद्ध ही है ।

तो फिर आप ऐसे होकर भी स्वयं महोक्षादि परिवार क्यों रखते हैं ?

तो फिर आप ऐसे होकर भी स्वयं महोक्षादि परिवार क्यों रखते हैं ? तो उत्तर है ~~

See also  'यूपी की राजनीति में अब केवल मुस्लिम और यादव का फैक्टर नहीं चलेगा' - असदुद्दीन ओवैसी

जो पुरुष चिदानन्दघन स्वात्मा में रमण करते हैं , उनको विषय-मृगतृष्णा भ्रमा (मोह में डाल) नहीं सकती , जैसे सूर्य की किरणरूप मृगतृष्णा , जल से विरुद्ध स्वभाव वाली होकर भी भ्रान्ति से जलमयी सी भासती है , ऐसे ही रूप-रस-गन्ध-स्पर्श आदि विषय दुःखरूप होकर भी भ्रांति से सुखरूप होकर भासते हैं ——- यह रूपक का अर्थ है ।

जब जीव भी स्वात्माराम होकर विषयों में आसक्त नहीं होता , तब नित्यमुक्त – ईश्वर विषयों में आसक्त नहीं होता है —– इस बात के कहने की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है— यह अभिप्राय है ।

इसलिए वृषभारूढा (बैल पर चढ़ी हुई) ,
खट्वांग-परशु-फणि-कपाल आदि से आलंकृता , चतुर्भुजा ,
चर्मवसना (गजचर्म के वस्त्र वाली) ,
भस्माङ्गरागा (चिता का भस्म है अंगराग जिसका, ऐसी) अनेक प्रकार के भूषणों वाली महादेवजी की मूर्ति की (गुरूपदेश द्वारा जानकर) स्तुति आदि से आराधना करनी चाहिए —– यह अर्थ है ।

वस्तुतः तो ‘पुरूष-प्रधान (माया)-महद्-अहंकार-तन्मात्रा-इन्द्रिय-भूत’ —- यह सातों महोक्ष आदि रूप से गुप्त होकर भगवान् महादेवजी की उपासना कर रहे हैं —— यह बात शैवशास्त्र में प्रसिद्ध है ।

जगत् ही जिसका कुटुम्ब है , ऐसे उस परमात्मा का सातों तत्त्व ही उपकरण हैं .

अजेश स्वरूप ब्रह्मचारी की लेखनी से।                                                                                            सावन विशेषांक

Share
Related Articles
Breaking Newsराष्ट्रीय

भारतीय नौसेना ने कराची पोर्ट को किया तबाह, पाकिस्तान पर अब भारत का समुद्री अटैक

नई दिल्ली: पाकिस्तान ने जम्मू और अन्य तीन राज्यों में किए गए हमलों...

Breaking Newsराष्ट्रीय

‘चाइनीज माल’ HQ-9 के चक्कर में फेल हुआ पाकिस्तान का एयर डिफेंस! भारत ने चुन-चुनकर गिराईं मिसाइलें

नई दिल्ली। गुरुवार की सुबह भारत के हारोप ड्रोन ने लाहौर में पाकिस्तान...

Breaking Newsमनोरंजनसिनेमा

Operation Sindoor पर बॉलीवुड में जंग, टाइटल रजिस्टर करने के लिए 15 फिल्म स्टूडियो में मची होड़

हैदराबाद: पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत के चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर...