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यूपी में PFI की बढ़ी सक्रियता, कानून-व्यवस्था के लिए इनके मंसूबे फिर बन सकते चुनौती

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण के कारण लगे लॉकडाउन में ढील के साथ ही कट्टरपंथी विचारधारा को मानने वाले संगठनों की सक्रियता भी बढ़ गई है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर के लिए निर्माण के लिए भूमि पूजन होने के बाद जिस तरह समाज में सांप्रदायिक जहर घोलने की काशिश की गई, उसके बाद उत्तर प्रदेश में एक बार फिर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) खुफिया एजेंसियों के रडार पर आ गया है। इस बार पीएफआई के राजनीतिक संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के अलावा ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी) की गतिविधियों पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है। अनलॉक के हर चरण के साथ इनकी सक्रियता बढ़ती जा रही है। आने वाले दिनों में इनकी बढ़ती गतिविधियां कानून-व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती होंगी, इससे अधिकारी इनकार नहीं करते।

अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की प्रकिया तेज होने के साथ ही जहर घोलने का काम भी रफ्तार पकड़ेगा, इसका उदाहरण भूमि पूजन के बाद ही सामने आ चुका है। लखनऊ और बहराइच में पीएफआई/एसडीपीआई के सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) एक बार फिर सक्रिय हुआ है। सोशल मीडिया पर इनकी हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। सूत्रों का कहना है कि पीएफआई के सक्रिय सदस्यों के कुछ अन्य संगठनों के सदस्यों के बीच रिश्तों की पड़ताल भी लगातार की जा रही है।

सोशल मीडिया के जरिए जहर घोलने वालों पर निगाह : उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का कहना है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद सोशल मीडिया पर नए लोगों को जोड़ने का काम तेजी से चल रहा है। ताकि किसी मौके पर लोगों को सड़क पर एकसाथ जुटाया जा सके। बेंगलुरू में जिस तरह एक फेसबुक पोस्ट के बाद हिंसा भड़की, उसे देखकर सूबे में पीएफआई/एसडीपीआई व अन्य संगठनों की निगरानी बढ़ाई गई है। एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार का कहना है कि सोशल मीडिया के जरिए जहर घोलने वाले सभी संगठनों व लोगों पर कड़ी निगाह रखने के साथ ही पूरी सतर्कता बरती जा रही है।

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हवाला के जरिए फंडिंग की आशंका : नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार पीएफआई और उससे जुड़े कुछ अन्य संगठन पुलिस की निगाह में चढ़े थे। हिंसक प्रदर्शनों के बाद फरवरी माह में लखनऊ में पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष वसीम अहमद समेत कई सक्रिय सदस्य पकड़े गए थे। पुलिस ने 13 जिलों में पीएफआई के करीब 133 सदस्यों को पकड़ा था। हालांकि इनमें अधिकांश अब जमानत पर बाहर आ चुके हैं। इन सब पर नजर रखी जा रही है। एक अधिकारी के अनुसार तब एटीएस ने पीएफआई सदस्यों के कई बैंक खातों का खंगाला था, लेकिन उसमें फंडिंग के साक्ष्य नहीं मिले थे। सीएए के विरोध में हिंसक प्रदर्शनों में हवाला के जरिए फंडिंग की बात को नकारा भी नहीं जा सकता, जिसकी छानबीन चल रही है। यही वजह है कि दिसंबर 2019 में पीएफआई को प्रतिबंधित किए जाने की सिफारिश केंद्र सरकार से की गई थी। अयोध्या में श्रीराम मंदिर भूमि पूजन के बाद सामने आई गतविधियों को देखते हुए इसकी पैरवी तेज की गई है।

पांच सालों में जमाई जड़ें : पीएफआई खुद को एक गैर सरकारी संगठन बताता है। इस संगठन पर देश में कई गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप है। पीएफआई की नीव केरल में रखी गई थी। खुफिया रिपोर्ट के अनुसार 22 नवंबर 2006 को केरल में पीएफआई का गठन हुआ था। पीएफआई ने अपने महिला और स्टूडेंट फ्रंट भी बनाए हैं। प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के कई सक्रिय सदस्यों के पीएफआई में शामिल होने व इसकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के तथ्य भी सामने आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश में शामली, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी व अलीगढ़ में पीएफआई की सक्रियता सबसे अधिक रही है। खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पिछले करीब पांच सालों में इस संगठन ने यूपी में अपनी ताकत बढ़ाई है। सूबे में हिंसा की साजिश करीब एक साल पहले से रची जा रही थी। लखनऊ समेत कई जिलों में पहले आपित्तजनक पोस्टर चस्पा किए जा चुके थे।

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योगी सरकार ने की थी पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश : नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। हिंसा की साजिश में शामिल होने के आरोपी कट्टरपंथी संगठन के खिलाफ कई सुबूत मिले थे। राज्यभर में हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसक वारदात को अंजाम देने में इस संगठन की संलिप्तता का पता चला था। खुफिया रिपोर्ट में सामने आया था कि प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में पीएफआई की भी बड़ी भूमिका थी। लगभग 20 सदस्यों को गिरफ्तार भी किया गया था। यूपी के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर पीएफआई पर बैन लगाने की सिफारिश की थी। डीजीपी की ओर से यह पत्र 20 दिसंबर, 2019 को गृह मंत्रालय को भेजा गया थी।

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