नई दिल्ली। भारतीय जनमानस में राम गहरे-बहुत गहरे समाए आराध्य ही नहीं, हर रूप में सामने आने वाले आदर्श व्यक्ति भी हैं। वह जन-जन के ऐसे प्रेरणा पुरुष हैं जिन्होंने कर्तव्य निर्वहन का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जो भारत ही नहीं, सारी दुनिया और समस्त मानवता के लिए अनुकरणीय है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कर्तव्य पालन की जो सीख दी वह आज भी राह दिखाती है। इस सीख से यह राष्ट्र हर दिन-हर क्षण प्रेरित होता है और इसीलिए वह उनकी जन्मस्थली पर उनके नाम के मंदिर की स्थापना को लेकर पुलकित है।
राम मंदिर निर्माण की सदियों पुरानी प्रतीक्षा पूरी होना त्रेता युग के राम की कलियुग में एक और विजय है। इसी के साथ विजय है धैर्य की, भरोसे की और आदर्शों पर चलते रहने की जिजीविषा की। चूंकि यह अधर्म पर धर्म की विजय भी है इसलिए श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का भूमिपूजन जन-जन को आनंदित करने वाला एक उत्सव है। अयोध्या में राम के नाम का मंदिर बनना उनकी महिमा का गान भी है और देश की सांस्कृतिक चेतना को बल देने वाले प्रेरणास्नोत का प्रकाशमान होना भी। यह अवसर भारतीयता के उद्घोष के साथ ही इस संकल्प का पुनर्पाठ भी है कि हम भारत के लोग राम की जय करते और उनकी गाथा गाते कर्तव्य पथ पर चलते रहेंगे- बिना थके, बिना रुके।
ऐसे समझे राम का अर्थ
शासन
रामराज्य शासन की आदर्श संकल्पना है। एक ऐसी राज व्यवस्था जहां न कोई दुखी हो और न ही अभावों से ग्रस्त हो। जहां जनजन भय मुक्त हो और चर्तुिदक शांति हो। जहां का शासन सभी के लिए मंगलकारी हो।
मर्यादा
नेतृत्व
सबको साथ लेकर चलने के मामले में राम अद्वितीय हैं। वनवासियों समेत समाज के सभी वंचित-शोषित वर्गों को आदर देना उनका स्वभाव है। उनमें आत्मविश्वास पैदाकर उनके सहयोग को वह अपनी शक्ति बना लेते हैं।
शौर्य
साधारण जन समुदाय में समुद्र पार जाने का साहस जगाकर और परम पराक्रमी रावण की दिग्विजयी सेना को परास्त कर राम ने स्थापित किया कि केवल सैन्यबल शौर्य का परिचायक नहीं होता। वह अपने शौर्य के बल पर हर चुनौती पर विजय पा लेते हैं।
लोकतंत्र
राम इस सीमा तक लोकतांत्रिक हैं कि एक अवसर पर कहते हैं-यदि अनुमति हो तो कुछ कहूं और यदि मेरे कहे में कुछ अनुचित देखें तो मुझे टोक दें, मैं सुधार कर लूंगा। वह अपने राज्य में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की राय के आधार पर फैसला लेने में हिचकते नहीं।