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लमही स्मारक की सुरक्षा पर चोरों का खतरा, वाराणसी में मुंशी प्रेमचंद के आवास से छह पंखे गायब

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वाराणसी। धर्म संस्‍कृति और आध्‍यात्‍म के साथ ही साहित्‍य की भी नगरी भी काशी रही है। मगर धरोहरों के संरक्षण को तो छोड़‍िए चोरों के खिलाफ भी कार्रवाई से परहेज के हालात हैं। देर रात मुंशी जी के लमही से पंखा चोरी होने के बाद भी पुलिस दोपहर तक शांत बैठी रही। इस मामले में कोई भी कार्रवाई होते न देखकर स्‍थानीय लोगों में भी संशय की स्थिति बनी हुई है।

गरीब- गुरबा की आवाज को अपनी कलम से धार देने वाले महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के आवास से रविवार देर रात सभी छह पंखे चोरी हो गए। इसकी जानकारी सोमवार सुबह हुई जब मुंशी प्रेमचंद स्मारक की देखरेख करने वाले सुरेशचंद्र दुबे सफाई करने पहुंचे। आवास का ताला खोलते ही उन्हें जमीन पर कुछ पेंच गिरे दिखे। नजर जब पंखे की ओर गई तो वे अवाक रह गए। दूसरे कमरों में गए त उनमें लगे पंखे भी गायब थे।

उन्होंने आसपास के लोगों को जानकारी देने के साथ 112 नंबर डायल कर फोन पर पुलिस को सूचित किया। इस पर पुलिस कर्मी पहुंचे जरूर, लेकिन मौका मुआयना कर वापस चले गए। पूरे मामले की लिखित सूचना लालपुर पुलिस चौकी पर भी दी गई है। माना जा रहा है चोरों ने कुएं की दीवार की ओर से चढ़कर मुंशी जी के आंगन में प्रवेश किया। खाली घर में  चोरों को कुछ न मिला तो सभी पंखे ही खोल लिए गए। पंखे पिछले साल संस्कृति विभाग की ओर से लगवाए गए थे।

मुंशी प्रेमचंद की स्मृतियों की बेकदरी की कहानी नई नहीं है। वर्ष 2005 में मुंशी जी की 125 जयंती पर शासन-सत्ता ने झोली खोली तो आवास व स्मारक का जीर्णोद्धार व साज-संवार की गई। इसकी जिम्मेदारी विकास प्राधिकरण ने निभाई लेकिन उसके बाद इस खास साहित्यिक विरासत की किसी को सुध न आई। इस तरह की विरासतों को सहेजने के लिए जिम्मेदार संस्कृति विभाग ने भी सिर्फ प्रेमचंद जयंती पर ही सक्रियता दिखाई। बेपरवाही की हद यह कि इस साहित्यिक धरोहर का वारिस महकमा कौन, अब तक किसी को नहीं पता है। ऐसे में रखरखाव का भी कोई इंतजाम नहीं है। स्थानीय निवासी सुरेश दुबे साहित्यिक रुचि के कारण यह जिम्मेदारी संभालते हैं।

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तीन साल पहले बिजली विभाग ने कर दी थी बत्ती गुल 

दरअसल, तीन साल पहले जयंती से ठीक दो दिन पूर्व जब बिजली विभाग ने मुंशीजी के आवास व स्मारक का कनेक्शन अवैध बताते हुए बत्ती गुल कर दी तब वारिस महकमे की तलाश शुरू हुई। इस पर वीडीए, संस्कृति विभाग व ग्राम समाज तक ने हाथ खड़े कर दिए। कागजों की पड़ताल में पता चला कि मकान अब तक आबादी में दर्ज है। पिछले साल संस्कृति विभाग ने स्मारक अपने अधीन लेने के लिए फाइल बढ़ाने का दावा जरूर किया लेकिन रिजल्ट अब तक सामने नहीं आया है। घटना के संबंध में क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र प्रमुख यशवंत सिंह राठौर को कई बार फोन और मैसेज किया गया लेकिन जवाब नहीं मिला।

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