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लीवर के लिए बेहद खराब हैं ये आदतें, जानें इसे स्वस्थ रखने के उपाय

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इन दिनों कोविड से बचाव के लिए लोग लंग्स केयर से संबंधित तमाम एक्सरसाइज़ और खानपान पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। जो ज़रूरी भी है, पर इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अत्यधिक मात्रा में काढ़ा पीने से लोगों को न केवल पाचन-तंत्र संबंधी समस्याएं परेशान कर रही हैं, बल्कि इससे उनके लिवर की कार्य-क्षमता भी प्रभावित होती है। कहने का आशय यह है कि कोविड से बचाव के लिए श्वसन-तंत्र को मज़बूत बनाना ज़रूरी है, पर इसके साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए पूर्णत: स्वस्थ रहने के लिए हमें शरीर के सभी अंगों का ध्यान रखना चाहिए। आजकल हार्ट और किडनी की तरह लोगों में लिवर संबंधी बीमारियां भी तेज़ी से बढ़ रही हैं। इससे जुड़ी समस्या लिवर एब्सेस के बारे में जानने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि शरीर का यह महत्वपूर्ण अंग काम कैसे करता है?

मर्ज को जानें

आजकल लोग लिवर संबंधी जिन बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, लिवर एब्सेस उनमें सबसे प्रमुख समस्या है। यह एक खास तरह का ज़ख्म होता है, जिसमें पस बनने लगता है। अगर सही समय पर उपचार न कराया जाए तो यह ज़ख़्म फूट सकता है और इससे निकलने वाली गंदगी रक्त प्रवाह के ज़रिए शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचकर उन्हें संक्रमित कर सकती है।

क्या है वजह

– अगर जैविक कारणों की बात की जाए तो इसके लिए आमतौर पर प्रोटोजोआ प्रजाति के परजीवी कीटाणु को जि़म्मेदार माना जाता है। ऐसी समस्या को एमेबिक लिवर एब्सेस कहा जाता है। बैक्टीरिया या वायरस की वजह से भी यह बीमारी हो सकती है।

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– खानपान में स्वच्छता की कमी भी लिवर को संक्रमित कर सकती है।

– इसके अलावा, सिगरेट और एल्कोहॉल का अधिक सेवन करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, जिससे लिवर डैमेज हो सकता है।

– कमज़ोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में इसकी आशंका बढ़ जाती है।

– टीबी होने पर उसके वायरस लिवर को भी प्रभावित करते हैं, जो अंतत: इस बीमारी का कारण बन जाते हैं।

– डायबिटीज़ के मरीज़ों का इम्यून सिस्टम कमज़ोर होता है, जिससे उनके लिवर में संक्रमण हो सकता है।

प्रमुख लक्षण

पाचन संबंधी समस्याएं, जैसे पेट में दर्द, कब्ज़ या लूज़ मोशन और वोमिटिंग

हलका बुखार

भोजन में अरुचि

थकान और बेचैनी

वज़न का घटना

जांच एवं उपचार

अगर कोई समस्या न हो तो भी 40 साल की उम्र के बाद सभी को साल में एक बार लिवर फंक्शन टेस्ट और फाइब्रोस्कैन ज़रूर करवा लेना चाहिए।

अगर लिवर में कोई ज़ख्म हो तो शुरुआत में मरीज़ को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं, जिससे 15-20 दिनों के भीतर वह घाव सूख जाता है। अगर तकलीफ ज्य़ादा बढ़ जाए तो खास तरह की नली या सीरिंज द्वारा उसके पस को बाहर निकाला जाता है। अगर ज़्यादा गंभीर स्थिति हो तो सर्जरी के ज़रिये लिवर के क्षतिग्रस्त भाग को काटकर अलग कर दिया जाता है लेकिन कुछ समय के बाद यह हिस्सा अपने आप दोबारा विकसित हो जाता है। इसके बाद मरीज़ को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं।

हां, अगर किसी को डायबिटीज़ हो तो सर्जरी के बाद उसे दोबारा स्वस्थ होने में थोड़ा अधिक समय लगता है। लिवर एब्सेस के मरीज़ उपचार के बाद पूर्णत: स्वस्थ हो जाते हैं लेकिन बाद में अल्ट्रासाउंड कराने पर रिपोर्ट में उनके लिवर पर घाव के निशान नज़र आते हैं, जिसे देखकर लोगों को ऐसा लगता है कि बीमारी के लक्षण दोबारा पनप रहे हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं होता। फिर भी एहतियात के तौर पर साल में एक बार लिवर फंक्शन टेस्ट करवा लेना चाहिए। अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगे तो लिवर संबंधी समस्याएं परेशान नहीं करेंगी।

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