इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट मामले को लेकर अपने एक अहम फैसले में कहा है कि एससी-एसटी एक्ट के तहत कोर्ट के आदेश या निर्णय के खिलाफ छह माह बाद भी हाईकोर्ट में अपील दायर की जा सकती है। कोर्ट के इस बड़े फैसले से पीड़ित और मुलजिम दोनों को ही केस के आदेश या फैसले के छह माह बीत जाने के बाद भी अपील का अब मौका मिलेगा। कोर्ट ने 26 जनवरी 2016 को एससीएसटी एक्ट में किए गए संशोधन के बाद एक्ट के तहत कोर्ट के आदेश या निर्णय के खिलाफ छह माह बीत जाने के बाद अपील न करने के प्रावधान को समाप्त कर दिया है। हाईकोर्ट ने एससीएसटी एक्ट की धारा 14 ए(3) उपखंड 2 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एससी-एसटी के मुकदमों की सुनवाई के लिए आठ हफ्ते में एससीएसटी एक्ट के तहत विशेष अदालत गठित करने का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने ये आदेश एससीएसटी एक्ट की धारा 14 की वैधता के मामले में दिया है। इससे पहले एससी-एसटी एक्ट के तहत किसी केस में आदेश या निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में 90 दिन में अपील हो सकती थी। इसके बाद अगले 90 दिन की अपील दाखिले में देरी पर कोर्ट ही देरी माफ कर सकती थी। लेकिन कुल 180 दिन के बाद कोर्ट में अपील नहीं की जा सकती थी। हाईकोर्ट के अधिवक्ता विष्णु बिहारी तिवारी ने एक जनहित याचिका दाखिल कर एक्ट की धारा 14 ए को चुनौती दी थी। उन्होंने याचिका में आरोप लगाया था कि एक्ट की यह धारा ब्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है। जिस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों चीफ जस्टिस डी बी भोसले, जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस यशवंत वर्मा की पूर्ण पीठ ने बहस पूरी होने के बाद 20 सितम्बर को फैसला सुरक्षित कर लिया था। हाईकोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट की इस धारा को असंवैधानिक घोषित करने से पीड़ित और मुलजिम दोनों को ही केस के आदेश या फैसले के छह माह बीत जाने के बाद भी अपील का अब मौका मिलेगा। यानि पीड़ित और मुलजिम दोनों को विशेष कानून के तहत आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की छूट होगी। हांलाकि हाईकोर्ट को याचिका पुनरीक्षण या धारा 482 के तहत हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होगा।