नई दिल्ली। रानी साहिबी नदी के किनारे बसा सैकड़ों वर्ष पुराना हस्तसाल गांव..भले ही आज यह गांव शहरी रंग-ढंग में ढल गया हो, लेकिन इसका नाता मुगल काल और पृथ्वीराज चौहान के समय से है। मुगल बादशाह शाहजहां यहां अक्सर शिकार के लिए आया करते थे। हालांकि इस गांव को शाहजहां ने बसाना या पृथ्वीराज चौहान ने इस बात को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं है। कुछ लोग गांव को चौहान नरेश पृथ्वीराज चौहान के जमाने का बताते हैं तो कुछ मुगल काल का मानते हैं।
ग्रामीण अतुल त्यागी कहते हैं कि गांव का इतिहास चाहे जितना भी पुराना हो, लेकिन एक बात को लेकर सारे ग्रामीण एकमत हैं कि जो पूर्वज यहां आकर बसे उनका मूल निवास हरियाणा के जिंद स्थित चीड़ी चांदी है। सबसे पहले रायभान चीड़ी चांदी से दिल्ली आए। उनके साथ तीन बेटे हंसराज, बालमुकुंद और केशवराम भी थे। सबसे बड़े बेटे हंसराज ने जिस जगह पर डेरा डाला वही इलाका आगे चलकर हस्तसाल गांव बना। मंझले बेटे बाल मुकुंद ने जहां डेरा डाला वह जगह बुढेला गांव बना। तीसरे बेटे केशवराम जहां गए वह केशोपुर बना। यही वजह है कि ये तीनों गांव आज भी भाईचारे के संबंध से जुड़े हुए हैं। भाईबंदी के कारण इन गांवों में आपस में शादी-ब्याह नहीं होता है।
शाहजहां के काल की मीनापर
महरौली स्थित कुतुब मीनार की तरह इस गांव में भी एक मीनार है, जो बिल्कुल कुतुब मीनार की तरह दिखती है। ऐतिहासिक तौर पर इस मीनार को शाहजहां के काल का बताया जाता है। लेकिन, कई ग्रामीण इसे पृथ्वीराज चौहान के काल का बताते हैं। उनका कहना है कि पृथ्वीराज चौहान की बेटी यहां बराबर आती थीं। इस मीनार पर चढ़कर वह आस पास का नजारा देखा करती थीं। गांव में एक प्राचीन हवेली भी है जो अब जीर्णशीर्ण अवस्था में है। इसे बारादरी कहा जाता है। यहां आकर पृथ्वीराज चौहान की बेटी विश्राम किया करती थीं, लेकिन जो लोग इसे मुगल कालीन मानते हैं उनका कहना है कि मीनार की उपरी मंजिल पर खड़े होकर शाहजहां शिकार की तलाश किया करते थे। उनके सैनिक यहां खड़े होकर शाही हाथियों पर नजर रखते थे। तब इस इलाके में बड़े-बड़े तालाब भी हुआ करते थे। इन तालाबों में शाही हाथियों का झुंड घंटों मस्ती करता था।
सैनिक इन हाथियों पर दूर से भी नजर रख सकें इसके लिए यह मीनार बनाई गई। मीनार के पास से ही साहिबी नदी गुजरती थी। आज का नजफगढ़ नाला कभी साहिबी नदी तंत्र का एक हिस्सा हुआ करता था। हस्तसाल गांव के पास साहिबी का डूब क्षेत्र था। गांव में कई जोहड़ (तालाब) भी थे, जिसके आस पास चौड़ी पत्तीवाले पटेरा घास उगा करते थे। हाथी इसे बड़े चाव से खाते थे। वक्त के थपेड़ों को सहती यह मीनार आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती नजर आती है। आलम यह है कि पांच मंजिल वाले मीनार में अब केवल ढाई मंजिल ही शेष है। लाल पत्थर से बने मीनार की दीवारों पर महीन नक्काशी की गई है। ऊपर जाने अंदर से सीढ़ियां बनी हुई हैं। यहां आने वाले लोगों को लगता है मानों वे कुतुब मीनार की जुड़वां प्रतिकृति देख रहे हों।
वक्त के साथ बदल गया कारोबार
कभी हरियाली और खेत-खलिहानों से लहलहाता हस्तसाल गांव अब पूरी तरह शहरीकृत हो चुका है। उत्तम नगर, हस्तसाल कालोनी, शनिबाजार, शिव विहार सहित अनेक काॅलोनियां गांव की जमीन पर ही बसी हुई हैं। पहले गांव के लोगों की आय का मुख्य जरिया खेतीबाड़ी हुआ करता था, अब आय का मुख्य श्रोत किराया व कारोबार है।