धनबाद। आज से ठीक एक वर्ष पहले 22 मार्च 2020 के दिन जब आंखें खुली तो लोगों ने माहौल में एक अजीब खामोशी महसूस की। वह खामोशी जो हर आने वाले तूफान से पहले महसूस की जाती है। वह खामोशी जो लंबी अवधि के लिए उनकी साथी बनने वाली थी। यह खामोशी एक अनजानी बीमारी के प्रति लोगों में भय तो दर्शा ही रही थी उससे लड़ने का जज्बा और एकजुटता की गवाह भी थी। किसी ने इसे तोड़ने की कोशिश भी नहीं की। बल्कि खुद को घर में कैद कर इसमें सहयोग ही किया। दरअसल यह दिन था जनता कर्फ्यू का। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगने वाले लॉकडाउन का पूर्वाभ्यास था यह।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले ही लोगों से कोरोना वायरस से सतर्क रहने की अपील कर दी थी। बताया था कि दुनिया इससे कैसे जूझ रही है। कैसे विश्व भर के चिकित्सक, चिकित्साकर्मी, सफाई कर्मी व सुरक्षाकर्मी विपरीत परिस्थितियों में इससे जूझ रहे हैं। इनकी हौसला अफजाई कितनी जरूरी है। इन फ्रंट लाइन वर्कर्स की हौसला अफजाई के लिए उन्होंने लोगों से दिन भर स्वयं की ओर से कर्फ्यू का पालन करने और शाम को थाली बजाकर कोरोना फाईटर्स की हिम्मत बढ़ाने की अपील भी की।
देश भर की तरह धनबाद के लोगों ने भी उनकी अपील का शत प्रतिशत पालन किया। शहर की मुख्य सड़कों, चौराहों की क्या कहा जाए, तंग गलियां भी सन्नाटे का चादर ओढ़े रहीं। शाम होते ही बड़े अपार्टमेंट की बालकनी से लेकर आम घरों और झुग्गी-झोपड़ियों तक से ताली-थाली पीटने की आवाज ने मानो जयघोष कर दिया कि हम पूरी तरह गंभीर नागरिक हैं और किसी भी खतरे से निपटने को तैयार हैं। अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह जागरूक भी हैं। कुछ ने तो अति उत्साह में घंटा-घड़ियाल और शंख भी फूंका। गलियों से आ रही ताली-थाली की आवाज के साथ शहर की मुख्य सड़कों से गुजर रही पुलिस टीम की सायरन की आवाज ने भी संगत करते हुए हर हाल में उनकी हिफाजत का वचन दिया।
मतभेद रहा मनभेद नहीं
शुरुआत में पीएम की इस अपील पर राजनीतिक दलों ने कटाक्ष भी किए लेकिन जनता कर्फ्यू के दिन सभी संगठनों, समुदायों व राजनीतिक दलों के नेताओं ने कोरोना से जंग के प्रति एकजुटता दिखाई। भाजपा के साथ कांग्रेस व अन्य नेताओं ने भी ताली-थाली पीटकर फ्रंटलाइन वर्कर्स या कहें कि कोरोना फाइटर्स की हौसला अफजाई की। उन फाइटर्स की हौसला अफजाई जिन्होंने फाइट अभी शुरू भी नहीं किया था लेकिन अपने प्रति लोगों के जज्बे को देख वे गदगद् हुए और अगले एक वर्ष तक पूरी तन्मयता से बिना डरे, हिचके अपने कर्तव्य को पूरा किया।
ऐसी बंदी इससे पहले बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद लगे कर्फ्यू में ही देखी थी। वह भी इसलिए कि कर्फ्यू लगा दिया गया था। यह तो जनता कर्फ्यू था। आम लोग स्वयं से इतनी एकजुटता दिखाएंगे उम्मीद न थी।
हरिलाल साव, पुटकी
बाबूलाल जी के पुत्र के निधन के बाद भी बंदी हुई थी जिसे आम लोगों ने स्वत: स्फूर्त सफल बनाया था। हालांकि वह भी ऐसी बंदी नहीं थी जैसी जनता कर्फ्यू में दिखी। इससे साफ दिखा कि संकट के समय हं कितने गंभीर बन सकते हैं।
मनोज पांडेय, बिनोद नगर
इस बंदी की वजह से पूरे देश को काेरोना की गंभीरता का पता चला। इसने बीमारी के खतरे और उससे जूझने का जज्बा जगाया। लोग उद्वेलित भी नहीं हुए। यह जीवन भर के लिए यादगार रहेगा। लोगों को स्वयं से खतरे से जूझने को तैयार करने का यह अभिनव प्रयोग था।
हिमांशु श्रीवास्तव, होम्योपैथ चिकित्सक
न भूतो न भविष्यति। 22 मार्च 2020 को आहूत जनता कर्फ्यू ने कोरोना फाइटर्स का काम काफी आसान कर दिया। जब वे आम लोगों को सचेत करने गए तो वे पहले से तैयार थे। इसके बाद कर्फ्यू को लोगों ने अवश्यंभावी माना और सहर्ष कुबूल किया। परेशानियों को झेलने की मन:स्थिति सभी बना चुके थे।