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गीता व बबीता फौगाट की थीं ममेरी बहन, कुश्‍ती मुकाबले में हारीं तो रितिका फौगाट ने दे दी जान

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चरखी दादरी। दादरी जिले के गांव बलाली में द्रोणाचार्य अवार्डी पहलवान महावीर फौगाट द्वारा संचालित कुश्ती एकेडमी में प्रशिक्षण ले रही 17 वर्षीय पहलवान ने फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।  महिला पहलवान रितिका दंगल गर्ल गीता व बबीता फौगाट की ममेरी बहन थी। बताया जा रहा है कि रितिका भरतपुर में हुए कुश्ती के फाइनल मुकाबले में हार गई थी। इसी बात से आहत होकर उसने यह कदम उठाया है। पुलिस ने दादरी के सरकारी अस्पताल में शव का पोस्टमार्टम करवाकर स्वजनों को सौंपदिया।

राजस्थान के झुंझुनू जिले के गांव जैतपुर निवासी रितिका अपने फूफा महावीर फौगाट द्वारा संचालित एकेडमी में पिछले पांच वर्षों से प्रशिक्षण ले रही थी। उसने बीती 12 से 14 मार्च तक राजस्थान के भरतपुर में आयोजित राज्यस्तरीय सब जूनियर कुश्ती स्पर्धा में भाग लिया था। वहां पर वह फाइनल मुकाबले में हार गई थी। जिसके कारण वह सदमे में थी। इसी के चलते रितिका ने 15 मार्च की देर रात को गांव बलाली में महावीर फौगाट के घर पर कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

घटना की जानकारी पाकर झोझू कलां थाना पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने स्वजनों के बयान के आधार पर इत्तफाकिया मौत की कार्रवाई करते हुए दादरी के सरकारी अस्पताल में शव का पोस्टमार्टम करवाया। उसके शव का अंतिम संस्कार उसके पैतृक गांव राजस्थान के झुंझुनू जिले के गांव जैतपुर में मंगलवार को किया गया। द्रोणाचार्य अवार्डी पहलवान महावीर फौगाट के अनुसार भरतपुर से आते समय रास्ते में भी रितिका ने कुछ नहीं खाया था।

हार को हार न मानें : डा. पूनम

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मनोविज्ञानी डा. पूनम महला ने दैनिक जागरण से बात करते हुए कहा कि हार-जीत खेल के दो पहलू हैं। खेल में हमेशा एक पक्ष जीतता है तथा दूसरा पक्ष हारता है। लेकिन किसी प्रतियोगिता में हारने पर हताश होकर आत्महत्या जैसा कदम उठाना कोई समाधान नहीं है। बल्कि उस हार को सकारात्मक तौर पर लेते हुए अगले मुकाबलों के लिए खुद को और अधिक मजबूती से तैयार करना चाहिए।

डा. पूनम महला का कहना है कि आत्महत्या करना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। मौजूदा दौर प्रतिस्पर्धा का दौर है। इस दौर में लोग खासकर युवा व किशोर पहले से ही मानसिक दबाव महसूस करते हैं। जिससे उनके प्रदर्शन पर असर पड़ता है। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों पर बेहतर प्रदर्शन करने, अव्वल आने का दबाव न बनाएं।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में अधिकतर अभिभावक बच्चों पर अपने सपनों को थोपते हैं और यह बहुत गलत है। डा. पूनम महला ने अभिभावकों से अपील करते हुए कहा कि वे अपने बच्चों को समझाएं कि किसी भी प्रतियोगिता में स्थान न आने पर जिंदगी खत्म नहीं हो जाती। हारना कोई बुरी बात नहीं हैं। हमें हार को हार नहीं मानना चाहिए। बल्कि उससे एक अनुभव लेते हुए भविष्य में और अधिक मेहनत कर अपनी कमियों को दूर करना चाहिए।

बच्चों पर न बनाएं अनावश्यक दबाव : राजकुमार

अर्जुन अवार्डी व एशियन गोल्ड मेडलिस्ट बाक्सर राजकुमार सांगवान ने कहा कि वर्तमान समय में अभिभावकों द्वारा अपने बच्चे की काबिलियत जाने बिना ही उस पर हमेशा अव्वल रहने का दबाव बनाया जाता है। अभिभावकों की एक ही इच्छा रहती है कि उनका बच्चा किसी भी प्रतियोगिता में जीतना चाहिए। इसके चलते वे अपने बच्चों को कई बार ऐसा लक्ष्य दे देते हैं, जिसे वो पूरा नहीं कर सकता।

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उन्‍होंने कहा कि इस स्थिति में अभिभावकों की इच्छा के अनुसार प्रदर्शन न करने पर बच्चे मानसिक दबाव में आ जाते हैं। ऐसे में अभिभावकों को बच्चों पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं बनाना चाहिए। यदि अभिभावक बच्चों पर किसी प्रकार का दबाव नहीं बनाएंगे तो बच्चे और बेहतर प्रदर्शन करेंगे।

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