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चीन ने कहा, तालिबान के साथ “दोस्ताना रिश्ते” के लिए तैयार

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बीजिंग। दुनिया भर के लोग अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा किए जा रहे कृत्य को देखकर आहत हैं। तालिबान द्वारा रविवार को काबुल पर कब्जा कर लिया गया और फिर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी भी देश छोड़कर तजाखिस्‍तान चले गए हैं। इसके बाद वहां खौफ का माहौल है और अफगान में रह रहे लोग काबुल छोड़ने का हर एक प्रयास कर रहे हैं। तालिबान के डर से लोग काबुल एयरपोर्ट पर जमा हो गए हैं। देश में तालिबान द्वारा किए जा रहे अत्याचार के बीच चीन की ओर से एक बड़ा बयान सामने आया है। चीन का कहना है कि वह तालिबान के साथ ‘मैत्रीपूर्ण संबंध’ चाहता है।

चीन ने सोमवार को कहा कि वह तालिबान के साथ ‘दोस्ताना संबंध’ विकसित करने के लिए तैयार है। बता दें कि इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा अफगानिस्तान पर नियंत्रण के बाद चीन के लिए भी परेशानी खड़ी हो सकती है, ऐसे में इस दोस्ती के पीछे भी चीन की कोई चाल ना हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।

विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने संवाददाताओं से कहा, ‘चीन स्वतंत्र रूप से अपने फैसले लेने में समर्थ होने के अफगान लोगों के अधिकार का सम्मान करता है और अफगानिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध विकसित करना जारी रखना चाहता है।’ बता दें कि चीन अफगानिस्तान के साथ 76 किलोमीटर (47 मील) की एक ऊबड़-खाबड़ सीमा साझा करता है।…और बीजिंग को लंबे समय से डर है कि शिनजियांग में मुस्लिम अल्पसंख्यक उइगर अलगाववादियों के लिए अफगानिस्तान एक मंच बन सकता है।

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हालांकि, तालिबान के एक शीर्ष स्तर के प्रतिनिधिमंडल ने पिछले महीने तियानजिन में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की, जिसमें वादा किया गया कि अफगानिस्तान को आतंकवादियों के बेस के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। बदले में, चीन ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक सहायता और निवेश की पेशकश की थी।

बता दें कि शिनजियांग अफगानिस्तान के साथ एक संकरी सीमा साझा करता है और बीजिंग अपनी सीमा पर हिंसा फैलाने के डर से चिंतित है। चीन को लगता है कि तालिबान अफगानिस्तान पर नियंत्रण ले लेता है तो चीन में क्षेत्रों में हलचल तेज हो जाएगी। शिनजियांग में चीन ने 10 लाख से अधिक उइगरों और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों के सदस्यों को आतंकवाद और चरमपंथ के खिलाफ सैनिक कार्यवाही करते हुए हिरासत में लिया है।

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