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चीन भारत को अड़चन मानता है अपना वर्चस्व स्थापित करने की राह में

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आज विश्व के फलक पर महाशक्ति के रूप में उभरा चीन कभी हमारे मातहत था। महाभारत के अनुसार वर्तमान असम राज्य तब कामरूप कहा जाता था। वह हिमालय के पूर्वी छोर पर स्थित था। इसकी राजधानी प्राग्जयोतिषपुर थी। इसमें किरात और चीन का बड़ा भाग शामिल था। उस समय यहां के राजा भगदत्त थे। उनकी सेना में चीनी सैनिकों का उल्लेख मिलता है। समय के प्रवाह से हालात बदल गए। अंग्रेजी राज इसका एक अहम पड़ाव बना। दोनों देशों के बीच हदबंदी भी अंग्रेजों द्वारा ही की गई थी।

नेहरू और चाउ-एन-लाई के बीच मैत्री : बहरहाल अंग्रेजों की विदाई के साथ अंग्रेजी राज भी गया। आजाद भारत की कमान जवाहरलाल नेहरू ने संभाली। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में चीन से मित्रता की पींगें बढ़ाई गईं। नेहरू और चाउ-एन-लाई के बीच मैत्री और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का पंचशील सिद्धांत स्वीकार किया गया। नेहरू ने भारत और चीन की मित्रता को भौगोलिक और ऐतिहासिक आवश्यकता बताया। उनसे यहीं भूल हो गई। चीन धोखेबाज निकला। दोस्ती को दरकिनार करते हुए उसने 1962 में भारत पर हमला बोल दिया। हमारी सैनिक तैयारी शून्य थी। विश्व दो ध्रुवीय था।

रूसी अखबार ‘प्रावदा’ ने चीन को भाई और भारत को मित्र कहा : अमेरिका और रूस शक्ति के दो केंद्र थे। नेहरू का झुकाव रूस की तरफ था। उसने भी साम्यवादी चीन की तरफदारी की। सरकारी नियंत्रण वाले रूसी अखबार ‘प्रावदा’ और ‘इजवेस्तिया’ ने चीन को भाई और भारत को मित्र कहा। चीन हमें तब तक पीछे धकेलता रहा, जब तक उसने एकतरफा युद्ध विराम नहीं कर दिया। उसमें गंवाई हमारी जमीन अब भी चीन के कब्जे में है।

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विश्व की प्रथम शक्ति बनने के मोड़ पर चीन : उसके बाद भारत कभी इस स्थिति में न आ पाया कि अपनी जमीन वापस ले सके। बातों की पहल खूब हुई। भारत की सैन्य शक्ति बढ़ी तो अवश्य, मगर चीन और भी ताकतवर होता गया। अब वह विश्व की प्रथम शक्ति बनने के मोड़ पर है। इसी मद में चूर बीते दिनों उसने फिर से आंखें तरेरी हैं। वह लद्दाख में कुछ आगे बढ़ा है। अरुणाचल पर पहले से दावा ठोंकता आया है। वह अपने वर्चस्व में भारत को अड़चन मानता है। इस कारण हमें नीचा दिखाना चाहता है। हमारा झुकाव अभी अमेरिका की ओर है।

नेपाल भी चीन के चढ़ाए में आकर दिखा रहा तेवरअमेरिका के बारे में यही मान्यता है कि आमने-सामने की लड़ाई में वह किसी का अच्छा साथी नहीं साबित हुआ। फिलहाल रूस भी साथ देने की स्थिति में नहीं। पाकिस्तान तो हमारा स्थायी शत्रु है। रोटी-बेटी के रिश्ते वाला नेपाल भी इन दिनों चीन के चढ़ाए में आकर तेवर दिखा रहा है।फिर भी हमें हंिदू की सेनाओं पर पूरा एतबार है। गलवन में हमारे सैनिक भरोसे पर पूरी तरह खरे उतरे हैं। कुछ शहादत भी हुई हैं। हमें उन पर नाज है। चीन के सैनिक भी ढेर हुए, पर वह यह स्वीकार करने को ही तैयार नहीं। यदि हम अभी एकजुट रहेंगे तो सैन्य बलों का मनोबल भी ऊंचा रहेगा।

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