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जब पाली उमरीगर ने तूफानी गेंदबाजी के सामने 172 नाटआउट 248 मिनट में बनाए थे

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ब्रजबिहारी। आज के हरफनमौला खिलाड़ी भले ही अपनी काबिलियत पर शेखी बघार लें, लेकिन जरा पिछली सदी के पांचवें और छठे दशक को याद करें तो उन्हें अपना कारनामा फीका लगेगा। सोचिए, हेलमेट, आर्म गार्ड और थाई पैड के बिना रात भर खुली रखी गई नमी से भरी पिच पर वेस्ट इंडीज के तूफानी तेज गेंदबाजों का सामना करना कैसा लगता होगा।

क्रिकेट के इन आधुनिक साजो-सामान के साथ आज तो पुछल्ला बल्लेबाज भी पूरे आत्मविश्वास के साथ खेलने उतरता है और आसानी से रन भी बना लेता है। उस जमाने में जब बाउंसर फेंकने पर कोई पाबंदी नहीं थी, तब फ्रैंक वारेल और वेसली हाल जैसे रफ्तार के सुल्तानों की सनसनाती गेंदों के सामने खड़े होकर रन बनाना बड़ी टेड़ी खीर हुआ करता था। उसी जमाने में पाली उमरीगर (Polly Umrigar) ने बल्ले और गेंद से ऐसा कमाल दिखाया था, जिसकी कहानी आज भी सुनाई जाती है।

वेस्ट इंडीज का दौरा

उन्होंने पोर्ट आफ स्पेन में 1962 में वेस्ट इंडीज के खिलाफ पांच मैचों की टेस्ट सीरिज के चौथे टेस्ट (4-9 अप्रैल) में 248 मिनट में 172 रन कूटे थे और नाटआउट रहे थे। उस दिन तारीख 7 अप्रैल थी और ये रन ऐसे हालात में बनाए गए थे, जब सही मायने में खिलाड़ी के चरित्र की परीक्षा होती है। वेस्ट इंडीज ने टास जीता और बल्लेबाजी का फैसला करते हुए पहली पारी नौ विकेट पर 444 रन पर घोषित कर दी। रोहन कन्हाई ने शतक (139) लगाया और चार अन्य खिलाड़ियों ने अर्ध शतक। पाली उमरीगर ने 56 ओवर में 24 मेडन के साथ 107 रन देकर पांच विकेट झटके। उनका औसत 1.91 रन था। टीम के मुख्य गेंदबाज रूसी सुरती को कोई विकेट नहीं मिला। चंदू बोर्डे भी विकेटविहीन रहे।

भारत की पहली पारी

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मंसूर अली खान पटौदी (Mansoor Ali Khan Pataudi) की कप्तानी में इस बड़े स्कोर का जवाब देने उतरी भारतीय टीम की शरुआत ही खराब रही। दिलीप सरदेसाई को वेसली हाल ने शून्य पर चलता कर दिया। सुरती भी स्कोरर को कष्ट दिए बिना पवेलियन लौट गए। महज 30 रन पर पांच विकेट गिर चुके थे। इसके बाद आए उमरीगर और अपनी स्टाइल में खेलते हुए 56 रन बनाए और पारी के शीर्ष स्कोरर रहे। उनके बाद पटौदी ने 47 रन और बोर्डे ने 42 रन का योगदान किया। भारतीय टीम 80.3 ओवर में 197 रन बनाकर आउट हो गई। हाल ने 9 ओवर में 20 रन देकर पांच विकेट चटकाए। मेजबान टीम के महान आलराउंडर गैरी सोबर्स (Garry Sobers)ने 25 ओवर में 48 रन देकर दो विकेट झटके।

फालोआन के बाद

वेस्टइंडीज के कप्तान फ्रैंक वारेल ने भारत को फालोआन के लिए उतारा। सरदेसाई की जगह विजय मेहरा के साथ एमएल जयसिम्हा सलामी बल्लेबाजी करने आए। हालांकि नए ओपनिंग बल्लेबाज के रूप में पहला विकेट 19 रन पर ही गिर गया, लेकिन उसके बाद मेहरा ने सलीम दुर्रानी के साथ 144 रन की बड़ी साझेदारी निभाई। दुर्रानी ने 104 रन बनाकर आउट हुए। इसके बावजूद मध्यक्रम के लड़खड़ाने के कारण खतरा टला नहीं था। पहली पारी में चार रन बनाने वाले विजय मांजरेकर दूसरी पारी में भी सस्ते में (13 रन) आउट हो गए। पहली पारी में 47 रन ठोकने वाले कप्तान पटौदी एक रन पर ही पवेलियन चले गए।

उमरीगर का उम्दा खेल

दुर्रानी के रूप में पांचवां विकेट गिरने के बाद आए उमरीगर और अपने खेल से मैदान मार लिया। निस्संदेह इस टेस्ट मैच में उनका प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ कहा जाएगा। उन्होंने 156 मिनट में शतक बना डाला और 150 रन तक पहुंचने के लिए उन्हें 203 गेंदें खेलीं। विपक्षी कप्तान हाल ने जब दूसरी नई गेंद ली तो उन्होंने पहले ओवर में चार चौके लगाए। पूरी टीम 422 रन पर आउट हो गई। भारत की पारी के आखिरी 230 रन में 172 रन उनके थे। वह नाटआउट रहे यानी उन्हें कोई जोड़ीदार मिला होता तो उनके नाम दो दोहरे शतक हो सकते थे। उमरीगर के इस शानदार प्रदर्शन के बावजूद भारत यह मैच हार गया। वेस्ट इंडीज ने तीन विकेट खोकर जीत के लिए जरूरी 176 रन बना लिए।

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करिश्माई खिलाड़ी

इसी मैच में उन्होंने शतक और पांच विकेट लेने के वीनू मांकड के रिकार्ड की बराबरी की। इस सीरिज में उनके खाते में 445 रन और नौ विकेट आए थे। न्यूजीलैंड के खिलाफ 1955 में 223 रन के साथ देश की तरफ से पहला दोहरा शतक लगाने वाले इस करिश्माई खिलाड़ी ने 59 टेस्ट मैचों में 42 के औसत से 3631 रन बनाए। अपने 15 साल लंबे करियर में उन्होंने 12 शतक ठोके। उनके शतकों का रिकार्ड बाद में सुनील मनोहर गावस्कर ने तोड़ा। कमर के दर्द से परेशान उमरीगर ने 1962 में ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। उसी साल उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वर्ष 2006 में दुनिया को अलविदा कहने तक वे अलग-अलग भूमिकाओं में वे अपने पहले प्यार क्रिकेट की सेवा करते रहे।

दो पीढ़ियों के बीच की कड़ी

महाराष्ट्र के सोलापुर में पारसी परिवार में 28 मार्च, 1926 को जन्मे उमरीगर ने 18 साल की उम्र में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया। तब बांबे में धर्म के आधार पर टीमें बनती थी। उमरीगर पारसी टीम से खेलते थे। 1948 के अक्टूबर में भारत के दौरे पर आई वेस्ट इंडीज टीम के खिलाफ कंबाइंड यूनिवर्सिटीज की टीम की ओर से 115 बनाकर वे चर्चिच हुए। लगभग छह फीट लंबे उमरीकर काफी मजबूत कदकाठी के थे। उनके खेलने की शैली अपने समकालीनों से अलग थी। विजय मर्चेंट और विजय हजारे के प्रभाव में तब भारतीय टीम विकेट बचाने की रणनीति पर चलती थी ताकि मैच ड्रा कराया जाए लेकिन उमरीगर जोखिम लेने के आदी थे। तेज गेंदबाजों को चौके-छक्के लगाना उन्हें अच्छा लगता था। इस तरह उन्हें भारतीय क्रिकेट के पुराने और नए स्कूल की कड़ी के रूप में याद किया जाता है।

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