नोएडा। नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण द्वारा आइटी और आइटीईएस भूखंडों के आवंटन, आवंटी द्वारा किए जाने वाले भुगतान और मानचित्र स्वीकृति में जमकर अनियमितताएं बरती गईं। आवंटी द्वारा देय राशि का भुगतान किए बिना ही मानचित्र स्वीकृत किए गए और बिना अंशधारिता शुल्क लिए अंशधारिता में तीन बार बदलाव किया गया, जो निवेशकों को लूटने का जरिया बना। सीएजी की रिपोर्ट में आइटी और आइटीईएस के भूखंडों के संबंध में कई अनियमितताएं सामने आई हैं।
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक, सेक्टर-143 बी में आनंद इंफोएज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को एक लाख 980 वर्गमीटर के भूखंड का आवंटन मार्च, 2008 में किया गया। इस भूखंड की कीमत 49.98 करोड़ रुपये थी। भूखंड की लीज डीड 21 अगस्त, 2008 को हुई। 29 अगस्त, 2008 को आवंटी को जमीन पर कब्जा दे दिया गया। आवंटन के समय से ही अनियमितता का खेल शुरू हो गया था। आइटी और आइटीईएस के भूखंड के आवंटन के लिए तीन वर्ष की बैलेंस शीट मांगी गई थी। कंपनी 2007 में बनी थी और कंपनी की आइटी और आइटीईएस कारोबार की कोई पृष्ठभूमि नहीं थी। कंपनी की तरफ से तीन वर्ष की बैलेंस शीट भी जमा नहीं की गई, इसके बावजूद कंपनी को भूखंड दे दिया। आवंटी द्वारा आवंटन के समय 30 फीसद आवंटन राशि जमा करने के बाद लीज डीड की शर्तों के मुताबिक कोई पैसा प्राधिकरण में जमा नहीं किया।
अगस्त, 2011 में आवंटी की अतिदेय राशि का पुनर्निर्धारण किया गया। आवंटी ने इसके बाद भी कोई पैसा पुनर्निर्धारित किस्त के रूप में प्राधिकरण में जमा नहीं किया। 30 दिसंबर, 2020 तक आवंटी पर कुल देय राशि 159.98 करोड़ रुपये थी। लंबित बकाए का भुगतान किए बिना ही आवंटी का मानचित्र स्वीकृत किया गया और मौके पर निर्माण कार्य भी चलता रहा। 29 जनवरी, 2013 में प्राधिकरण सीईओ के आदेश थे कि मानचित्र स्वीकृति के लिए लेखा विभाग से नो ड्यूज सर्टिफिकेट लेना होगा। इस आदेश का उल्लंघन करते हुए तत्कालीन सीईओ ने देय राशि का भुगतान करने के लिए तीन माह का समय देते हुए संशोधित भवन योजना को अनियमित रूप से मंजूरी दे दी।
तीन माह में भुगतान न किए जाने की स्थिति में मानचित्र का अनुमोदन स्वत: निरस्त हो जाना था, लेकिन सितंबर 2020 तक कंपनी की तरफ से बकाया नहीं चुकाया गया और प्राधिकरण की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई। चौंकाने वाली बात यह है कि छह दिसंबर, 2019 तक आवंटी ने मौके पर निर्माण कार्य भी जारी रखा। यह बात सीएजी और प्राधिकरण अधिकारियों द्वारा मौके पर किए गए भौतिक निरीक्षण में भी सामने आई।
अंशधारिता में बदलाव किए जाने के बाद मिस्ट एवेन्यू प्राइवेट लिमिटेड ने आवंटी के मार्केटिंग एजेंट के रूप में काम करते हुए विला और वाणिज्यिक स्थान उपलब्ध कराने के नाम पर निवेशकों से 2012-13 से लेकर 2016-17 तक 401.36 करोड़ रुपये बुकिंग राशि के रूप में एकत्र किए। इस धनराशि में से 322.22 करोड़ रुपये स¨तदर सिंह भसीन की अन्य कंपनियों को ऋण के रूप में दे दिया। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि आवंटी का प्रयोजन शुरू से ही स्पष्ट था कि उसका उद्देश्य कभी भी आइटी या आइटीईएस व्यवसाय करना था ही नहीं।
सीएजी की रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि कंपनी कार्यशील होने से पहले ही तीन बार अंशधारिता बदली गई और कोई अंशधारिता परिवर्तन शुल्क नहीं लिया गया। इससे प्राधिकरण को सीधे तौर पर 35.96 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कंपनी की अंशधारिता कपिल राज आनंद और सरला आनंद के पास 50-50 फीसद थी। 21 अगस्त, 2008 को लीज डीड निष्पादन से पहले ही कंपनी की अंशधारिता पायस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, अयाम आनंद इंफोटेक, मैगनम गारमेंटस प्राइवेट लिमिटेड और सीएचएल लिमिटेड के पक्ष में बदल दी गई। इसके बाद 18 सितंबर, 2012 में फिर से अंशधारिता बदलकर ग्रैंड एक्सप्रेस डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में किया गया। कंपनी के निदेशक सतिंदर सिंह भसीन थे और इन्होंने कई संबंधित कंपनियों में निवेश कर दिया। ग्रैंड एक्सप्रेस कंपनी की अंशधारिता भसीन मोट्र्स लिमिटेड और भसीन इंफोटेक एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित की गई।