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बाढ़ से नही कर पाएगा मां भगवती की सुरक्षा, बूढ़ा हो चला टीला, मानसून से पहले हो सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

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रामनगर। लाखों लोगो की आस्था का धाम गिरिजा मंदिर का बूढ़ा हो चला टीला अब बाढ़ की विभीषिका का दंश शायद ही झेल पाएगा। जगह – जगह टीले में पड़ गयी दरारों को देखकर तो अब यही दिखाई देने लगा है। 1924 में 1 लाख 25 हजार क्यूसेक, 1993 में 1 लाख 56 हजार क्यूसेक ओर 2010 में 1 लाख 64 हजार क्यूसेक पानी अपने साथ हजारों टन मलवा पत्थर लेकर आया। मगर नदी में बाढ़ का पानी मंदिर का बाल भी बांका नही कर पाया। उफनाई कोसी नदी से मंदिर की सुरक्षा यही टीला करता रहा। मगर अफसोस अभी तक इसकी सुरक्षा को कोई पुख्ता इंतजाम नही हो पाए।

डेढ़ सौ साल से भी पुराना इतिहास है मन्दिर का|

गिरिजा मंदिर पर पुस्तक लिख चुके डिग्री कालेज के प्रवक्ता गिरीश चन्द्र पंत कहते है कि मंदिर का इतिहास 150 साल पुराना होगा। कहते है किसी समय यह मंदिर मय टीले के नदी में बहकर आया था। तब डोईया मसाण  (प्रेत राज) ने माता से यहां रुकने का आग्रह किया था और यह मंदिर अपने स्थान पर जम गया। तब से मां भगवती इस टीले पर ही विराजमान होकर अपने भक्तों का कल्याण कर रही है। डॉ पंत कहते है कि 1930 में सड़क किनारे  रामकृष्ण पाड़े की चाय की दुकान एक झोपड़ी में हुआ करती थी। पास ही घनघोर जंगल के बीच काफी पुराना देवी माँ का टीले सहित कोसी के बीचो बीच एक मंदिर मय टीले सहित था जिसके बारे में गर्जिया गाव के कुछ लोगो को ओर वन विभाग को ही जानकारी थी। तब वह विभाग के कुछ अधिकारियों ने रामकृष्ण से अनुरोध किया कि वह मन्दिर की देखरेख कर ले। उस समय  राम कृष्ण पांडे ने मंदिर की देखरेख करने से इन्कार कर दिया। तभी उनकी झोपड़ी में आग लग गयी। इसके बाद रामकृष्ण पांडे ने इस मन्दिर की देखरेख शुरू कर दी। उसके बाद मन्दिर का प्रबंध उनके पुत्र पूर्ण चन्द्र पांडे ने संभाला। जीवन पर्यन्त पूर्णचन्द्र पांडे मन्दिर की सुरक्षा के लिए मंत्री से लेकर अधिकारियों के पास दौड़ते रहे। मगर मंदिर के टीले की सुरक्षा के प्रति न तो शासन जागरूक रहा न ही सरकारेंं।

धार्मिक पर्यटन के रूप विख्यात है मन्दिर

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गिरिजा मन्दिर अब धार्मिक पर्यटन के रूप में भी अपनी पहचान बना चुका है। कार्बेट पार्क आने वाला हर सैलानी चाहे वह देशी हो या विदेशी यहां नतमस्तक हुए बिना नही रहता।

फाइलों में उलझ कर रह गयी सुरक्षा

मंदिर के पुजारी मोहनचंद पांडे बताते है कि सन 2012 में मंदिर की सुरक्षा एवं सुंदरीकरण की घोषणा मुख्यमंत्री द्वारा की गई थी। जिस पर सिचाई विभाग ने नाबार्ड मद से 675.37 लाख का इस्टीमेट बनाकर भेजा था। मगर उस समय इसके सुंदरीकरण आदि कार्यो के कारण इसे पर्यटन विभाग को हस्तातंरित किए जाने का पत्र सिंचाई विभाग द्वारा दिए जाने से यह मामला फिर फाइलो में उलझ गया।

अब जागी फिर से उम्मीद: जिलाधिकारी द्वारा धीरज गब्र्याल की पहल से फिर मन्दिर की सुरक्षा की उम्मीद जागी है। सिचाई विभाग के ईई केसी उनियाल कहते है कि इस बार आइआइटी रुड़की के वैज्ञानिकों के निरीक्षण के उपकरण डीपीआर तैयार कर शासन को भेज दी जाएगी। जिस पर जल्द धनराशि उपलब्ध कराने का आग्रह शासन से किया जाएगा।

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