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भारत में Facebook अपने प्लेटफॉर्म पर नहीं रोक पा रहा है हेट स्पीच: रिपोर्ट

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सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक के कुछ लीक हुए दस्तावेजों से पता चला है कि यह वेबसाइट भारत में नफरती संदेश, झूठी सूचनाएं और भड़काऊ सामग्री को रोकने में भेदभाव बरतती रही है.सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक के कुछ लीक हुए दस्तावेजों से पता चला है कि यह वेबसाइट भारत में नफरती संदेश, झूठी सूचनाएं और भड़काऊ सामग्री को रोकने में भेदभाव बरतती रही है. खासकर मुसलमानों के खिलाफ प्रकाशित सामग्री को लेकर कंपनी ने भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया है. समाचार एजेंसी एसोसिएटेडे प्रेस (एपी) के हाथ लगे कुछ दस्तावेजों से पता चला है कि भारत में आपत्तिजनक सामग्री को रोकने में फेसबुक का संघर्ष करना पड़ा है. इस तरह की बात कहने वाले ये दस्तावेज पहले नहीं हैं. फेसबुक छोड़ चुके कुछ लोग पहले भी यह बात कह चुके हैं. तस्वीरेंः आप अपना पासवर्ड कहां रखते हैं? भारत में सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक और भड़काऊ सामग्री एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. फेसबुक या वॉट्सऐप पर साझा की गई सामग्री के कारण हिंसा तक हो चुकी है. एपी के हाथ लगे दस्तावेज दिखाते हैं कि फेसबुक सालों से इस दिक्कत से वाकिफ है.

इससे सवाल उठते हैं कि उसने इस समस्या को सुलझाने के लिए कोई कदम उठाया या नहीं. बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि कंपनी ऐसा करने में नाकाम रही है, खासकर उन मामलों में जहां भारत की सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार के लोग शामिल थे. पूरी दुनिया में फेसबुक एक अहम राजनीतिक हथियार बन चुकी है और भारत भी इससे अछूता नहीं है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया को अपने पक्ष में बखूबी इस्तेमाल करने वाला माना जाता है. अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पिछले साल एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें संदेह जताया गया था कि बीजेपी के विरोध से बचने के लिए फेसबुक ने नफरती संदेशों पर अपनी नीतियों को लेकर भेदभाव पूर्ण रही है. समस्या की जानकारी थी एपी के हाथ लगे दस्तावेजों में कंपनी की अंदरूनी रिपोर्ट भी हैं, जिनमें भारत में नफरती संदेशों और फर्जी सूचनाओं के बारे में बात की गई है. बहुत से मामलों में ऐसी सामग्री फेसबुक के अपने फीचर और एल्गोरिदम के जरिए फैलाई गई. लेकन कुछ मामलों में कंपनी के लोगों ने चिंता जाहिर की और जिस तरह इस सामग्री से निपटा गया, उसे लेकर असहमति भी जाहिर की. दस्तावेज बताते हैं कि फेसबुक भारत को ‘रिस्क कंट्री’ के रूप में देखती है और हिंदी व बांग्ला को ‘आपत्तिजनक अभिव्यक्ति के उल्लंघन को रोकने के लिए ऑटोमेशन’ की जरूरत में प्राथमिक भाषाओं में रखती है

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इसके बावजूद फर्जी सूचनाओं को रोकने के लिए उसके पास जरूरी संख्या में लोग नहीं थे. एपी को दिए एक बयान में फेसबुक ने कहा कि उसने “हिंदी और बांग्ला समेत विभिन्न भाषाओं में नफरती संदेशों को खोजने के लिए तकनीक में खासा निवेश किया है,” जिसके फलस्वरूप 2021 में लोगों तक पहुंचने वाले घृणास्पद संदेश आधे हो गए हैं. फेसबुक के एक प्रवक्ता ने कहा, “हाशिये पर खड़े समुदायों जैसे मुसलमानों के खिलाफ हेट स्पीच दुनियाभर में बढ़ रही है. तो हम अपनी नीतियों को लागू करने में सुधार कर रहे हैं और जैसे जैसे यह ऑनलाइन अपना रूप बदलती है, हम भी बदलने को प्रतिबद्ध हैं.” टेस्ट यूजर का अनुभव 2019 के फरवरी में, यानी भारत में आम चुनाव से पहले, जब फर्जी सूचनाओं को लेकर आशंकाएं व्यक्त की गई थीं, फेसबुक के एक कर्मचारी ने यह समझना चाहा कि भारत का एक आम उपभोग्ता अपनी न्यूज फीड में क्या देख रहा है. इस कर्मचारी ने एक टेस्ट अकाउंट बनाया और उसे तीन हफ्ते तक इस्तेमाल किया. इस दौरान भारत में कई बड़ी घटनाएं हुईं. मसलन, कश्मीर में एक हमला हुआ जिसमें 40 भारतीय सैनिक मारे गए. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव इतना बढ़ा कि दोनों देश युद्ध के कगार पर पहुंच गए.

अपनी रिपोर्ट ‘ऐन इंडियन टेस्ट यूजर्स डिसेंट इनटु अ सी ऑफ पोलराइंजिंग नैशनलिस्टिक मेसेजेज’ उस कर्मचारी ने बताया जिस कदर ‘ध्रुवीकरण करने वाली राष्ट्रवादी सामग्री, फर्जी खबरें, हिंसक और घिनौनी’ सामग्री आ रही थी, उसे देखकर लोग हैरान थे. हेट स्पीच की सिफारिश फेसबुक जिन ग्रूप्स की सिफारिश कर रहा था, वे नफरती संदेशों, अफवाहों बेसिरपैर की सामग्री से भरे पड़े थे. एक फोटो देखी, जिसमें अपने सिर पर तिरंगा बांधे एक व्यक्ति पाकिस्तानी झंडे में लिपटा खून से लथपथ एक सिर लिए खड़ा था. फेसबुक का अपना फीचर ‘पॉप्युलर अक्रॉस फेसबुक’ पाकिस्तान के खिलाफ भारत की कार्रवाई से जुड़ी ऐसी सामग्री दिखा रहा था जिसकी कहीं पुष्टि नहीं की गई थी. कर्मचारी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “इस टेस्ट यूजर की न्यूज फीड में मैंने पिछले तीन हफ्तों में मरे हुए लोगों की जितनी तस्वीरें देखी हैं, उतनी पूरी जिंदगी में नहीं देखीं.” अपनी रिपोर्ट में उस कर्मचारी ने पूछा कि एक कंपनी के तौर पर हमारी ऐसी सूचनाओं को रोकने के लिए ज्यादा जिम्मेदारी होनी चाहिए या नहीं. इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया.

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