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राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी बनी नेताजी की अस्थियां देश में लाने में बाधा

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नई दिल्ली। लंदन में रहने वाले लेखक आशीष रे का कहना है कि यह एक अकथनीय त्रासदी है कि वैसे तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत में व्यापक रूप से पूजनीय हैं, मगर उनकी मृत्यु के 75 वर्ष बाद भी उनकी अस्थियां भारत नहीं लाई जा सकी हैं। रे ‘लेड टू रेस्ट : द कंट्रोवर्सी ओवर सुभास चंद्र बोस डेथ’ किताब के लेखक हैं। वह नेताजी के जीवन और उनकी मौत से जुड़े रहस्यों के बारे में जानकारी एकत्र करते रहते हैं। बोस की 75वीं पुण्यतिथि 18 अगस्त को है।
रे ने एक साक्षात्कार में बताया कि नेताजी की अस्थियां टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में संरक्षित है।
रे ने कहा कि भारत में बोस के परिवार और विषय से अनभिज्ञ लोगों ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पी. वी. नरसिम्हा राव को ऐसा करने से रोका, जो कि बोस के अवशेषों को भारत वापस लाना चाहते थे।
रे ने कहा कि भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा यह डर दिखाने के बाद कि इससे कोलकाता में दंगे हो सकते हैं, यह भी एक कारण रहा है कि विभिन्न सरकारें उनके अवशेषों को वापस लाने की हिम्मत नहीं कर पाई हैं।
उन्होंने खुलासा किया कि जापानी सरकार ने संकेत दिया है कि अगर भारत सरकार अनुरोध करती है, तो वह बिना किसी संकोच के नेताजी के अंतिम अवशेषों को भारत को सौंप देगी।
रे ने कहा, इसलिए नई दिल्ली को जापान से अनुरोध करने की जरूरत है।

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