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विदेशी यूनिवर्सिटी को भारत में स्थान, भारतीय विश्वविद्यालयों को वैश्विक पहचान….

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नई दिल्ली। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों को नई वैश्विक पहचान दिलाने में मदद करेगा। इसके तहत आईआईटी, आईआईएम जैसे अन्य कई शिक्षण संस्थान विदेशों में अपनी शाखाएं स्थापित कर सकेंगे। वहीं दूसरी ओर अमेरिका और यूरोप समेत विश्व की टॉप रैंकिंग यूनिवर्सिटी को भारत में छात्रों को शिक्षा देने का अवसर दिया जाएगा। शिक्षा मंत्रालय की नई योजना के अंतर्गत भारत को सस्ती कीमत पर प्रीमियम शिक्षा प्रदान करने वाले वैश्विक अध्ययन गंतव्य के रूप में बढ़ावा दिया जाएगा। उच्च प्रदर्शन करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को अन्य देशों में परिसर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा और इसी तरह, चुनिंदा विश्वविद्यालयों को भारत में काम करने की सुविधा प्रदान की जाएगी।

दुनिया के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में शामिल संस्थानों को ही भारत में काम करने की सुविधा प्रदान की जाएगी। इस तरह से शिक्षा को एक आधारभूत ढांचे के तहत लाया जाएगा। भारतीय और वैश्विक संस्थानों के बीच अनुसंधान सहयोग और छात्रों के आदान-प्रदान के विशेष प्रयासों को बढ़ावा दिया जाएगा।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा, “नई शिक्षा नीति भारत को सस्ती और बेहतर शिक्षा प्रदान करने वाले वैश्विक अध्ययन केंद्र के रुप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण साबित होगी और इससे भारत विश्वगुरु के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सफल होगा।”

निशंक ने कहा, “विदेशी छात्रों की मेजबानी करने वाले प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थानों में विदेशों से आने वाले छात्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय स्थापित किये जाएंगे। इन कार्यालयों में उच्च गुणवत्ता वाले विदेशी संस्थानों के साथ अनुसंधान और शिक्षण सहयोग की सुविधा होगी। शिक्षा के लिए विदेशों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। बेहतर प्रदर्शन करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को विदेशों में कैम्पस स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।”

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नई शिक्षा नीति के अंतर्गत तीन भाषा फॉमूर्ला में अधिक लचीलापन हो गया है और किसी भी राज्य में कोई अन्य भाषा नहीं लादी जाएगी। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, तीन भाषाएं अलग-अलग राज्यों में निश्चित रूप से छात्रों की पसंद होंगी, इसलिए तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारतीय मूल की होगीं। नई शिक्षा नीति कही भी अंग्रेजी भाषा को हटाने की बात नहीं करती हैए बल्कि बहुभाषावाद को बढ़ावा देती है।

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