हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है लेकिन क्या व्यवहार में हम हिंदी को राष्ट्रभाषा के समान सम्मान दे पा रहे हैं? प्रत्येक वर्ष दिखावे को हम हिंदी पखवाड़ा,हिंदी दिवस भी मनाते हैं ! क्या शिक्षा के क्षेत्र में हम हिंदी को पर्याप्त महत्व दे पा रहे हैं ?क्या न्यायालयों में हिंदी को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है?क्या हिंदी बोलने वाले को हम सही से सम्मान देते हैं ?क्या हिंदी जानने वाले को रोजगार में प्राथमिकता देते हैं?क्या अपने देश में हिंदी को जानना बोलना लिखना अभिशाप सा लगता है? क्या सरकारी दफ्तरों में हिंदी को हम बढ़ावा दे रहे हैं? इन सभी प्रश्नों का उत्तर यदि हम खोज पाएंगे तो सभी का उत्तर नहीं में मिलेगा!मैं इसे अपना और अपने देश का दुर्भाग्य ही कहूंगा की हिंदी राष्ट्रभाषा होने के बावजूद भी हिंदी का अपने ही देश में सही से विकास नहीं हो पा रहा है! अपने ही देश में हिंदी बोलने लिखने पढ़ने वालों को चाहे शिक्षा के मंदिर हो,न्याय के मंदिर हो या फिर सरकारी दफ्तर हो उन्हें वहां पर शर्मिंदा ही होना पड़ता है!प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक चाहे वह विज्ञान की शिक्षा हो तकनीकी की शिक्षा हो या फिर अन्य किसी विषय की शिक्षा हो उसका पाठ्यक्रम हिंदी में सरकारों को करना चाहिए तभी सही मायने में हम हिंदी को राष्ट्रभाषा कह सकते हैं! न्यायालयों में संपूर्ण कामकाज हिंदी में होना चाहिए उसके बाद अन्य भाषाओं में ट्रांसलेट करें! देश का दुर्भाग्य है कि न्याय के मंदिरों में सुनवाई अंग्रेजी में होती हैं उसके बाद अन्य भाषाओं में ट्रांसलेट होती हैं! आप अपनी बात को जितने प्रभावशाली तरीके से आत्मविश्वास के साथ मातृभाषा तथा राष्ट्रभाषा मैं कह सकते हैं शायद अन्य भाषा में कहना बहुत अधिक कठिन है वर्तमान समय में संपूर्ण उच्च पदों पर जो नियुक्तियां होती हैं उनमें परीक्षाओं से लेकर इंटरव्यू तक में अंग्रेजी का बोलबाला है हिंदी जाने वाले के हाथ में केवल मायूसी हाथ लगती है यदि सही मायने में हमें अपने देश में हिंदी का विकास करना है तो सरकारों को बुद्धिजीवियों को शिक्षा, रोजगार, सरकारी कामकाज, न्याय के मंदिरों में हिंदी भाषा का प्रयोग प्रत्येक कार्य में कराना होगा तभी हम हिंदी को हिंदुस्तान में सम्मान दे पाएंगे और तभी हम हिंदी को विश्व की भाषा बना पाएंगे !