नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सत्य सदैव एक भ्रम होता है और इसके इर्द-गिर्द के भ्रम को सिर्फ वैध साक्ष्यों से ही दूर किया जा सकता है तथा न्यायाधीश धार्मिकता के मार्ग पर चलकर किसी भी तरह से अभियुक्त को दोषी नहीं ठहरा सकते, भले ही कानूनी साक्ष्यों का पूर्ण अभाव हो.
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा, “हम यह कहने से नहीं बच सकते कि उच्च न्यायालय ने प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्तों को दोषी ठहराने में घोर गलती की है और बिना किसी कानूनी साक्ष्य के अभियोजन पक्ष की ओर से रची गई कहानी के आधार पर अनुमान और धारणाएं बना ली हैं.”
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई के अपने फैसले में कहा कि सत्य हमेशा एक भ्रम होता है और इसके इर्द-गिर्द के भ्रम को केवल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत वैध साक्ष्य से ही दूर किया जा सकता है, और अगर यह परिस्थितिजन्य है, तो परिस्थितियों की एक श्रृंखला प्रदान करते हुए, जो अभियुक्त के अपराध के निष्कर्ष पर पहुंचती है, तथा निर्दोष होने की किसी भी परिकल्पना के लिए कोई उचित संदेह नहीं छोड़ती है.
आरोपी को बरी किए जाने के फैसले को पलटने के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि वह सिर्फ उच्च न्यायालय की खंडपीठ की चिंता को स्वीकार कर सकती है और उसमें हिस्सा ले सकती है, जो पूरी प्रक्रिया की निरर्थकता के कारण हताशा की सीमा पर है.
पीठ ने कहा, “यह व्यावसायिक जोखिम है, जिसके साथ प्रत्येक न्यायाधीश को जीना सीखना चाहिए, जो धार्मिकता के मार्ग पर चलने और किसी भी तरह से अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए प्रेरणा नहीं हो सकता है, भले ही कानूनी सबूतों का पूर्ण अभाव हो; विशुद्ध रूप से नैतिक सजा में प्रवेश करना, आपराधिक न्यायशास्त्र के लिए पूरी तरह अभिशाप है.”
पीठ ने कहा कि इस अनसुलझे अपराध के लिए भारी मन से, लेकिन आरोपियों के खिलाफ सबूतों की कमी के मुद्दे पर बिल्कुल भी संदेह न करते हुए, “हम उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए और निचली अदालत के फैसले को बहाल करते हुए आरोपियों को बरी करते हैं.”
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के 2023 के आदेश को रद्द करने का फैसला किया, जिसमें दक्षिण कन्नड़ जिले में केवीजी मेडिकल कॉलेज के प्रशासनिक अधिकारी प्रोफेसर ए एस रामकृष्ण की 2011 में हुई सनसनीखेज हत्या के मामले में आरोपी डॉ रेणुका प्रसाद और पांच अन्य को बरी करने के फैसले को पलट दिया गया था.
हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह न्यायाधीशों की घबराहट को समझ सकता है, एक व्यक्ति की निर्मम हत्या में, जो उसके अपने बेटे के सामने की गई थी, मामले में विस्तृत जांच हुई थी, लेकिन मुकदमे में बुरी तरह से विफल हो गई, क्योंकि अभियोजन पक्ष के सभी गवाह मुकर गए.
हालांकि, पीठ ने कहा कि उसे हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखने तथा बरी करने के आदेश को पलटने का कोई कारण नहीं दिखता.
रामकृष्ण की 28 अप्रैल 2011 को सुबह की सैर के दौरान अंबटेडका (सुल्लिया) के निकट हमलावरों ने हत्या कर दी थी.