लखनऊ। प्रतापगढ़ के कुंडा थाने में वर्ष 2010 में बसपा नेता मनोज शुक्ल के अपहरण और थाने में फायरिंग के मामले में कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह और विधान परिषद सदस्य अक्षय प्रताप सिंह सहित अन्य के खिलाफ केस वापस लेने की याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंड पीठ ने मंजूर करने के साथ फैसले के लिए एमपी-एमएलए कोर्ट के पास भेजा है।
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने इन लोगों के सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दाखिल याचिका पर यह आदेश दिया।
विशेष अदालत को वापस भेजा फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्रतापगढ़ के कुंडा थाने में बसपा शासनकाल में दर्ज कराये गये एक मुकदमे के क्रम में विधायक रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया’ व एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह के साथ करीब दो दर्जन अन्य के खिलाफ अभियोजन कार्यवाही को रद करने के सपा शासन काल के निर्णय को नामंजूर करने वाले एमपी/एमएलए की विषेश अदालत के फैसले को खारिज कर दिया है और मामला फिर विशेष अदालत को वापस भेज दिया है।
कोर्ट ने एमपी-एमएलए की विशेष अदालत को आदेश दिया है कि वह सरकार के अभियोजन की कार्यवाही वापस लेने के निर्णय पर फिर से विचार करके आदेश पारित करे।
कोर्ट ने कहा कि नया आदेश पारित करते समय विषेश अदालत इसका ध्यान रखे कि मुकदमें में कोई ठोस सबूत नहीं है अतः मुकदमे की कार्यवाही चालू रखने से कानून की प्रकिया का दुरूपयोग ही होगा और यहां तक कि वादी ने भी सरकार के मुकदमे को वापस लेने के निर्णय से सहमति जताई है।
कुंडा थाने में फायरिंग का मामला
उल्लेखनीय है ब्लाक प्रमुख के चुनावों के दौरान बसपा नेता मनोज शुक्ल ने 19 दिसम्बर 2010 को अपहरण और थाने पर फायरिंग की संगीन धाराओं में केस दर्ज कराया था। विवेचना के बाद विधायक रघुराज प्रताप सिंह व एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह और अन्य के खिलाफ पुलिस ने अदालत में आरेापपत्र प्रेषित किये थे।
सपा शासन काल में सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके इस केस को वापस लेने का निर्णय लिया। इसके बाद लोक अभियेाजक ने चार मार्च 2014 को संबधित अदालत में अभियेाजन वापसी के लिए अर्जी पेश कर कहा कि सरकार इस केस को नहीं चलाना चाहती अतः इसे खारिज कर दिया जाये।
एमपी/एमएलए की विषेश अदालत ने सरकार की अर्जी को 17 मार्च 2017 को खारिज कर दिया था। इस आदेश को राजा भैया आदि ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने शुक्रवार को इस अर्जी को मंजूर करते हुए विषेश अदालत को फिर से मामले में नया निर्णय पारित करने का आदेश दिया है।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मामले में तथ्यों व परिस्थितियेां पर गौर करने से स्पष्ट है कि इस केस के चलने से कानून की प्रकिया का दुरूपयेाग ही होगा क्योंकि पत्रावली पर अभियुक्तेां के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है और यहां तक कि वादी ने भी मुकदमा वापसी का समर्थन किया है और कहा कि राजनीतिक कारणों से उक्त केस लिखाया गया था।