हमारा संरक्षण गाय करती है
आर्यावर्त सनातन वाहिनी “धर्मराज” के राष्ट्रीय महानिदेशक एवं जाने माने युवा धर्मगुरु श्रीभागवतानंद गुरु का यह कहना है कि सम्पूर्ण विश्व के हर आजीविका और वर्ग के लोगों का भरण पोषण करने की क्षमता भारतीय गाय में है। आज के युग में हम गौ संरक्षण की बात कहते हैं लेकिन वास्तव में हमारा संरक्षण गाय करती है।
नो चेद् गवां यदि पयः पृथ्वी तलेऽस्मिन्,
संवर्धनम् न हि भवेद्विधिसन्ततीनाम्।
यो जायते विधिवशेन तु सोऽपि रुक्षो,
निर्वीर्य शक्तिरहितोऽतिकृशः कुरूपः॥
यदि इस संसार में गोमाता का दूध उपलब्ध न होता, तो ब्रह्मा आदि की सृष्टि कैसे वृद्धि को प्राप्त होती ? यदि दैव के प्रभाव से संसार बन भी जाता तो वह कुरूप, रोगी, दुर्बल और तेजहीन होता।
गाय को पर्यावरण की संरक्षिका भी कहा गया है। स्वदेशी गाय की गर्दन के पास पृष्ठ भाग में शिवलिंग की भांति एक उभार होता है। उसमें एक नाड़ी होती है, जो सूर्य की किरणों से ऊर्जा को आकृष्ट करती है।
इसके परिणामस्वरूप गाय के दूध में शक्ति प्रदाता स्वर्ण का निर्माण हो जाता है, जो विपुल धनराशि देकर भी सुलभ नहीं हो सकता है। उस दूध का सेवन करने से, कमरे में गौ धृत का दीप जलाने से, चिकित्सीय दवा के साथ बीमार आदमी के ऊपर से आटे की लोई वार कर गौ को नियमित रूप से खिलाने से कई परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है।
स्वदेशी गाय के मूत्र का घर में छिड़काव करने से गौ धृत का दीप जलाने आदि से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वास्तु दोष का निवारण हो जाता है। गाय केवल पूजनीय ही नहीं है, बल्कि घर को दोषमुक्त करने में भी इसका महत्व है। गौमूत्र हो या दूध सभी से हर प्राणी को लाभ होता है।
ठीक से पोषित देसी गाय के दूध और दूध के बने पदार्थ मानव शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते। भारतीय परम्परा में इसी लिए देसी गाय के दूध को अमृत कहा जाता है।
आज यदि भारतवर्ष का डेरी उद्योग हमारी देसी गाय के ए2 दूध की उत्पादकता का महत्व समझ लें तो भारत सारे विश्व डेरी दूध व्यापार में सब से बडा दूध निर्यातक देश बन सकता है।
वैदिक काल से ही भारतीय संस्कृति में गाय का विशेष महत्व है। दुख की बात है कि भारतीय संस्कृति में जिस गाय को पूजनीय कहा गया है, आज उसी गाय को भूखा-प्यासा सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया गया है। लोग अपने घरों में कुत्ते तो पाल लेते हैं, लेकिन उनके पास गाय के नाम की एक रोटी तक नहीं है। छोटे गांव-कस्बों की बात तो दूर देश की राजधानी दिल्ली में गाय को कूड़ा-कर्कट खाते हुए देखा जा सकता है।
प्लास्टिक और पॉलिथीन खा लेने के कारण उनकी मृत्यु तक हो जाती है। गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास रहता है। इसलिए गाय का प्रत्येक अंग पूजनीय माना जाता है। गो सेवा करने से एक साथ 33 करोड़ देवता प्रसन्न होते हैं। गाय सरलता शुद्धता और सात्विकता की मूर्ति है।
देसी गाय की पहचान आज के युग में यह भी महत्व का विषय है कि देसी गाय की पहचान प्रामाणिक तौर पर हो सके। साधारण बोल चाल मे जिन गौओं में कुकुभ, गल कम्बल छोटा होता है उन्हे देसी नही माना जाता और सब को जर्सी कह दिया जाता है।
प्रामाणिक रूप से यह जानने के लिए कि कौन सी गाय मूल देसी गाय की प्रजाति की हैं, गौ का डीएनए जांचा जाता है। इस परीक्षण के लिए गाय की पूंछ के बाल के एक टुकडे से ही यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह गाय देसी गाय मानी जा सकती है या नहीं। यह अत्याधुनिक विज्ञान के अनुसन्धान का विषय है।