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राजस्थान विधानसभा के उपचुनावों में होंगी भाजपा और कांग्रेस की अग्नि परीक्षा

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जयपुर । राजस्थान विधानसभा की चार सीटों पर आगामी महीनों में होने वाले उप चुनावों में जहां प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस और केन्द्र में शासनारूढ़ पार्टी भाजपा की असली अग्नि परीक्षा होनी है वहीं मेवाड़ में जनता सेना मौक़ा भुनाने की ताक में है।
प्रदेश के भीलवाड़ा जिले के सहाड़ा, चूरु जिले के सुजानगढ़,उदयपुर जिले के वल्लभनगर और राजसमंद जिले की राजसमंद नगर की विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने है। अगले एक माह के अंदर चुनाव तारीखों का एलान हो सकता है। इन चारों विधानसभा सीटों में से तीन सीटें कांग्रेस विधायकों और एक सीट भाजपा के विधायक के निधन से खाली हुई हैं।
सहाड़ा में कांग्रेस के कैलाश त्रिवेदी,सुजानगढ़ में गहलोत सरकार के तेज तर्रार कैबिनेट मंत्री मास्टर भँवर लाल,वल्लभनगर में गहलोत की पूर्ववर्ती सरकार में गृह मंत्री स्वर्गीय गुलाब सिंह शक्तावत के पुत्र गजेन्द्र सिंह शक्तावत और राजसमन्द में पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के मंत्रीमंडल में काबिना मंत्री रहीं किरण माहेश्वरी विधायक थी। दिवंगत विधायकों में त्रिवेदी और माहेश्वरी का निधन कोरोना की वजह से हुआ है ।
प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के लिए यें उप चुनाव जीतना आसान नहीं है।लेकिन कांग्रेस के लिए यह अच्छी बात है कि उप चुनाव वाली विधानसभा सीटों के क्षेत्रों में हाल ही हुए निकायों के चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा है।जबकि बीजेपी को भीलवाड़ा जिले की गंगापुर सिटी नगरपालिका में मिली सफलता के अलावा उप चुनाव वाले इलाक़ों में सबसे बड़ा झटका राजसमन्द और उदयपुर जिले के वल्लभनगर विधानसभा की भींडर नगरपालिकाओं में लगा हैं।
राजसमन्द में विधानसभा अध्यक्ष डॉ.सी.पी.जोशी खेमे और भींडर में बीजेपी से अलग हो कर बने दल जनता सेना के संस्थापक पूर्व विधायक रणधीर सिंह भींडर ने भाजपा को कड़ी शिकस्त दी है।अब क्योंकि प्रदेश में होने वाले चार उप चुनावों में से मेवाड़ की तीन विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होना है, इसलिए इन चुनावों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ ही विधानसभाध्यक्ष डॉ. सी.पी.जोशी और राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं मेवाड़ के दिग्गज नेता गुलाब चन्द कटारिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी। तकनीकी रूप से और प्रशासनिक दृष्टि से भीलवाड़ा जिले की सहाड़ा सीट अजमेर संभाग के अन्तर्गत आती है लेकिन परम्परागत रूप में इसे मेवाड़ अंचल का हिस्सा माना जाता है। उदयपुर संभाग के डॉ.सी.पी.जोशी भी भीलवाड़ा से सांसद निर्वाचित होकर ही केन्द्र में मन्त्री बने थे। सहाड़ा के दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी भी डॉ.सी.पी.जोशी के निकट थे। अब कांग्रेस यहाँ किसी ब्राह्मण नेता को फिर से मौक़ा देगी या अन्य किसी जाति को प्रतिनिधित्व देंगी यह देखना रोचक होगा।
कांग्रेस पार्टी सहाड़ा, सुजानगढ़, वल्लभनगर और राजसमंद विधानसभा सीटों को हर हाल में जीतना चाहेंगी। विशेष कर राजसमन्द सीट को जहां अभी निकाय चुनाव में उसे अच्छी सफलता मिली है। राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि यहाँ से पार्टी मुख्यमंत्री गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को भी चुनाव लड़ा सकती है। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी.पी.जोशी और गहलोत के रिश्ते पिछलें विधानसभा चुनावों के वक्त से अच्छे है और जोधपुर में वैभव गहलोत के केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के सामने सांसद का चुनाव हारने के बाद उन्हें राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बनाने में भी उनकी भूमिका अहम रही ।अब यदि कांग्रेस राजसमन्द सहित चारों उप चुनावों में विजयी रही तो कांग्रेस को विधानसभा में एक अतिरिक्त सीट हासिल करने में सफलता मिल सकती है। भाजपा के कब्जे वाली राजसमन्द सीट पर कांग्रेस इस बार जीतने के इरादे से चुनाव लड़ना चाहती है।
इधर उदयपुर की भींडर नगरपालिका में रणधीर सिंह भींडर को मिली विजय ने निकट भविष्य में होने वाले उप चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस के कान खड़े कर दिए है। रणधीर सिंह भींडर प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया के घोर विरोधी और पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के निकट माने जाते है। चुनावों से पहलें वे सपरिवार वसुन्धरा राजे से मिलने धौलपुर पेलेस पहुँचें थे।नगरपालिका चुनाव में उन्हें मिली जीत ने उपचुनाव के संघर्ष को रोचक बना दिया है। भींडर और कटारिया गुट की लड़ाई का लाभ एक बार फिर से कांग्रेस उठाने का प्रयास करेगी लेकिन दिवंगत विधायक गजेन्द्र शक्तावत के सचिन पायलट ग्रूप के होने के कारण कांग्रेस को भी अंतर्कलह का खतरा कम नहीं है।
इन उप चुनावों में तीन सीटें सहाड़ा,राजसमन्द और वल्लभनगर सामान्य वर्ग और एक मात्र सीट सुजानगढ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।कांग्रेस को इस सीट पर विजय मिलने की उम्मीद है ,हालाँकि यहाँ के दिवंगत विधायक और गहलोत केबिनेट में मंत्री मास्टर भँवर लाल भी सचिन पायलट खेमें के ही थे इसलिए कांग्रेस के लिए यहाँ उम्मीदवार का चयन किसी अग्नि परीक्षा से कम नही होगा फिर यहाँ कांग्रेस के पास मास्टर भँवर लाल जैसा क़द्दावर नेता भी नहीं है। उनकी राजनैतिक उत्तराधिकारी मानी जाने वाली सुपुत्री चूरु की पूर्व जिला प्रमुख डॉ.बनारसी भी अब इस दुनिया में नहीं रहीं।चूरु जिला भाजपा के विधानसभा में उपनेता राजेन्द्र राठौड़ की कर्म स्थली है।इसे देखते हुए यहाँ चुनाव मुक़ाबला रोचक होगा।
कांग्रेस और भाजपा ने उप चुनावों के लिए तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। कांग्रेस ने तों टिकट वितरण को लेकर भी तैयारी शुरू कर दी गई है। हालांकि परम्परा अनुसार नामों को पार्टी की केन्द्रीय चुनाव कमेटी ही अंतिम रूप देगी।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने विधानसभा के चार सीटों पर होने वाले उप चुनाव को लेकर पिछलें बुधवार को मुख्यमंत्री निवास पर उप चुनाव वाले क्षेत्रों के पर्यवेक्षक और प्रभारी मंत्रियों के साथ लंबी चर्चा की है ।प्रभारी मंत्रियों एवं पर्यवेक्षकों को इन क्षेत्रों के तत्काल दौरे शुरू करने और रणनीतिक रूप से सख्त हिदायतें दी गई हैं।यह कौशिश भी की जा रहीं है कि चुनाव आचार संहिता से पहले हर हाल में सभी क्षेत्रों में जनता के मांग के अनुसार कामकाज पूरे कर दिए जाएं। जिससे चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को सरकार से शिकायतें नहीं रहे।कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पवन बंसल भी जयपुर दौरें पर आ कर गए है।
इधर नई दिल्ली में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है ।राजे ने अपने दिल्ली प्रवास में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केन्द्रीय गृहमंत्री अमितशाह से मुलाकात की है। वे अन्य कई केन्द्रीय मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं से भी मिलीं है। उन्होंने केन्द्रीय नेताओं से राजस्थान की राजनीति और राज्य में होने वाले उप चुनावों पर लम्बी चर्चा की हैं।इससे पूर्व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ.सतीश पूनिया,प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चन्द कटारिया,उप नेता राजेन्द्र राठौड़ और प्रदेश के अन्य नेताओं ने भी केन्द्रीय नेताओं से भेंट कर राजस्थान के राजनैतिक हालातों पर अपनी रिपोर्ट दी हैं।कोर समिति के सदस्यों की बैठक में भी उपचुनाव की रणनीति पर मन्थन हुआ है।
प्रदेश में हुए 90 शहरी निकायों के चुनावों ने संकेत दिया है कि विधानसभा उपचुनाव की लड़ाई बहुत कड़ी होने वाली है। गहलोत सरकार और बीजेपी के लिए नतीजे 50-50 प्रतिशत रहें है हैं। यानी सरकार होने के बावजूद विधानसभा की चारों सीटों पर उपचुनाव जीतने के लिए कांग्रेस को जोर लगाना पड़ेगा और भाजपा को भी जीत आसान नहीं होगी ।भाजपा के लिए चिंता का विषय यह है कि वह जिस तरह से गहलोत सरकार को असफल बता रही थी, वैसा नतीजों में नजर नहीं आया। कांग्रेस को 20 जिलों के 90 शहरी स्थानीय निकायों के 3034 वार्डस में से 1197 वार्डों में विजय मिली हैं जबकि भाजपा को 1140 वार्डस में सफलता मिली है। विधानसभा उपचुनाव वाली चार सीटों में से मात्र एक शहर पर बीजेपी का कब्जा हुआ है। कांग्रेस को दो स्थानों जीत मिली है । चौथा शहर पूर्व विधायक रणधीरसिंह की जनता सेना के खाते में गया। उपचुनाव वाली विधानसभा सीटों के इलाकों के चारों शहरी निकायों में 49.67 फीसदी वार्ड कांग्रेस ने जीते हैं जबकि बीजेपी ने 32.90 फीसदी वार्ड जीते है। कुल 155 वार्डों में से कांग्रेस 77 वार्ड और बीजेपी 51 वार्ड जीती है। निर्दलीयों और अन्य के खाते में 27 वार्ड गए हैं।भाजपा को सबसे ज्यादा राजसमंद निकाय की हार ने चौंकाया है। यह शहर दिवंगत भाजपा दिग्गज नेत्री और विधायक किरण माहेश्वरी का है। यहां सहानुभूति की लहर के बजाय पार्टी को निकाय चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इस गढ़ को कांग्रेस ने छीन लिया है। सुजानगढ़ में फिर से कांग्रेस जीती है। शहरी चुनाव में जीत के जरिए उन्होंने अपना दावा और मजबूत कर दिया है। शहर के 45 वार्डों में से कांग्रेस ने आधे से ज्यादा 26 वार्ड जीते हैं। भाजपा 18 पर सिमट गई। एक वार्ड निर्दलीय के कब्जे में गया है। सहाड़ा विधानसभा सीट के अंतर्गत गंगापुर नगर पालिका को कांग्रेस ने गंवा दिया। यहां 25 में से भाजपा ने 13 जबकि कांग्रेस ने 12 वार्ड जीते हैं। यहां उलटफेर का अनुमान है। भींडर विधानसभा के उपचुनाव में कड़ा मुकाबला होगा। पायलट समर्थक विधायक गजेंद्रसिंह शक्तावत के निधन से खाली हुई विधानसभा सीट के लिए जनता सेना का दावेदार भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किल खड़ी कर देगा।यहाँ संभवतः रणधीर सिंह भींडर फिर से चुनाव में अपना भाग्य आज़मायेंगे।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इन उपचुनावों में जो दल अपने अंतर्विरोधों से उबर कर एकजुट होकर चुनाव लड़ेगा चुनावों में उनकी विजय होगी। अब देखना यह है कि प्रदेश में कोरोना प्रबन्धन के लिए देश विदेश में तारीफ़ें बटोरने वाली प्रदेश सरकार अपने राजनीति के जादूगर माने जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में सत्ता में होने के अवसर का लाभ उठायेंगीं अथवा भाजपा अपनी राजसमन्द की सीट को बचाते हुए और भी सीटों पर कब्जा करने में सफल हो पायेगी। राजनैतिक पण्डितों का मानना है कि वसुन्धरा राजे के सक्रिय हुए बिना पार्टी के लिए उप चुनावों को जीतना टेडी खीर होगा फिर केंद्र में चल रहें किसान आंदोलन की लपटें राजस्थान के मरुस्थल तक भी फैल रही है ।उसकी छाया भी उप चुनावों पर रहेगी ऐसा लगता है।विशेष कर चूरु जिले में जहां राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संस्थापक और नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल ने किसान आन्दोलन का झंडा उठा अपनी पुरानी पार्टी भाजपा के विरुद्ध बग़ावत कर दी है। बेनीवाल कांग्रेस के भी घोर विरोधी है।

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