जिस तरह अब से लगभग 25-30 वर्ष पूर्व सरसों के तेल को मानव जीवन के लिए अनुपयोगी व बीमारी फैलाने का कारण डाक्टर्स ,वैज्ञानिक तथा शोध संस्थाओ की विदेशी कंपनियो से साँठगाँठ कर फ़र्ज़ी निस्कर्ष के आधार पर तत्कालीन मीडिया द्वारा देश की गरीब व कम पढ़ी लिखी भोली भालीं जनता में सरसों के तेल के सेवन का भय व्याप्त कर रिफ़ाइंड का प्रचार प्रसार कर देश की जनता को बीमार बनाने का ठेका दिया गया और कमीशन व मुनाफ़े का खेल खेला गया जिसके कारण बड़ी संख्या में देश की जनता बी पी ,
शुगर ,हाइपरटेंशन,कोलेस्ट्रोल आदि गम्भीर बीमारियों से ग्रसित हों गयी व हों रहीं हैं तथा बीमार होकर लाखों लोग जीवन यात्रा पूरी कर अपने स्वजनो को छोड़ चुके हैं अंतर्रष्ट्रिय कंपनियो द्वारा शायद कमीशन देना बंद कर दिए जाने या कम देने के कारण उन्ही तथाकथित शोध संस्थानो वैज्ञानिको व डाक्टर्स ने स्वयं व मीडिया के माध्यम से रिफांइडस के अवगुण व सरसों के तेल में गुणो की खान बतानी शुरू कर दी हैं
ऐसा लगता हैं ज़ो खेला सरसों के तेल साथ साज़िश रचकर खेला गया वही खेल कोरोना के नाम पर खेला जा रहा हैं देश की जनता में भय व्याप्त किया जा रहा हैं पिछले वर्ष यदि किसी में कोरोना लक्षण मिल गए तों उसके परिवारजन पड़ोसी रिस्तेदार मित्र किसी की खेर नहीं सबको उठाकर अस्पताल में ज़बर्दस्ती डाल दिया जाता था इस वर्ष होम आइसोलेट की व्यवस्था बनायी गयी कोरोना पीड़ित मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर बता दिये गये रोगियों के अनुभव के आधार पर उनके द्वारा महसूस किया गया कि जिस बीमारी को कोरना का नाम दिया जा रहा हैं वह वायरल खाँसी जुकाम तथा फ़्लू हैं जिसका समय पर सही ईलाज न होने पर मलगम बनना शुरू हों जाता हैं तथा मलगम गले व नाक के रास्ते फेफड़ों में जाकर संक्रमण कर निमोनिया बना देता हैं यदि फेफड़े मलगम की वजह से रुंध गए तों शरीर में आक्सीजन का प्रवाह कम होने लगता हैं संक्रमण के ज़्यादा फैलने से व्यक्ति क़ो साँस लेने में तकलीफ़ ज़्यादा होने लगती हैं क्योंकि हमारे फेफड़े ही छन्नी का काम करते हैं और यदि वो छानना बंद कर देंगे और निमोनिया का ईलाज उचित नहीं हुआ तों फेफड़ों का संक्रमण व्यक्ति को मौत के द्वार तक भी ले जाता हैं वायरल फ़्लू व निमोनिया का दुरुस्त ईलाज़ देश में हैं जिस कारण रोगी व परिवार में इन बीमारियों का भय व्याप्त उस स्तर का नहीं हैं किन्तु इस नए कोरोना वायरस का भय व्याप्त हैं और बढ़ा चढ़ा कर किया भी जा रहा हैं जिसका सीधा सम्बन्ध मेडिकल उधोग से जुड़ा हुआ हैं और यही खेल कोरोना के नाम पर चल रहा हैं जब से कोरोना आया हैं तब से देश से वायरल ,डेंगू ,फ़्लू ,मलेरया ,चिकनगुनिया जिनके होने से लाखों लोग काल ग्रास में समा चुके हैं या मोटे दाम खर्च कर बड़ी मुश्किल से जान बचा पाए कही डरकर छुप गए हैं या दुम दबाकर भाग गए हैं क्योंकि उन सब लक्षणो ने अब कोरोना का नाम पिछले वर्ष से ले लिया हैं जनता कुछ समझी तब तक डबल स्ट्रेन का नाम से श्रीमान आ पधारे और यदि बीमार व्यक्ति अस्पताल पहुँच गया तों जबतक छुटकारानहीं होगा जब तक वेंटलेटर की सेवा के नाम पर लाखों रूपेय रोगी से वसूल न लिए जाय
भारत राज्यों का देश हैं लोकतांत्रिक अधिकार राज्य सरकार के पास संविधान प्रदत्त हैं लोकतंत्र में भ्रष्टाचार ना हों ये सम्भव नहीं भ्रष्टाचार व्यक्तिगत हों या संस्थागत वो करने वाले की होशियारी पर निर्भर करता हैं वर्तमान दौर में संस्थागत भ्रष्टाचार चरम पर हैं इसमें फ़ायदा ज़्यादा और ज़िम्मेदारी नाम की कोई चीज नहीं देशी विदेशी कंपनियो व मेडिकल संस्थानो ने इस व्यवस्था को पुरी तरह समझकर जन सेवा के नाम पर आत्मसात् कर लिया हैं तथा लाभ देने वाले का हिस्सा अप्रत्यक्ष रूप से उसके पास पहुँचा दिया जाता हैं कोई किसी को इस नाम पर बोल भी नहीं सकता क्योंकि लोकतंत्र में चुनाव और चुनाव में पैसा और पैसे की रखवाली कंपनिया ये सीधा सा समीकरण और जनता के लिए सहानुभूति का मरहम जैसे कोरोना का फ़्री चेकअप घर अस्पताल के दरवाज़े तक फ़्री एम्बुलेंस और अस्पताल से शमशान तक एम्बुलेंस की फ़्री सेवा तथा शमशान में बिना पोस्टमार्टम के सरकारी ईंधन से अंतिम संस्कार ये सब खेल मिलीभगत के साथ अर्थ चक्र चल रहा हैं
कोरोना आख़िरी नहीं हैं ये जब तक यूँ ही चलेगा जब तक देश में इससे ख़तरनाक दूसरा वायरस नहीं आ जाता देश में मेडिकल इतिहास अब तक यहीं बताता हैं