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नोएडा शहर की आबोहवा में जहर घुलने का वक्त आ गया है, जानिए कैसे

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नोएडा। दिल्ली से सटे नोएडा शहर की आबोहवा में जहर घुलने का वक्त आ गया है। जैसे-जैसे अक्टूबर नजदीक आ रहा है, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बेचैनी बढ़ने लगी है। बेशुमार तैयारियों के बावजूद शहर में वायु प्रदूषण का ग्राफ तेजी से ऊपर आता है। उत्तर प्रदेश के शो विंडो नोएडा वायु प्रदूषण के मामले में देश व विश्व में टाप-10 की सूची में शुमार रहता है। हालांकि, इस बार बोर्ड वायु प्रदूषण को हराने के लिए अलग खाका तैयार कर रहा है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नोएडा ने शहर में वायु प्रदूषण के कारण और निवारण पर अध्ययन करने के लिए आइआइटी दिल्ली को प्रस्ताव भेजा है। जिसमें प्रदूषण के कारण और निस्तारण के लिए तकनीकी दक्षता को आधार बनाया जाएगा।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी प्रवीण कुमार ने बताया कि अक्टूबर शुरू होते ही शहर वायु प्रदूषण की जद में आना शुरू हो जाता है। चूंकि, नोएडा वायु प्रदूषण के मामले में देश के अति संवेदनशील शहरों में शुमार है, विभागीय स्तर पर इसे नियंत्रित करने की तैयारी शुरू कर दी गई है, लेकिन हर साल विभाग की तैयारी प्रदूषण के आगे निष्क्रिय हो जाती है। ऐसे में बोर्ड शहर में प्रदूषण के स्त्रोतों की तकनीकी जानकारी व इससे निपटने की कार्ययोजना बनाने के लिए अध्ययन कराने का फैसला किया है।

अध्ययन से शहर में उत्सर्जन माप, उत्सर्जन सूची इसके स्रोत व विकास के बारे में जानकारी हासिल की जाएगी। बोर्ड की तरफ से अध्ययन के लिए आइआइटी दिल्ली के सेंटर आफ एटमास्फेरिक स्टडी विभाग को प्रस्ताव भेज दिया है। विभाग के प्रोफेसर सगनिक डे से शोध करने के लिए संपर्क भी किया जा चुका है। साथ ही उनसे शोध में आने वाले खर्च आदि के बारे में जानकारी मांगी है। वायु प्रदूषण के संबंध में जिले का यह पहला अध्ययन होगा। जल्द ही टीम शहर में पहुंचकर शोध शुरू कर देगी।

सीपीसीबी के मापदंडों पर बनेगी कार्ययोजना

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शहर में किस चीज से कितना प्रदूषण फैलता है, इस बारे में पता करने के बाद वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मापदंड पर कार्ययोजना बनाई जाएगी। इसके लिए शोधकर्ताओं का सहारा लिया जाएगा। संभावना है कि ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) लागू होने के बाद इसी योजना पर काम किया जा सके। इससे लोग साफ-सुथरी हवा में सांस ले सकेंगे।

प्रदूषण से बढ़ जाते हैं सांस व त्वचा के मरीज

वायु प्रदूषण से जहां सांस व दमा रोगियों की जान आफत में आ जाती है, वहीं त्वचा व आंखों के मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ती है। प्रत्येक वर्ष सरकारी व निजी अस्पतालों की ओपीडी में आंखों व त्वचा के मरीज की सबसे ज्यादा पहुंचते हैं। वायु प्रदूषण का कहर दिवाली के बाद अधिक बढ़ जाता है।

शहर में संभावित प्रदूषण के कारक

  • औद्योगिक इकाई 19 फीसद
  • यातायात 23 फीसद
  • रोड डस्ट चार फीसद
  • पावर प्लांट सात फीसद
  • कंस्ट्रक्शन डस्ट दो फीसद
  • बायोमास कुकस्टोव नौ फीसद
  • डीजल जनरेटर सेट चार फीसद
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