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कश्मीर फाइल्स मूवी की चर्चा के बीच देखिये अब क्या बवाल हुआ

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आजकल कश्मीर फाइल्स मूवी की चर्चा जोरों पर है इस फिल्म के आधार पर उतपन्न जन अवधारणा के सदंर्भ में भूराजनीतिक, सांस्कृतिक और भारत की संसद के द्वारा सर्वसर्वम्मति से लिए गए दो सकंल्पों को धलूधसूरित करते हुए जम्मूकश्मीर के मसुलमानों द्वारा
कश्मीर के टिटवाल में हिन्दू चेहरा सामने रखकर द्वारा 2 दिसबंर 2021 को शारदा यात्रा टेंपल (जिसे यात्री निवास या होटल या सराय न कहकर शारदा मन्दिर के रूप में प्रचारित किया जा रहा है) का निर्माण उससे भी अधिक आपत्ति जनक उसमें लगा मानवीय चित्र है जो स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी की अर्धांगिनी शारदा देवी का है। शारदा पीठ की अधिष्ठात्री शारदा भगवती के स्थान पर यह
चित्र लगा कर जनआस्था को कुंठित एवं भ्रमित किया जा रहा है।

आपके संज्ञान में लाना है कि अनादि शारदा पीठ एक महाशक्ति पीठ है (देवी पुराण, देवी भागवत, कालिका पुराण, मत्स्य पुराण आदि ) और वहां अमतृ कुंड पर भगवती शारदा शिला के रूप में स्थापित हैं और आदि शंकराचार्य जी ने इसी शिला पर आरोहण कर जगद्गरूु उपाधि प्राप्त की थी। भारत पाक विभाजन के उपरांत यह पवित्र स्थान पाक अधिकृत कश्मीर के रूप में पाकिस्तान का हिस्सा बन गया जिसे भारत सरकार आज भी भारत का अभिन्न हिस्सा मानती है और इसे वापस लेने के लिए भारतीय ससंद ने से 22 फरवरी 1994 एवं 15 मार्च
2013 को सर्वसर्वम्मति से प्रस्ताव पारित किया है। इस बात को स्मरण करते रहने के लिए लोकसभा एवं जम्मू कश्मीर की विधान सभा में आज भी सीटें खाली रखी गई हैं।

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फिर विभाजन के समय 1947 में ही कुछ हिन्दुओं ने शारदा पीठ से मिट्टी एवं मूर्ती आदि लाकर मलू शारदा पीठ से 24 km दूर कुपवाड़ा जिले के टिक्कर ग्राम में शारदा मन्दिर स्थापित कर दिया था जो आज भी है और इसकी प्रबधं समिति कार्यरत है। इसी प्रकार शारदा का एक और मदिंर 1947 में ही बांदीपोरा के कुलेशरा ग्राम में स्थापित किया गया था जो अभी तक प्रबधं समिति द्वारा संचालित हो रहा है। 140 km दूर स्थित टिटवाल कभी भी शारदा यात्रा मार्ग नहीं रहा है और सेना का क्षेत्र होने के कारण यहां स्थायी निर्माण नहीं हो सकता है। फिर शारदा यात्रा टेंपल का क्या अर्थ है? इसे शारदा यात्रा धर्मशाला यात्री निवास क्यों नहीं कहते हैं?(सलं ग्नक:3)

प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार जिन मसुलमानों ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से निकलने को विवश कर दिया जो आजतक निरन्तर प्रयासों के बाद भी वापस नहीं बस सके, उन्हीं के साथ मिलकर एकाउंट खोलकर सेव शारदा कमेटी के नाम से चंदा एकत्र करने के लिए यह उपक्रम चल रहा है। ऐसी लोकमान्यता स्थापित की जा रही है कि श्रृंगार शारदा पीठम के साथ संयुक्त रूप से यह उपक्रम चलाया जा रहा है जो भारत की ससंदीय प्रस्ताव के विरुद्ध एवं भगवती शारदा का अपमान है और सनातन परंपरा के अनुयायियों द्वारा अस्वीकार्य है। भगवती शारदा ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी और सभी विद्वानों के द्वारा पूजित रही हैं, कश्मीर विद्वता की भूमि हैऔर सारे देश के विद्वान वहां जाकर गौरवान्वित होते रहे हैं। कश्मीरी पडिंत वर्ग स्थानीय लोग हैं शारदा से इनका इतना ही सबंधं है। इनकी कुलदेवी भगवती शारिका, राज्ञा, ज्वाला एवं बाला हैं। 1990 में कश्मीर से इनका विस्थापन सारे देश के लिए पीड़ा और क्षोभ का विषय रहा है और है किन्तु 1990 से पूर्व इनके जाति य इतिहास में कहीं भी भगवती शारदा का व वरण नहीं मिलता है। यह मदिंर 15वीं सदी में नष्ट कर दि या गया था और तबसे अब तक परित्यक्त ही पड़ा है, जबकि कश्मीरी पडिंत वर्ग के 3-प्रधानमंत्री एवं असंख्य अधिकारी शासन, सत्ता में रहे। 1947 में विभाजन के समय कुछ महीने के लिए उत्तम कौल उर्फ स्वामी नन्दलाल जी वहां रहे थे जिन्होंने 1947 में टिक्कर में शारदा पीठ स्थापित की थी। शारदा क्षेत्र के विस्थापित लोग (1947-51) तक अभी तक जम्मू में उपेक्षित जीवन जी रहे हैं। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि भगवती शारदा को वर्ग विशषे से जोड़कर उन्हें संकुचित कर राष्ट्रीय अस्मिता को खतरे में न डालें, क्योंकि शारदा सभी सनातन धर्मियों की आस्था का विषय है और मूल शारदा पीठ पाना ही सनातन धर्मियों का एवं भारतीय ससंद का उद्देश्य एवं सकंल्प है, इस सकंल्प को पूरा करने के उद्देश्य से वर्तमान में चल रहे गलत अवधारणा एवं समाचार को रोकें।

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