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अजीम प्रेमजी ने नारायण मूर्ति को नहीं दी थी Wipro में नौकरी, फिर उन्होंने ऐसे बनाई Infosys कंपनी

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इंफोसिस (Infosys) के सह संस्थापक नारायण मूर्ति (Narayana Murthy) ने बताया है कि उन्हें विप्रो (Wipro) ने नौकरी देने से मना कर दिया था. इसके बाद उन्होंने अपने छह मित्रों के साथ मिलकर इंफोसिस की स्थापना की. विप्रो के पूर्व चेयरमैन अजीम प्रेमजी (Azim Premji) ने इस बात को स्वीकारा था. उन्होंने कहा था कि नारायण मूर्ति को नौकरी न देना विप्रो की सबसे बड़ी गलतियों में से एक थी.

अजीम प्रेमजी ने इसे विप्रो की सबसे बड़ी गलती बताया था 

नारायण मूर्ति ने सीएनबीसी टीवी 18 को दिए इंटरव्यू में बताया कि अजीम प्रेमजी ने उन्हें नौकरी न देने की गलती को स्वीकारा था. उन्होंने कहा था कि यदि यह गलती न हुई होती तो आज उनके सामने इंफोसिस एक चुनौती बनकर नहीं खड़ी रहती. फिलहाल इंफोसिस का मार्केट कैप 6.65 लाख करोड़ और विप्रो का 2.43 लाख करोड़ रुपये है.

नारायण मूर्ति और उनके दोस्तों ने बनाई थी इंफोसिस 

देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में शुमार विप्रो और इंफोसिस के मुख्यालय बेंगलुरु में ही हैं. विप्रो की स्थापना अजीम प्रेमजी के पिता एमएच हाशम प्रेमजी (MH Hasham Premji) ने 1945 में की थी. उधर, इंफोसिस का जन्म 1981 में हुआ. कंपनी की स्थापना नारायण मूर्ति के अलावा नंदन नीलेकणि (Nandan Nilekani), क्रिस गोपालकृष्णन (Kris Gopalakrishnan), एसडी शिबुलाल (SD Shibulal), के दिनेश (K Dinesh), एनएस राघवन (NS Raghavan) और अशोक अरोड़ा (Ashok Arora) ने मिलकर की थी.

सुधा मूर्ति ने दी पहली फंडिंग, फिर भी नहीं बन सकीं कंपनी का हिस्सा 

नारायण मूर्ति ने इससे पहले स्वीकारा था कि इंफोसिस की स्थापना में उनकी पत्नी सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) का बड़ा योगदान है. सुधा मूर्ति ने ही कंपनी की स्थापना के 10 हजार रुपये देकर पहली फंडिंग की थी. वह हम सभी से योग्य थीं. मगर, मैंने सोच रखा था कि परिवार को कंपनी में शामिल नहीं करूंगा. इसी वजह से सुधा मूर्ति कभी भी इंफोसिस का हिस्सा नहीं बन सकीं. नारायण मूर्ति ने कहा था कि वह परिवार को लेकर उनका आदर्शवाद गलत था. यही वजह है कि उनके बेटे रोहन मूर्ति ने भी इंफोसिस ज्वाइन नहीं की. उनकी बेटी अक्षता मूर्ति की शादी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से हुई है.

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इंफोसिस से पहले बनाई सोफ्ट्रॉनिक्स हो गई थी फेल 

नारायण मूर्ति ने इंटरव्यू में यह भी स्वीकारा कि इंफोसिस के पहले भी उन्होंने एक कंपनी बनाई थी, जो कि चल नहीं सकी. 77 वर्षीय अरबपति ने बताया कि उन्होंने सोफ्ट्रॉनिक्स (Softronics) की स्थापना की थी. मगर, इसमें हम फेल हो गए थे. इसके बाद उन्होंने पुणे में पटनी कंप्यूटर को ज्वाइन किया था. उन्होंने पहली नौकरी आईआईएम अहमदाबाद में की थी. उन्होंने एक बार फिर से हफ्ते में 70 घंटे काम करने के अपने विचार को सही ठहराया.

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