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नहीं रहे PM मोदी के चाणक्य कहे जाने वाले ‘बिबेक देबरॉय’, 69 साल की उम्र में ली आखिरी सांस, जानिए उनके बारे में

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प्रधानमंत्री इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल के चैयरमैन और अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय का शुक्रवार 1 नवंबर 2024 को निधन हो गया. बिबेक देबरॉय भारत सरकार के कई प्रमुख संस्थानों के साथ जुड़े रहे हैं. सितंबर 2017 में चेयरमैन के पद पर उनकी नियुक्ति हुई थी. जनवरी 2015 में उन्हें नीति आयोग के स्थाई सदस्य बनाया गया. तब योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ली थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा, डॉ. बिबेक देबरॉय को एक महान विद्वान बताया है.

नीति आयोग के थे स्थाई सदस्य

मोदी सरकार के साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही बिबेक देबरॉय सरकार की आर्थिक नीति को तैयार करने वाले विभागों के साथ जुड़े रहे हैं. बतौर  प्रधानमंत्री इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल चैयरमैन बिबेक देबरॉय  मैक्रोइकोनॉमिक मुद्दों, राजकोषीय पॉलिसी, रोजगार और सार्जनिक क्षेत्र की कंपनियों के मैनेजमेंट को लेकर लगातार सरकार को सलाह देते रहे हैं. साल 2014 से 2015 के दौरान रेल मंत्रालय के पुनर्गठन को लेकर बनाई गई कमिटी के भी वे चेयरमैन रह चुके हैं.

बिबेक देबरॉय ने रामकृष्ण मिशन विद्यालय, नरेंद्रपुर में स्कूली शिक्षा हासिल की. उसके बाद उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और  दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की. इसके बाद वे ट्रिनिटी कॉलेज स्कॉलरशिप के जरिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए चले गए. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बिबेक देबरॉय के साथ अपनी तस्वीर को साझा करते हुए पीएम मोदी ने लिखा, मैं डॉ बिबेक देबरॉय को कई वर्षों से जानता हूं. मैं उनके एकेडमिक डिस्कोर्स के प्रति उनके गहन ज्ञान और जुनून को प्रेमपूर्वक सदा याद रखूंगा. पीएम मोदी ने कहा, वे बिबेक देबरॉय के निधन से बेहद दुखी हैं. प्रधानमंत्री ने उनके परिवार तथा मित्रों के लिए अपनी संवेदनाएं भेजी है.

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पीएम मोदी ने कहा, बिबेक देबरॉय एक महान विद्वान थे जिन्हें अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, आध्यात्मिकता और अन्य क्षेत्रों का बहुत ज्ञान था. अपने कार्यों से उन्होंने भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है. पब्लिक पॉलिसी में अपने योगदान के अलावा, उन्हें हमारे प्राचीन ग्रंथों पर काम करने और उन्हें युवाओं के लिए सुलभ बनाने में आनंद आता था.

बिबेक देबरॉय ने प्रेसीडेंसी कॉलेज में 1979 से लेकर 1983 तक काम किया है. इसके बाद वे पुणे स्थित गोखले इंस्टीच्युट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के साथ 1983 से 1987 तक जुड़े रहे. बिबेक देबरॉय ने कई किताबें भी लिखी और धर्मग्रंथों का अनुवाद किया है.

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