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क्या बुलडोजर कभी भी किसी भी मकान पर चला सकती है सरकार? जानिए क्या है सरकारी कानून

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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद बुलडोजर ज्यादा ही चर्चा में बना हुआ है. अपराधियों और माफिया की संपत्ति पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं. अब हाल ही में प्रयागराज में हुई हिंसा के मास्टरमाइंड कहे जा रहे जावेद अहमद उर्फ जावेद पंप के मकान को भी बुलडोजर चलाकर ढहा दिया गया. इस कार्रवाई पर सवाल उठाए जा रहे हैं. जावेद के परिवार ने प्रशासन पर अवैध और गैरकानूनी कार्रवाई करने का आरोप लगाया है.

जावेद अहमद की पत्नी परवीन फातिमा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया है कि जो घर गिराया गया था, वो उनके नाम पर था और प्रयागराज विकास प्राधिकरण (PDA) की कार्रवाई अवैध है. उन्होंने याचिका में ये भी कहा है कि उस मकान पर मालिकाना हक जावेद का था ही नहीं, फिर भी उन्हें नोटिस दिया गया और प्रशासन ने अवैध तरीके से मकान ध्वस्त कर दिया.

वहीं, पीडीए का कहना है कि ये मकान नक्शा पास कराए बिना बनाया गया था, इसलिए 10 मई 2022 को जावेद को अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस दिया गया था. इसके लिए 24 मई 2022 की तारीख तय की गई थी. पीडीए के मुताबिक, तय तारीख पर भी जब जावेद या उसके वकील नहीं आए तो मकान को ध्वस्त करने का आदेश पास किया गया और मकान ढहाने के लिए 12 जून की तारीख तय की गई.

अब इस पूरे मामले के बाद सवाल है कि क्या प्रशासन किसी भी मकान या घर को ऐसे तोड़ सकता है या ढहा सकता है? अगर हां, तो किस कानून के तहत ऐसा कर सकता है? कैसे माना जाएगा कि कोई मकान या घर अवैध है या नहीं?

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अर्बन प्लानिंग डेवलपमेंट एक्ट में है इसका जवाब

– उत्तर प्रदेश में 1973 से अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट लागू है. इस कानून में बताया गया है कि किस मकान को तोड़ा या हटाया जा सकता है? मकान ढहाने से पहले क्या प्रक्रिया होती है? जिसका घर तोड़ा जा रहा है, वो क्या कर सकता है? ये सब इस कानून की धारा 27 में बताया गया है.

– धारा 27 कहती है कि कोई भी मकान या घर या विकास कार्य मास्टर प्लान का उल्लंघन कर या मंजूरी के बिना या किसी शर्त का उल्लंघन कर किया गया हो या किया जा रहा हो तो प्रशासन उसको ध्वस्त करने या हटाने का आदेश दे सकता है.

– अब ये काम कैसे होगा? तो होगा ये कि प्रशासन बुलडोजर चलाकर उस मकान को ढहा दे या उसका कुछ हिस्सा हटा दे या फिर अगर कहीं खुदाई वगैरह हुई हो, तो उसे दोबारा भर दे या फिर उस काम को करवाने वाला खुद ही हटा दे.

– एक बार किसी मकान, घर या अवैध इमारत को ढहाने या गिराने का आदेश पारित हो जाता है तो ये काम 15 दिन से लेकर 40 दिन के भीतर पूरा हो जाना चाहिए. कानून में ये भी लिखा है कि इस पूरी कार्रवाई का खर्च मालिक या उससे लिया जाएगा जो ये काम कर रहा है. इस वसूली को किसी सिविल कोर्ट में चुनौती भी नहीं दी जा सकती.

मालिक के पास क्या विकल्प है?

– कोई भी कार्रवाई एकतरफा नहीं हो सकती. जिस इमारत या मकान या विकास कार्य को गिराने का आदेश पारित किया जाता है, तो उसके मालिक या उस काम को जो कर रहा हो उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है.

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– आदेश जारी होने के 30 दिन के भीतर संपत्ति का मालिक प्राधिकरण के चेयरमैन के सामने अपील कर सकता है. चेयरमैन उस सुनवाई के बाद आदेश में कुछ संशोधन कर सकते हैं या फिर उसे रद्द कर सकते हैं. हर हाल में चेयरमैन का फैसला ही आखिरी माना जाएगा. चेयरमैन के फैसले को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती.

ध्वस्तीकरण और अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले

– 1985 में ओल्गा तेलिस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आजीविका जीवन जीने के अधिकार का हिस्सा है. कोर्ट ने ये भी कहा था कि कुछ चुनिंदा मामलों को छोड़कर बॉम्बे के म्युनिसिपल कमिश्नर को नोटिस देना चाहिए. दरअसल, बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन एक्ट में प्रावधान था कि कमिश्नर बिना नोटिस दिए किसी भी अतिक्रमण को हटा सकते हैं.

– 1999 में सौदन सिंह बनाम एनडीएमसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कारोबार या व्यवसाय करना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत हर व्यक्ति का अधिकार है और सड़क किनारे फेरी लगाने वाले भी इसके अधीन हैं. कोर्ट ने कहा था कि सड़क का इस्तेमाल करना सबका अधिकार है. कोर्ट ने कहा था कि प्रशासन हॉकर्स और फेरीवालों को सड़क किनारे ठेला लगाने की अनुमति दे सकता है. हालांकि, कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि हर सड़क या फुटपाथ पर फेरीवालों को बैठने नहीं दिया जा सकता. इस फैसले के बाद उत्तरी दिल्ली नगर निगम तहबाजारी लाइसेंस नियम बनाया था.

– 1995 में करनाल म्युनिसिपल कमेटी बनाम निर्मला देवी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी सार्वजनिक सड़क म्युनिसिपल कमेटी के अधीन है. अगर इस सड़क पर कोई भी अवैध निर्माण किया जाता है तो उसे हटाने या ढहाने का नोटिस दिया जा सकता है. अगर तय समय पर ये अतिक्रमण नहीं हटाया जाता है तो फिर कमेटी अतिक्रमण और निर्माण को हटा सकती है.

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– 1996 में अहमदाबाद नगर निगम बनाम नवाब खान गुलाब खान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर अतिक्रमण नया है तो उसे बिना नोटिस के हटाया जा सकता है, लेकिन अतिक्रमण लंबे समय से है तो प्रशासन को हफ्ते या 10 दिन पहले नोटिस देना जरूरी है. अगर तय समय में अतिक्रमण नहीं हटाया जाता है तो प्रशासन अपनी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है.

– अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर में रेलवे की जमीन पर बनी 48 हजार से ज्यादा झुग्गियों को हटाने का आदेश दिया था. हालांकि, ये भी साफ किया था कि वो झुग्गियां तब तक नहीं हटाई जा सकतीं, जब तक झुग्गीवालों के रहने का इंतजाम नहीं किया जाता.

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