Home Breaking News धामी सरकार चुनावी साल में फिर देने वाली है तोहफा, 500 से ज्यादा मलिन बस्तियों को बचाने के लिए यह है तैयारी
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धामी सरकार चुनावी साल में फिर देने वाली है तोहफा, 500 से ज्यादा मलिन बस्तियों को बचाने के लिए यह है तैयारी

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देहरादून: उत्तराखंड में नगर निकाय चुनाव से पहले मलिन बस्तियों के नियमितीकरण का मुद्दा एक बार से सुर्खियों में है. कांग्रेस जहां मलिन बस्तियों को नियमित करने की मांग कर रही है, वहीं बीजेपी मलिन बस्तियों को बचाने के लिए अध्यादेश लाने जा रही है.

2018 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार मलिन बस्तियों को उजाड़ने से बचने के लिए अध्यादेश लाई थी, जिसकी समय अवधि तीन साल तय की गई थी. यह समय अवधि अब पूरी हो चुकी है. ऐसे में एक बार फिर मलिन बस्तियों का मामला गरमाने लगा है. चूंकि दिसंबर माह में निकाय चुनाव भी प्रस्तावित हैं. ऐसे में प्रदेश के दोनों ही प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस बड़े वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं.

मामले को लेकर शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा है कि अध्यादेश की अवधि 21 अक्टूबर को नहीं, बल्कि 23 अक्टूबर को खत्म हो रही है. मंत्री ने स्पष्ट किया है कि आगामी 23 अक्टूबर को होने वाली मंत्रिमंडल की बैठक में सरकार अध्यादेश का प्रस्ताव लेकर आएगी और अध्यादेश को एक बार फिर बढ़ाया जाएगा. शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस अध्यादेश की समय अवधि 3 साल के लिए और बढ़ाई जाएगी.

जानिए क्या है पूरा मामला: दरअसल, साल 2012 में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के सख्त रुख और उत्तराखंड हाईकोर्ट के अतिक्रमण हटाने को लेकर दिए गए आदेश के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मलिन बस्तियों के नियमितिकरण की प्रक्रिया शुरू की थी. सरकार ने कुछ लोगों को मालिकाना हक भी दे दिया था. हालांकि साल 2017 में सत्ता बदली और बीजेपी की सरकार बनी. बीजेपी ने सरकार ने मलिन बस्तियों के ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाई. इसके लिए बाकायदा त्रिवेंद्र सरकार 17 अक्टूबर 2018 को अध्यादेश लेकर आई, जिसकी अवधि तीन साल की थी, जो 21 अक्टूबर 2021 को खत्म हो गयी थी.

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हालांकि सरकार फिर से 21 अक्टूबर 2021 को तीन साल के लिए अध्यादेश लेकर आई. समस्या ये है कि 21 अक्टूबर को इस अध्यादेश की अवधि खत्म हो रही है. लेकिन सरकार का कहना है कि अध्यादेश की अवधि 21 नहीं, बल्कि 23 अक्टूबर को खत्म हो रही है. वहीं अब निकाय चुनाव से पहले सरकार फिर से तीन साल का अध्यादेश लाने जा रही है.

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