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डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर से बढ़ी देश के विकास की रफ्तार, व्यापार और जीवन हुआ आसान!

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नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि जब से देश में आधार के जरिये ग्राहकों की पहचान सत्यापित करने की प्रक्रिया शुरू हुई है, तब से ऋण देने की लागत में 75 प्रतिशत तक की कमी आई है। वाशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की तरफ से डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर पर आयोजित सेमिनार में वित्त मंत्री ने कहा कि यह बात इसलिए भी सही जान पड़ती है कि पिछले कुछ वर्षों से होम लोन, आटो लोन जैसी योजनाओं पर बैंकों व वित्तीय संस्थानों ने लोन प्रोसेसिंग फीस में कोई वृद्धि नहीं की गई है।

लोन देने की प्रक्रिया की लागत 75 प्रतिशत तक घटी

कई अवसरों पर इस फीस को माफ भी किया गया है। अभी भी कई बैंक होम लोन के लिए कोई प्रोसे¨सग फीस नहीं ले रहे। यह इसलिए हुआ है कि अब कुछ ही मिनटों में डिजिटल आधारित पहचान पत्र के जरिये ग्राहक से जुड़ी सारी सूचनाएं बैंक व वित्तीय संस्थान हासिल कर लेते हैं। वित्त मंत्री ने कहा है कि ई-केवाईसी (डिजिटल आधारित ग्राहकों की पहचान सत्यापित करने की प्रक्रिया) से ग्राहकों की जानकारी हासिल करने की लागत घटकर तीन रुपये हो गई है।

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पहले यह 500-700 रुपये तक होती थी। इससे लोन देने की प्रक्रिया की लागत 75 प्रतिशत तक घट गई है। यह बताता है कि डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआइ) सिर्फ सरकारी संस्थानों को ही नहीं बल्कि निजी संस्थानों को भी बहुत फायदा देता है।

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साथ ही यह किसी भी देश में समग्र और मजबूत आर्थिक प्रगति सुनिश्चित करने में भी मदद करता है। पिछले दो वर्षों में भारत ने यह अनुभव किया है कि डीपीआइ से सरकारी व निजी सेवाओं को बहुत ही किफायती लागत पर, बहुत ही कम समय में और उचित व्यक्ति तक पहुंचाया जा सकता है।

61.5 करोड़ लोगों के खाते में सीधे 32.2 अरब डालर भेजे

वित्त मंत्री ने कहा कि डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने के बाद भारत ने 61.5 करोड़ लोगों को सीधे उनके खाते में 32.2 अरब डालर की राशि भेजी है। इससे केंद्रीय सेवाओं व योजनाओं में 27 अरब डालर की बचत हुई है। डीपीआइ की अहमियत भारत को कोरोना काल के दौरान पता चला, जब 16 करोड़ लोगों को 4.5 अरब डालर की राशि बगैर किसी परेशानी के ट्रांसफर कर दी गई।

इससे महामारी से भारतीय इकोनमी को उबारने में भी काफी मदद मिली है। वित्त मंत्री ने कहा कि डिजिटल क्षेत्र में अपने लाभकारी अनुभव को भारत दूसरे देशों के साथ भी साझा करने को तैयार है और इस बारे में जी-20 के तहत भी बातचीत हो रही है।

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