Home Breaking News गरीबी की दास्तां! जूठन से जुटाई रोटियों का बंटवारा, रुला देगा यूपी का ये वाक्या
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गरीबी की दास्तां! जूठन से जुटाई रोटियों का बंटवारा, रुला देगा यूपी का ये वाक्या

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फिरोजाबाद: दुनियां में भूख से बढ़कर कोई दुःख नहीं होता है। ऐसी ही बेरहम गरीबी की बानगी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में देखने को मिली। जहां एक मां भूखे बच्चों के लिए जूठन से रोटियां जुटाई और जब इन रोटियों का बोझ भारी लगा तो रौशनी देखकर सड़क पर बैठ गई और बंटवारां करने लगी। जिसने भी ये वाकया देखा उसका दिल पसीज गया। वैसे तो ये बंटवारा तंत्र की संवेदना और सरकारी दावों पर सवाल उठाता है। हम सबकी इंसानियत और मानवता को झकझोरता है। खुद से सवाल पूछा जाता है, कब समाप्त होगा भूख का ये दर्दनाक काल?

लेबर कालोनी रेलवे फाटक की घटना

आपको बता दें शनिवार रात 11 बजे लेबर कालोनी से रेलवे फाटक की तरफ बंद सुनसान सड़क पर स्ट्रीट लाइट के नीचे दो महिलाएं बैठकर जूठी रोटियों का बंटबारा कर रहीं थीं, जो उन्होंने शादी समारोह में प्लेटें धोते समय इकट्ठा की थीं। मीडिया से बात करते हुए एक महिला ने बताया कि अकेली पर रोटियों का ये बोझ उठ नहीं रहा था इसलिए अपना-अपना हिस्सा बांट रही हैं। ये रोटियां घर में बच्चों को खिलाएंगीं..।

दोनों महिलाएं लालपुर मंडी के बिलाल मस्जिद के पास रहती हैं

दरअसल, श्रमिक बाहुल्य शहर में रोटियों का बंटवारा करने वाली दोनों महिलाएं लालपुर मंडी के बिलाल मस्जिद के पास की थीं, जो लेबर कालोनी से पांच-छह किमी दूर है। इनमें से एक की उम्र 60 और दूसरी की 50 से अधिक नजर आ रही थी। दोनों ने बताया कि उन्हें शादी में एक महिला ठेकेदार ने भेजा था। प्लेटें धोने के बदले ठेकेदार उन्हें ढाई-ढाई सौ रुपये देगी, जो बाद में मिलेंगे। जिसके यहां शादी थी उसने कुछ रोटियां, सब्जी और दूसरे पकवान दिए हैं, लेकिन उससे पूरे घर का पेट नहीं भर सकता। इसलिए वे जूठी प्लेटों में बची हुई रोटियों के टुकड़े एक छोटी बोरी में इकट्ठी करती रहीं। इनमें बहुत से निवाले भी शामिल थे।

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इनके पास न तो राशन कार्ड है और न ही पेंशन मिलती है

जब हमारे संवाददाता ने माताओं से बात की तो उन्होंने बताया कि उनके पास न तो राशन कार्ड है और न ही उन्हें किसी तरह की पेंशन मिलती है। सच भी यही है, सामना करने वाले सो रहे हैं। गरीबी दुनिया की सबसे बुरी चीज होती है, इसकी गवाही उनके चेहरे दे रहे थे। गरीबी पर सवाल पूछा गया तो उन्हें लगा जैसे रोटियों के इन टुकड़ों को बटोर कर उन्होंने कोई गलती तो नहीं कर दी। बोलीं, कोई बात हो गई क्या.. हम केवल रोटियां ही लाए हैं, और कुछ नहीं, इन्हें लेकर चल नहीं पा रहे थे, इसलिए अपने अपने हिस्से की रोटी बांट रहे हैं, ताकी अपना-अपना बोझ उठाकर ले जा सकें।

ये माताएं तो किसी तरह चली गईं, रह गई तो एक बात, क्या तंत्र को दिखता है यह लोक?

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