नोएडा। प्राधिकरण की महत्वाकांक्षी हेलीपोर्ट योजना को बंद किया जा सकता है। इसके अधिकारिक संकेत मिलने लगे हैं। इस परियोजना की इकोनामिक वायबिलिटी नहीं होने की वजह से हवाई सेवा से जुड़ी कई कंपनियों ने बातचीत के बाद परियोजना के नोएडा में सफल होने की संभावना को कम आंका जा रहा है।
जेवर स्थित नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा आने, दिल्ली आइजीआइ एयरपोर्ट नजदीक होने के कारण यहां पर लोगों के नहीं पहुंचने की संभावना जताई जा रही है। इसलिए परियोजना को ठंडे बस्ते में डालने का निर्णय लिया गया है।
प्राधिकरण अधिकारियों के मुताबिक प्राधिकरण ने वर्ष 2020 में सार्वजनिक निजी भागीदारी के आधार पर वाणिज्यिक संचालन के लिए एक ग्रीनफील्ड हेलीपोर्ट विकसित करने का निर्णय लिया था। यह निर्णय जेवर में नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, फिल्म सिटी, मल्टी-माडल लाजिस्टिक्स और ग्रेटर नोएडा में ट्रांसपोर्ट हब जैसे अन्य क्षेत्रों में चल रहे विकास को देख लिया गया।
2022 में निकाला गया ग्लोबल टेंडर
नोएडा सेक्टर-151ए में पब्लिक प्राइवेट पाटनर्शिप पीपीपी (माडल) पर प्रस्तावित परियोजना का खाका तैयार कर वर्ष 2022 में 43.13 करोड़ रुपए खर्च करने निर्णय कर ग्लोबल टेंडर निकाल दिया।
हेलीपोर्ट का डिजाइन बेल 412 (12 सीटर) के अनुसार तैयार किया गया। जिसमें 5 बेल 412 के पार्किंग ऐप्रान की सुविधा, वीवीआइपी या आपातकाल के समय 26 सीटर एमआइ 172 भी उतारने की सुविधा शामिल की गई। जिस कंपनी को इसका निर्माण करना था, उसे 30 वर्ष के लिए संचालन कर जिम्मा देना तय किया गया।
अमलीजामा पहनाने के लिए वर्ष 2022 में दो बार परियोजना का टेंडर भी निकाला गया, लेकिन सिर्फ एक ही कंपनी रिफेक्स एयरपोर्ट एवं ट्रांसपोर्टेशन प्राइवेट लिमिटेड ने आवेदन किया है। एक बार भी फाइनेंसियल बिड नहीं खोली जा सकी।
इसकी बड़ी वजह यह रही कि फाइनेंशियल बिड खोलने को लेकर प्राधिकरण की तत्कालीन सीईओ रितु माहेश्वरी ने रूचि नहीं दिखाई। लंबे समय तक फाइल को अपने पास रोक कर रखा।
खामियाजा यह हुआ कि फाइनेंशियल बिड खोलने के लिए 180 दिन की निर्धारित समय सीमा पार हो गई, 210 दिन बाद इसकी बिड खोलने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया, जो परियोजना का टेंडर रद करने का भी कारण बना।
सुझाव पर अमल नहीं
हेलीपोर्ट निर्माण व संचालन कंपनियों को आर्थिक रूप से यह परियोजना हितकर नहीं लगी है। इसमें टेंडर नियम शर्त को उनके सुझाव के आधार पर तैयार नहीं किया गया। जबकि हवाई सेवा से जुड़ी 18 कंपनियों को बुलाया गया था। जिसमें से 8 कंपनियां बैठक में शामिल हुई।
पांच ने सुझाव दिए, इन्हीं सुझावों पर एनआइटी में बदलाव किया गया। जिसके बाद बोर्ड से अप्रूवल के बाद ग्लोबल टेंडर जारी किया गया था। हवाई सेवा से जुड़ी कंपनियाें के सुझाव को ठीक से अधिकारियों ने अमल नहीं किया। यही कारण रहा की कंपनियों ने टेंडर में रुचि नहीं दिखाई। दो बार ग्लोबल टेंडर जारी होने के बाद भी सिर्फ एक ही कंपनी आई।
इन कारणों से परवान नहीं चढ़ी परियोजना
- नोएडा एयरपोर्ट और प्रस्तावित हेलीपोर्ट का नजदीक होना
- जिन स्थानों का हवाई सफर बनाया गया वह महज 100 से 500 किमी के रेंज में है।
- यहां सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- शर्त में जो कंपनी इसका निर्माण करेगी वह सिर्फ 30 साल तक ही संचालन करेगी।
- टेंडर शर्त में कई ऐसे क्लाज है जिनका पालन करना कंपनियों के लिए मुश्किल है।
देश के इन शहरों को नोएडा से जोड़ा जाना था
दूरी | स्थान |
100 से 200 किमी | मथुरा, आगरा |
200 से 300 किमी | मसूरी , यमुनोत्री, पंतनगर, नैनीताल, उत्तरकाशी , श्रीनगर, गोचर, अलमोड़ा, न्यू टिहरी, शिमला, हरिद्धार, जयपुर, चंडीगढ़, ओली |
300 से 400 किमी | बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री , जोशीमठ, रामपुर, मंडी, अजमेर |
400 से 500 किमी | मनाली, बीकानेर, जोधपुर, डलहौजी, अयोध्या |
हेलीपोर्ट निर्माण व संचालन कंपनियों को आर्थिक रूप से यह परियोजना हितकर नहीं लगी है। इसलिए परियोजना को अभी रोक दिया गया है।
-संजय कुमार खत्री, अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी, नोएडा प्राधिकरण।