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ग्रेटर नोएडा का 25 साल का भ्रष्टाचार, तीन माह में तार-तार, जानिए पूरी खबर

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ग्रेटर नोएडा: भूमाफिया यशपाल तोमर के भ्रष्टाचार का साम्राज्य उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक फैला था। पुलिस व प्रशासन में उसकी पहुंच का ही असर था कि जांच तो कई बार हुई, लेकिन परिणाम एक बार भी नहीं निकला। विभागों में पहुंच के दम पर उसने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा जारी जांच के आदेश को भी फाइलों में दबवा दिया था, साथ ही विरोधियों को जेल पहुंचा दिया। शासन से जांच का आदेश हुआ तो जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने एडीएम वंदिता श्रीवास्तव को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने 25 साल के भ्रष्टाचार के किले को नेस्तनाबूत कर दिया। घोटाले की नींव में आइएएस व आइपीएस स्तर के अधिकारी व उनके रिश्तेदार थे।

भ्रष्टाचार की शुरुआत 1970 में नियमों को ताक पर रखकर चिटहेरा गांव में पट्टे की जमीन आवंटित कराने से हुई। दूसरा घोटाला 1997 में हुआ। पैसों के मकड़जाल में दादरी तहसील के अधिकारी ऐसे फंसे कि उन्होंने पहले तो गांव से बाहर के लोगों के नाम पट्टा आवंटित कर दिया। पट्टा रजिस्टर में जमीन का रकबा भी बढ़ा दिया। नियम विरुद्ध जमीन को संक्रमणीय भूमिधर भी घोषित कर दिया, जिससे जमीन बेची जा सके और प्राधिकरण से उसका मुआवजा भी उठाया जा सके। पग-पग में भ्रष्टाचार के खेल में अधिकारी से लेकर सफेदपोश तक शामिल हुए। 25 वर्ष में छह बार हो चुकी है जांच

यशपाल तोमर व उसके साथियों के द्वारा पट्टे की जमीन आवंटन में हो रहे भ्रष्टाचार की शिकायत पूर्व में कई बार हो चुकी है। पूर्व में अलग-अलग समय में छह बार मामले की जांच नोएडा, मेरठ व हापुड़ में हुई। परिणाम हर बार फाइलों में ही दफन हो गए। जिन लोगों ने शिकायत की, उनके खिलाफ यशपाल ने उत्तर प्रदेश में विभिन्न स्थानों के साथ ही दिल्ली, पंजाब व उत्तराखंड में लूट, दुष्कर्म सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज करा दिया। फाइलों में दब गया पूर्व मुख्यमंत्री का आदेश

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पट्टे की जमीन के भ्रष्टाचार की शिकायत पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कार्यकाल में भी हुई। उन्होंने जांच के आदेश दिए। जिला प्रशासन के द्वारा हाल ही में गई जांच में उस आदेश की कापी की संलिप्त है। पता चला कि सरकार बदलने पर उनका आदेश भी फाइलों में दब गया था। इसके बाद लोगों को यशपाल की पहुंच का अंदाजा लगा। जांच से अधिकारी ने किया किनारा

हाल ही में शासन स्तर पर हुई शिकायत के बाद जिला प्रशासन के एक अन्य अधिकारी को जांच सौंपी गई थी। सूत्रों का कहना है कि मामले में बड़े-बड़े अधिकारी और सफेदशपोश नेताओं का नाम शामिल होने की वजह से अधिकारी ने जांच करने से मना कर दिया था। इसके बाद वंदिता श्रीवास्तव को जांच की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई थी। दबाव को किया नजरअंदाज

एडीएम वंदिता श्रीवास्तव की गिनती सख्त अधिकारियों में होती है। पट्टे की जमीन के फर्जीवाड़े व जांच में जिन-जिन अधिकारियों ने लीपापोती की थी, वंदिता श्रीवास्तव द्वारा जांच करने से उनके माथे पर शिकन पड़ने लगी। उन्होंने दबाव बनाने का प्रयास किया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। जांच रिपोर्ट शासन को जा चुकी है। जिसमें जिले में पूर्व में तैनात रहे कई पीसीएस व आइएएस अधिकारियों की संलिप्तता का इशारा है। सूत्रों की मानें तो मामले में कार्रवाई के लिए शासन जल्द कमेटी गठित कर सकता है।

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