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प्लास्टिक वेस्ट मामले पर HC नाराज, कहा- केदारनाथ की तर्ज पर पूरे राज्य में हो कूड़ा निस्तारण, प्रोडक्ट पर लगे QR कोड

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नैनीताल : हाई कोर्ट ने केदारनाथ की तर्ज पर पूरे उत्तराखंड में प्लास्टिक की बोतलों और प्लास्टिक पैकेजिंग वाले सामानों पर क्यूआर कोड लगवा कर डिजिटल डिपाजिट सिस्टम के तहत पैकेजिंग और बोतलों को वापस करने वाले लोगों को प्रोत्साहन राशि देने की स्कीम लागू करने के निर्देश दिए हैं।

कोर्ट ने कहा है क्यूआर कोड की व्यवस्था निर्माता के स्तर पर ही कराने के राज्य सरकार आदेश निकाले ताकि उत्तराखंड में आने वाले प्लास्टिक पैकेजिंग के प्रोडक्ट पर पूर्व से ही क्यूआर कोड लगा हो। जिसे मैटेरियल रिकवरी सेंटर में दिखाने पर और पैकेजिंग और बोतल वापस करने पर उसकी प्रोत्साहन राशि का भुगतान हो सके।

कोर्ट ने राज्य सरकार को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सभी स्वच्छता कार्मिकों की बायोमैट्रिक उपस्थिति और सभी कूड़ा वाहनों पर जीपीएस लगाकर उनकी ट्रैकिंग ऐप के माध्यम से सुनिश्चित करने को कहा है।

कोर्ट ने निदेशक शहरी विकास और निदेशक पंचायती राज दोनों को इस संबंध में अनुपालन आख्या प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।

HC ने राज्य में सड़कों के किनारे जमा कूड़ा युद्ध स्तर पर हटाने के सख्त निर्देश देते हुए इसके अनुपालन की रिपोर्ट भी पेश करने को कहा है। कोर्ट के दिशा-निर्देश पर्यावरण संरक्षण की दिशा में नजीर माने जा रहे हैं।

शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में अल्मोड़ा निवासी जितेंद्र यादव की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने अधिकारियों को फिर सचेत किया कि प्लास्टिक पर पाबंदी के मामले में कागजी घोड़े दौड़ाने के बजाय धरातल पर दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित कराएं। मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

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यह भी दिए हैं सख्त निर्देश

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पर्यावरण मुआवजा या जुर्माना की धनराशि जो नियमानुसार दो करोड़ तक भी हो सकती है, को प्रभावी करने के लिए दिशा निर्देश जारी करें और एक पृथक अकाउंट की व्यवस्था करें।

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एनजीटी ने राज्य सरकार पर सालिड वेस्ट मैनेजमेंट का पालन नहीं करने पर जो 200 करोड़ का जुर्माना लगाया है। उसका उपयोग उत्तराखंड में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कूड़ा निस्तारण की अवस्थापना सुविधाएं विकसित करने में किया जाए।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जीबी पंत हिमालयन इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों की उच्चस्तरीय टीम द्वारा सुझाए गए उपायों को तत्काल लागू करने के लिए राज्य सरकार आदेश जारी करे।

राज्य सरकार व्यावसायिक वाहन और उत्तराखंड में प्रवेश करने वाले यात्री एवं पर्यटकों के वाहनों में डस्ट बैग और डस्टबिन लगाना सुनिश्चित करे और परमिट की अनिवार्य शर्त के रूप में इसे लागू करने के लिए ट्रैफिक और पुलिस के संबंधित सेक्शन को सर्कुलर के माध्यम से जागरूक करे।

सरकार स्वच्छता मैप और हाई कोर्ट की ओर से जारी की गई ईमेल आईडी जिस पर कूड़ा निस्तारण के संबंध में शिकायत की जा सकती है, उसका व्यापक प्रचार-प्रसार सुनिश्चित करे।

निदेशक शहरी विकास नवनीत पांडे भी सुनवाई में वर्चुअल रूप से उपस्थित हुए जिस पर कोर्ट ने उन्हें सभी आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने आदेश दिए हैं।

अब तक उत्तराखंड में दस हजार छह सौ वन पंचायतों के खसरे-मानचित्र अपलोड हो चुके हैं, शेष बचे 1100 वन पंचायतों के रिकार्ड छह सप्ताह में अपलोड किए जाएं।

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ग्रामीण क्षेत्रों में कूड़ा निस्तारण की अवस्थापना सुविधाओं के संबंध में दाखिल निदेशक पंचायती राज के शपथ पत्र पर अंसतोष जताते हुए कोर्ट ने दूसरा शपथ पत्र प्रस्तुत करने को कहा।

यह थी याचिका

अल्मोड़ा निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने 2013 में प्लास्टिक के उपयोग तथा उसके निस्तारण करने के लिए जो नियमावली बनाई थी, उसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है। 2018 में भारत सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए थे, जिसमें उत्पादनकर्ता, परिवहन कर्ता व विक्रेताओं की जवाबदेही तय की थी कि जितना प्लास्टिकयुक्त माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक वापस ले जाएंगे। अगर नहीं ले जाते हैं तो संबंधित नगर निगम, पालिका या नगर पंचायत या अन्य को फंड मुहैया कराएंगे, लेकिन उत्तराखंड में इसका खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। पर्वतीय इलाकों में कूड़े के ढेर लगे हैं। इसका निस्तारण नहीं किया जा रहा है।

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