नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देश में बाल विवाह बढ़ने के आरोप वाली जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि बाल विवाह में शामिल अभियोजन पक्ष के लोग इसका समाधान नहीं कर सकते हैं।
सर्वोच्च अदालत बुधवार को केंद्र सरकार के हलफनामे से अप्रभावित रहा जिसमें कहा गया था कि विभिन्न राज्यों में अलग जागरूकता अभियान चल रहे हैं और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
भाषणों से जमीनी हालात नहीं बदलते
कोर्ट ने कहा कि इन कार्यक्रमों, भाषणों से जमीनी हालात नहीं बदलते हैं। उल्लेखनीय है कि गैर सरकारी संगठन ‘सोसाइटी फार एनलाइटमेंट एंड वालेंट्री एक्शन’ ने 2017 में सर्वोच्च अदालत में एक जनहित याचिका दायर करते हुए कहा था कि बाल विवाह निरोधक कानून मूल भावना के साथ लागू नहीं किया जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा ने अपना फैसला सुरक्षित करने से पहले केंद्र की ओर से पेश एडीशनल सालिसिटर ऐश्वर्या भाटी और एनजीओ के वकील का पक्ष सुना। खंडपीठ ने दोनों पक्षों को इस संबंध में सुझाव देने को कहा है।
बाल विवाह एक सामाजिक मुद्दा
सीजेआइ ने कहा कि वह यहां किसी की आलोचना करने के लिए नहीं हैं। यह एक सामाजिक मुद्दा है और सरकार इस दिशा में जो भी कर रही है, विधि अफसरों को उस पर अपनी राय देनी होगी। जबकि एडीशनल सालिसिटर ऐश्वर्या भाटी ने खंडपीठ को मौजूदा स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्यों में बाल विवाह के मामले अधिक देखने को मिले हैं।
पांच राज्यों व दादरनगर हवेली, मिजोरम और नगालैंड जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में बाल विवाह का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है। 34 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल 29 ने बाल विवाह पर आंकड़े दिए हैं।