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पूर्व कप्तान की तानाशाही पर हाईकोर्ट का फरमान, साजिश के तहत किये गए ट्रैप ने छोड़ दिए कई सवालिया निशान

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प्रयागराज /इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक थाना सेक्टर-20 नोएडा जनपद गौतमबुद्धनगर में तैनात मनोज पन्त के विरूद्ध चल रहे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के क्रिमिनल केस में मामले की अगली सुनवाई होने तक दण्डात्मक कार्यवाही करने से रोक लगा दी है एवं उत्तर प्रदेश सरकार व पुलिस के आलाधिकारियों से पुनः जवाब तलब किया है। मामले के तथ्य यह है कि पुनरीक्षणकर्ता मनोज पन्त वर्ष 2019 में प्रभारी निरीक्षक के पद पर थाना सेक्टर 20 नोएडा जनपद गौतमबद्धनगर में तैनात थे तो दिनांक 30.01.2019 को मनोज पन्त व 03 अन्य मीडिया कर्मियों के विरूद्ध उसी थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/8/13 एवं 384 आई०पी०सी० में सहायक पुलिस अधीक्षक, नोएडा डा० कौस्तुन द्वारा दर्ज कराई गई थी। मनोज पन्त व 03 अन्य मीडिया कर्मियों पर आरोप था कि इन लोगों ने 8 लाख रूपये पुष्पेन्द्र चौहान से एक किमिनल केस में अभियुक्तों के नाम निकालने के लिये मोंगे थे एवं मनोज पन्त एवं मीडिया कर्मियों को सेक्टर 20 थाना नोएडा से उसी दिन गिरफ्तार किया गया एवं गिरफ्तारी के समय तथाकथित 8 लाख रूपये की बरामदगी भी दिखाई गयी थी। गिरफ्तारी व बरामदगी की पूरी कार्यवाही तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गौतमबुद्धनगर वैभव कृष्ण के निर्देश पर हुई थी। उक्त प्रकरण बहुत संवेदनशील हो गया था एवं मीडिया ने भी हाईलाइट किया था, क्योंकि प्रभारी निरीक्षक सेक्टर 20 नोएडा मनोज पन्त के विरूद्ध उसी थाने में ट्रैपिंग की तथाकथित कार्यवाही दर्शाते हुये 2 लाख रूपये की बरामदगी दर्शायी गयी थी एवं एफ०आई०आर० मनोज पन्त के ही हस्ताक्षर से एवं उन्हीं के पदनाम से जबरदस्ती दबाव में करायी गयी थी।

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गिरफ्तारी के बाद इंस्पेक्टर मनोज पन्त व मीडिया कर्मियों को जेल भेज दिया गया था। इन्हीं आरोपों में मनोज पन्त को तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, गौतमबुद्धनगर वैभव कृष्ण द्वारा दिनांक 30.01.2019 को ही निलम्बित कर दिया गया। हाईकोर्ट से जमानत स्वीकृत होने के बाद मनोज पन्त ने निलम्बन आदेश को माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी। माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निलम्बन आदेश को कानून के विरूद्ध मानते हुये स्थगित कर दिया गया तत्पश्चात् मनोज पन्त का निलम्बन आदेश अपास्त कर दिया गया।

उक्त मामले में दिनांक 29.03.2019 को विवेचक द्वारा मनोज पन्त व तीन अन्य मीडिया कर्मियों के विरूद्ध आरोप पत्र धारा 7/13 (1) बी. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत न्यायालय में प्रेषित किया गया। न्यायालय द्वारा पुनरीक्षणकर्ता को धारा 7/13 पी०सी० एक्ट में विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मेरठ द्वारा तलब किया गया।

पुनरीक्षणकर्ता द्वारा न्यायालय में डिस्चार्ज अप्लीकेशन दिनांक 28.06.2022 को फाइल की गई, तत्पश्चात् विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मेरठ द्वारा पुनरीक्षणकर्ता की डिस्चार्ज अप्लीकेशन दिनांक 15.02.2023 को निरस्त कर दी एवं पुनरीक्षणकर्ता को व्यक्तिगत रूप से नियत तिथि पर न्यायालय में उपस्थित रहने के लिये आदेशित किया गया।

डिस्चार्ज अप्लीकेशन निरस्तीकरण के आदेश दिनांक 15.02.2023 को पुनरीक्षणकर्ता द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिवीजन फाइल करके चुनौती दी गयी। पुनरीक्षणकर्ता वर्तमान समय में पुलिस इंस्पेक्टर के पद पर जनपद कुशीनगर में कार्यरत है।

याची की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं सहायक अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम का कहना था कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 30.01.2019 को दोपहर 3:30 बजे दर्ज कराई गयी जिसके तहत पुनरीक्षणकर्ता को रात्रि 12:05 बजे थाना सेक्टर 20 नोएडा, गौतमबुद्धनगर पर प्रभारी निरीक्षक की कुर्सी पर बैठे हुये दो लाख रूपये की धनराशि बरामद होना कहा गया है, जब कि दिनांक 29.01.2019 को रात्रि 23.03 समय जी०डी० नं0 87 में यह स्पष्ट लिखा है कि मनोज पन्त अन्य पुलिस कर्मियों के साथ मय असलहा सरकारी गाड़ी से चेकिंग, दबिश, वांछित अपराधीगण एवं गस्त के लिये रवाना हुये, जी०डी० नं० 010 दिनांक 30.01.2019 को पुनरीक्षणकर्ता की उपस्थिति थाना सेक्टर 20 नोएडा में दर्ज है तथा थाने पर नक्शा नौकरी तैयार कर समस्त कर्मचारीगणों की डियूटी पुनरीक्षणकर्ता द्वारा लगाई गयी, पुनरीक्षणकर्ता द्वारा दिनांक 07.56 बजे पर सुबह माल गृह व हवालात का मुआयना किया गया।

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जी०डी० नं0 30 दिनांक 30.01.2019 में यह तस्करा दर्ज है कि शिकायतकर्ता सहायक पुलिस अधीक्षक डा० कौस्तुब का आगमन थाना सेक्टर 20 नोएडा दोपहर 15.30 बजे हुआ है। याची के वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि जी०डी० के अवलोकन से स्वतः ही यह स्पष्ट है कि दिनांक 29/30.01.2019 की रात को याची थाना सेक्टर 20 नोएडा में उपस्थित नहीं था तथा ट्रपिंग की पूरी कार्यवाही असत्य एवं निराधार है। पुनरीक्षणकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम द्वारा यह भी दलील दी गयी कि अभियोजन स्वीकृति व्हाट्स अप पर आई०जी० मेरठ परिक्षेत्र द्वारा बगैर साक्ष्यों का अवलोकन किये हुये धारा 384 आई०पी०सी० एवं धारा 7/8/13 (1)बी, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में दी गयी है, जबकि आरोप पत्र पुनरीक्षणकर्ता के विरूद्ध धारा 7/13 (1) बी प्रेषित किया गया है। अभियोजन स्वीकृति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत नहीं ली गयी है। पुनरीक्षणकर्ता के विरूद्ध जो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी है वह पुनरीक्षणकर्ता मनोज पन्त के पदनाम एवं हस्ताक्षर से की गयी है, जो कि यह दर्शाता है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट जबरदस्ती गन प्वाइंट पर तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण के दबाव में विद्वेष की भावना से करायी गयी है। ज्ञात हो कि नोएडा का सेक्टर 20 थाना उ०प्र० का सबसे हाईटेक थाना है एवं थाने में सी०सी०टी०वी० एवं आधुनिक यन्त्र सुचारू रूप से कार्यरत है एवं जी०डी० ऑनलाइन चलती है। पुनरीक्षणकर्ता के विरूद्ध सारी कार्यवाही विद्वेष की भावना से कराई गयी थी एवं पुनरीक्षणकर्ता को उक्त प्रकरण में एक षड्यन्त्र के तहत झूठा फसाया गया था तथा ट्रैपिंग की समस्त कार्यवाही झूठी दर्शायी गयी है।

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उक्त प्रकरण की सुनवाई करते हुये माननीय न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने पुलिस के आलाधिकारियों एवं राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुये पुनः जवाब तलब किया है तथा मनोज पन्त के विरूद्ध चल रहे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के किमिनल केस में मामले की अगली सुनवाई होने तक दण्डात्मक कार्यवाही करने से रोक लगा दी है।

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