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अब दिल्ली में खुला पहला स्किन बैंक, अब मरने के बाद भी कर सकते हैं स्किन डोनेट, Toll Free नंबर जारी

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नई दिल्ली। सफदरजंग अस्पताल में उत्तर भारत का पहला त्वचा बैंक (Skin Bank) शुरू हुआ है। मंगलवार को अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीएल शेरवाल ने नए इमरजेंसी ब्लॉक में इस त्वचा बैंक की शुरूआत की। मौत के बाद स्वजनों की सहमति से मृतक की त्वचा दान की जा सकती है।

अस्पताल के डॉक्टर बताते हैं कि मौत के छह घंटे के भीतर त्वचा दान हो सकती है। दान में मिली त्वचा से बर्न के मरीजों को बड़ी राहत और जिंदगी मिल सकती है। इसके अलावा डायबिटीज व हादसे के कारण हुए गंभीर जख्मों को जल्द भरने के लिए त्वचा प्रत्यारोपण हो सकेगा। इससे हादसा पीड़ितों व डायबिटीज के कारण ना भरने वाले जख्म से पीड़ित मरीजों को भी फायदा होगा।

लगभग डेढ़ लाख लोगों की जलने से होती है मौत

डॉ. शेरवाल ने बताया कि देश में हर वर्ष करीब 70 लाख लोग बर्न (जलने का) के शिकार होते हैं। इनमें से एक लाख 40 हजार बर्न पीड़ितों की मौत हो जाती है। इसके अलावा करीब डेढ़ लाख मरीजों को कई तरह की विकृति हो जाती है।

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इसका कारण यह है कि गंभीर रूप से जलने के बाद जख्म जल्दी भर नहीं पाते और त्वचा भी ठीक से विकसित नहीं हो पाती। यह बेहद गंभीर समस्या है। त्वचा प्रत्यारोपण से ऐसे मरीजों का इलाज आसान हो सकता है।

झुलसे लोगों को पड़ती है नई त्वचा की जरूरत

सफदरजंग अस्पताल के बर्न सेंटर के प्रमुख डॉ. शलभ कुमार ने कहा कि अस्पताल में हर वर्ष बर्न के सात हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। गंभीर रूप से झुलसे ज्यादातर मरीजों को त्वचा लगाने की जरूरत पड़ती है। पहले से त्वचा बैंक मौजूद नहीं होने के कारण मरीज के शरीर के ही किसी हिस्से से त्वचा लेकर जख्म के ऊपर लगाया जाता है। ताकि जख्म जल्दी भर सके।

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अगर त्वचा का जख्म नहीं भरा तो…

जिन मरीजों की त्वचा अधिक झुलस चुकी होती है, उन मरीजों के शरीर के किसी हिस्से से त्वचा निकाल पाना भी मुश्किल हो पाता है। त्वचा प्रत्यारोपण नहीं होने पर जख्म जल्दी भरता नहीं है और संक्रमण होने का भी खतरा रहता है।

डायबिटीज मरीजों के लिए फायदेमंद

इसके अलावा डायबिटीज के कारण गंभीर जख्म होने पर ठीक नहीं होता। उन मरीजों को भी जख्म पर त्वचा प्रत्यारोपण हो सकेगा।

त्वचा प्रत्यारोपण से पहले होती है जांच

दान में त्वचा मिलने के बाद उसकी एचआइवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी इत्यादि वायरल संक्रमण की जांच की जाती है। त्वचा संक्रमण मुक्त होने पर चार से आठ डिग्री तापमान में तीन से पांच वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इस दौरान जरूरतमंद मरीज को उसे लगाया जा सकता है।

बुजुर्ग की मौत के बाद त्वचा दान की हुई शुरुआत

सफदरजंग अस्पताल में मौजूद नोटो (राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन) ने कुछ वर्ष पहले टिश्यू व त्वचा बैंक शुरू किया था। लेकिन वह पहल सफल नहीं हुई। अप्रैल 2017 में सफदरजंग अस्पताल में ही उत्तर भारत में पहली बार 81 वर्षीय बुजुर्ग की मौत के बाद त्वचा दान हुआ था।

अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीएल शेरवाल ने कहा कि अंगदान की जब भी बात होती है तो अक्सर किडनी, लिवर, दिल व फेफड़ा दान की बात कही जाती है। त्वचा और टिश्यू दान के प्रति लोगों में जागरूकता का अधिक अभाव है। इसके लिए गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर लोगों को जागरूक किया जाएगा ताकि, त्वचा दान बढ़ सके।

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