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PM मोदी के निर्देश पर राजद्रोह के कानून पर दोबारा होगा विचार, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया दूसरा एफिडेविट

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नई दिल्ली। वर्तमान राजद्रोह कानून पर अब तक अडिग केंद्र सरकार का रुख अब थोड़ा बदला है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है उसने राजद्रोह कानून आइपीसी की धारा 124ए (आइपीसी) पर पुनर्विचार और जांचने परखने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने कहा है कि जब तक पुनर्विचार की यह प्रक्रिया पूरी होती है, कोर्ट इस कानून की वैधानिकता को परखने में अपना वक्त जाया न करे। माना जा रहा है कि सरकार कुछ ऐसे प्राविधानों को सरल करना चाहती है जिससे इसके दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है। वैसे कुछ स्तरों पर सरकार के इस कदम को राजद्रोह कानून का खात्मे की ओर कदम भी माना जा रहा है। सोमवार को केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून की समीक्षा के निर्णय का हलफनामा पेश किया।

केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजीजू ने बताया कि कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश के बाद ऐसा किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री हमेशा से पुराने और गैर उपयोगी हो चुके कानूनों को खत्म करने या उनकी समीक्षा किये जाने के पक्षधर रहे हैं और इसी आधार पर समीक्षा किया जाएगा।

राजद्रोह कानून की वैधानिकता का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है लंबित

ध्यान रहे कि कोर्ट के साथ साथ कई नागरिक संगठनों की ओर से राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं। ऐसे में समीक्षा के दौरान सिविस सोसायटीज और दूसरे स्टेक होल्डर्स से भी विमर्श होगा। राजद्रोह कानून की वैधानिकता का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। एसजी वोमबटकरे और एडीटर्स गिल्ड सहित कई याचिकाएं लंबित हैं जिनमें राजद्रोह कानून के दुरुपयोग के आरोप लगाते हुए कानून रद करने की मांग की गई है।

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दुरुपयोग को लेचर भी जताई गईं हैं चिंताएं

केंद्र सरकार ने इसी मामले में यह हलफनामा दाखिल किया है। पिछली तारीख पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह 10 मई को इस मुद्दे पर सुनवाई करेंगे कि राजद्रोह कानून की वैधानिकता को चुनौती देने का मामला बड़ी पीठ यानी संविधान पीठ को भेजा जाए कि नहीं। हलफनामे में कहा गया है कि धारा 124ए के बारे में न्यायविदों, विद्वानों और आम लोगों के विभिन्न मत हैं। जबकि वे यह मानते हैं कि देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करने और सरकार को अस्थिर करने को नियंत्रित करने के लिए विधायी कानून की जरूरत मानते हैं। लेकिन इसके दुरुपयोग को लेकर भी चिंताएं जताई गई हैं।

भारत सरकार ने 2014-15 में 1500 पुराने कानून खत्म किये

केंद्र सरकार ने कहा है कि प्रधानमंत्री विभिन्न लोगों द्वारा व्यक्त की गई राय से अवगत हैं और वे कई मंचो पर नागरिकों के मानव अधिकारों और संविधान में मिली आजादी को संरक्षित करने की बात भी कह चुके हैं। प्रधानमंत्री का मानना है कि जब राष्ट्र आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है तो हमें गैर जरूरी हो गए पुराने कानूनों को खत्म करने पर जोर देना चाहिए। इसी सोच के साथ भारत सरकार ने 2014-15 में 1500 पुराने कानून खत्म किये। ये एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है।

सरकार ने कहा है कि वह राष्ट की संप्रभुता और अखंडता बनाए रखने के साथ ही नागरिक अधिकारों के संरक्षण को लेकर भी सचेत है। इसलिए सरकार ने आइपीसी की धारा 124ए की पुनर्जांच और पुनर्विचार का निर्णय लिया है और यह काम सिर्फ सक्षम अथारिटी द्वारा ही किया जा सकता है। सरकार ने कोर्ट से कहा है कि इसे देखते हुए कोर्ट इस धारा की वैधानिकता परखने में अपना वक्त जाया न करे और सरकार की सक्षम अथारिटी द्वारा की जाने वाली पुनर्विचार प्रक्रिया का इंतजार करे।

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