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पैरोल की अवधि को सजा से बाहर रखा जाए: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि किसी कैदी की समय से पहले रिहाई पर विचार करते हुए उसे दी गई पैरोल की अवधि को सजा से बाहर रखा जाएगा। बांबे हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा, ’14 वर्ष के वास्तविक कारावास पर विचार करने के दौरान पैरोल की अवधि शामिल करने की कैदियों की ओर से दी गई दलील को अगर स्वीकार कर लिया जाए तो कोई प्रभावशाली कैदी कई बार पैरोल हासिल कर सकता है क्योंकि इस पर कोई प्रतिबंध नहीं है और इसे कई बार प्रदान किया जा सकता है। अगर कैदियों की ओर दी गई दलील को स्वीकार कर लिया जाए तो वास्तविक कारावास का उद्देश्य ही निष्फल हो जाएगा।’

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सभी कैदियों ने नियमों के तहत समयपूर्व रिहाई के लिए आवेदन किया था

शीर्ष अदालत आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे कुछ दोषियों की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें गोवा प्रिजनर्स रूल्स, 2006 के प्रविधानों के तहत पैरोल पर रिहा किया गया था। सभी कैदियों ने नियमों के तहत समयपूर्व रिहाई के लिए आवेदन किया था और स्टेट सेंटेंस रिवेन्यू बोर्ड ने उनकी समयपूर्व रिहाई की सिफारिश की थी।

राज्य सरकार ने इस बारे में सजा सुनाने वाली अदालत की राय मांगी थी और उस अदालत की राय थी कि दोषियों को उनके अपराध की गंभीरता के मद्देनजर समयपूर्व रिहा नहीं किया जा सकता। इसके बाद राज्य सरकार ने उनका आवेदन खारिज कर दिया था और फिर उन्होंने बांबे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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