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वैज्ञानिकों ने मनसा देवी पहाड़ी को बताया बेहद कमजोर, भूस्खलन का खतरा बरकरार; ड्रोन सर्वे की मांग

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मनसा देवी पहाड़ी के भूस्खलन जोन में किए गए जियोलॉजिकल सर्वे में विशेषज्ञों ने असमर्थता जताई है। इसके उचित समाधान के लिए उन्होंने अब तक किए गए जांच को नाकाफी बताया है। जिलाधिकारी को प्रेषित पत्र में विशेषज्ञों ने बताया है कि इस पहाड़ के ट्रीटमेंट से पूर्व उच्च स्तरीय जांच की आवश्यकता है। इसमें क्षेत्र की विस्तृत स्थलाकृतिक, भूवैज्ञानिक, भू-तकनीकी और भूभौतिकीय जांच के बाद उचित समाधान मिल पाएगा।

बता दें कि पहाड़ में हो रहे भौगोलिक परिवर्तन और भूस्खलन को लेकर जिलाधिकारी धीराज सिंह ने जियोलॉजिकल जांच के लिए विशेषज्ञों की टीम बुलाई थी। वॉडिया इंस्टीट्यूट समेत देश के कई नामी संस्थानों के विशेषज्ञों ने इस पहाड़ की प्रकृति की जांच की है। इन सभी के बावजूद किसी ठोस निर्णय पर पहुंचने में सफलता नहीं मिली।

इस बार कांवड़ यात्रा के दौरान हुए जियोलॉजिकल सर्वे के दौरान जो रिपोर्ट विशेषज्ञों ने जिलाधिकारी को प्रेषित की है उसमें उपायों की योजना बनाने, डिजाइन और कार्यान्वित करने के लिए कई सुझाव दिए हैं। विशेषज्ञों ने उच्च स्तरीय जांच को पहाड़ के अस्तित्व को बचाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया है। इस क्षेत्र का कई संगठनों और राज्य विभागों द्वारा निरीक्षण किया गया है, लेकिन अब तक, उचित समाधान पर पहुंचने के लिए कोई विस्तृत जांच नहीं की गई है।

विशेषज्ञों की सिफारिश

-हिल बाईपास सड़क पर ढलान अस्थिरता की समस्याओं का प्राथमिक कारण विशेषज्ञों ने बहुत कमजोर चट्टानें, अत्यधिक अपक्षयित मिट्टी, खड़ी ढलान और सतही अपवाह जल के लिए खराब जल निकासी प्रणाली को बताया है। ऐसी ही समस्याएं उत्तराखंड के अन्य पहाड़ी शहरों में भी है। विशेषज्ञों ने अब तक किए गए अध्ययन के उपरांत निम्नलिखित सिफारिशें सुझाई गई हैं।

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– हिल बाईपास सड़क के किनारे अस्थिर ढलानों को स्थिर करने के लिए रिटेनिंग दीवारों का निर्माण, पानी की उचित निकासी और सतह का उपचार अपनाए जाने वाले महत्वपूर्ण उपाय हैं। चूंकि, प्रभावित क्षेत्रों में पानी का प्रवेश एक बड़ी समस्या के रूप में है, इसलिए उचित जल निकासी के लिए साइट का अध्ययन किया जाना चाहिए। इसके अनुसार क्षेत्र में उचित सतही जल निकासी प्रदान की जानी चाहिए।

– उन चैनलों के साथ कदमवार चेक बांधों के साथ उचित जल निकासी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए जो ढलान के साथ मलबे और कीचड़ को टाउनशिप तक ले जा रहे हैं।

– पुरानी नालियां जो क्षतिग्रस्त हैं और मलबे और कीचड़ से भरी है, उनकी मरम्मत की जानी चाहिए।

– जल निकासी के किनारे चेक बांधों का पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए। ई रिटेनिंग स्ट्रक्चर को पहाड़ी की तरफ के साथ-साथ घाटी की तरफ भी लागू किया जाना चाहिए,

अस्थिर ढलान जहां से मलबा मुख्य रूप से मध्य शिवालिक के मिट्टी के पत्थरों से फिसल रहा है उसकी तरफ।

– ढलान पर ढीली मिट्टी को कीलों और तार की जाली से मजबूत किया जाना चाहिए जिसके बाद उपयुक्त जैव-उपाय अपनाए जा सकते हैं।

– मिट्टी के ढलान पर कटाव नियंत्रण चटाई बिछाना आगे के कटाव और फिसलन को रोकने के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

– संभावना को रोकने के लिए रेलवे ट्रैक के पास अस्थिर ढलान पर आरसीसी रिटेनिंग दीवार का सुझाव दिया गया है, इसके चलते ही ढीला मलबा ट्रैक तक पहुंच रहा है।

– बड़े पैमाने पर समोच्च मानचित्र तैयार करने के लिए पूरे क्षेत्र के मानचित्रण की आवश्यकता है। मनसा देवी पहाड़ी के 3डी स्थलाकृतिक मानचित्रण के लिए ड्रोन सर्वेक्षण का सुझाव दिया गया है, जो उचित जांच योजना और शमन उपायों के लिए बड़े पैमाने पर उपयुक्त मानचित्र और उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियां प्रदान कर सकता है।

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– शमन उपायों के साथ-साथ भूवैज्ञानिक, स्थलाकृतिक, भूभौतिकीय और भू-तकनीकी सर्वेक्षण सहित पूरी विस्तृत जांच की जानी चाहिए। जांच मानसून के मौसम के तुरंत बाद शुरू की जानी चाहिए, ताकि उचित शमन उपायों को डिजाइन और कार्यान्वित किया जा सके।

विशेषज्ञों की ओर मिले सुझाव को अमल में लाया जाएगा। बारिश के बाद इसको आधुनिक संयंत्रों से जांच की जाएगी। इसमें एक महत्वपूर्ण सुझाव ड्रेनेज सिस्टम और मजबूत रिटेनिंग वॉल को लेकर मिले हैं। इस पर कार्य करने से पूर्व विधिवत इसकी कार्ययोजना और रूपरेखा बनाने की आवश्यकता को देखते हुए पुन: इसका अध्ययन किया जाएगा। फिलहाल किसी भी तरीके से पहाड़ के अस्तित्व को पुर्न: सृजित करने के लिए कार्य जारी है। – धीराज गब्र्याल, जिलाधिकारी हरिद्वार

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