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डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को सुप्रीम कोर्ट से झटका, जेल से रिहाई पर लगाई रोक

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नई दिल्ली। बंबई हाईकोर्ट से रिहाई मिलने के एक दिन बाद डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को सुप्रीम कोर्ट से आज बड़ा झटका लगा है। आठ साल पहले माओवादियों की मदद से देश के खिलाफ माहोल बनाने के आरोप में वह गिरफ्तार किए गए थे। बीते दिन बंबई उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने साईबाबा को बरी किए जाने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर फैसला सुनाते हुए उनकी रिहाई पर रोक लगा दी है।

रिहाई पर भी लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने जीएन साईबाबा और अन्य की जेल से रिहाई पर भी रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर मामले के आरोपियों को नोटिस जारी किया है। इस मामले पर एक बार फिर सुनवाई होगी। शीर्ष न्यायालय ने मामले को 8 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

सालिसिटर जनरल ने रिहाई को बताया गलत

सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बीते दिन बाम्बे हाई कोर्ट द्वारा रिहाई देने के खिलाफ कई दलीलें दी। उन्होंने कहा कि नागपुर सेंट्रल जेल में बंद दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर द्वारा किया गया अपराध राष्ट्र के खिलाफ था। हालांकि, उनकी रिहाई को पहले जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और हेमा कोहली की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ठुकरा दिया था। पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल को सलाह दी कि वे सुप्रीम कोर्ट में इसपर अपनी अर्जी डाल सकते हैं।

यह है पूरा मामला

बता दें कि साईबाबा पर नक्सलियों के साथ कथित संबंधों व देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। इसके चलते महाराष्ट्र की गढ़चिरौली अदालत ने 2017 में साईबाबा व पांच अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सजा पाने वाले अन्य लोगों में महेश के.तिर्की, हेम केशवदत्त मिश्रा, प्रशांत राही, विजय नान तिर्की एवं पांडुर पोरा नरोटे शामिल थे।

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नागपुर सेंट्रल जेल में हैं बंद 

शारीरिक अक्षमता की वजह से व्‍हील चेयर के सहारे चलने वाले पूर्व प्रोफेसर साईबाबा फिलहाल नागपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। बाम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने मामले में सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया है। हालांकि, आरोपियों में से एक की अपील की सुनवाई लंबित रहने के दौरान ही मृत्यु हो गई थी।

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