उमेश पाल किडनैपिंग केस में प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट ने माफिया अतीक अहमद को दोषी ठहराया गया है. अतीक अहमद को जब कोर्ट के अंदर ले जाया जा रहा था, तभी वकीलों ने अतीक अहमद के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. अतीक मुर्दाबाद और फांसी दो-फांसी दो के नारे लगाए गए. इस दौरान अतीक का चेहरा उतरा रहा.
अतीक अहमद को 17 साल पुराने केस में आज दोषी ठहराया गया है. दरअसल, अतीक पर जिस उमेश पाल की हत्या का आरोप लगा है, उसी उमेश पाल को 2006 में अतीक अहमद ने अगवा कर लिया था. 24 घंटे तक टॉर्चर करने के बाद अतीक ने उमेश पाल से अपने पक्ष में गवाही भी दिला ली थी. लेकिन घटना के एक साल बाद उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज करा दिया था.
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क्यों नाराज हैं प्रयागराज के वकील?
नारेबाजी कर रहे वकीलों का कहना है कि अतीक अहमद ने हमारे भाई उमेश पाल की हत्या की है, उमेश पाल भी वकील थे और जब उनकी हत्या की गई तो वह काला कोट पहने हुए थे.
क्या है उमेश पाल किडनैपिंग केस?
28 फरवरी 2006 को अतीक अहमद के गैंग ने उमेश पाल का अपहरण कर लिया था. उमेश पाल को अगवा करके कर्बला इलाके के दफ्तर में ले जाया गया. उसे मारा पीटा गया. बिजली के झटके तक दिये गये और हलफनामे पर जबरन दस्तखत कराकर 1 मार्च 2006 को अदालत में ये गवाही भी दिला दी गई कि राजू पाल की हत्या के वक्त वो घटना स्थल पर मौजूद नहीं था.
अतीक अहमद ने एक बार तो अदालत में उमेश पाल से अपने पक्ष में गवाही दिला ली थी लेकिन 2007 में यूपी की सरकार बदलते ही उमेश पाल ने 5 जुलाई को सांसद अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ के अलावा 10 अन्य के खिलाफ अपहरण, मारपीट, धमकी जैसे गुनाहों के आरोप में मुकदमा दर्ज करा दिया था.
एफआईआर 270/2007 नाम के इस मुकदमे में अतीक अहमद, उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ, दिनेश पासी, खान सौकत हनीफ, अंसार बाबा को आरोपी बनाया गया. जांच के दौरान जावेद उर्फ बज्जू, फरहान, आबिद, इसरार, आसिफ उर्फ मल्ली, एजाज अख्तर को भी आरोपी बनाया गया. पुलिस की रिपोर्ट दाखिल होते ही 2009 में अदालत ने आरोप तय कर दिये थे.
इसके बाद अदालत में गवाही का सिलसिला शुरू हुआ तो उमेश पाल की ओर से पुलिसकर्मियों समेत कुल 8 गवाह पेश हुए जबकि अतीक गैंग ने 54 गवाहों से गवाही दिला दी थी.
इसके बाद जब उमेश पाल के मुकदमे की सुनवाई में देर होने लगी तो उमेश पाल ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट के आदेश के बाद 2 महीने में सुनवाई पूरी की गई और उसी सुनवाई में आखिरी गवाही देने के बाद उमेश पाल घर लौटे थे जब उनकी हत्या हो गई थी.