इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि वगैर नियमित विभागीय कार्यवाही के पुलिस कर्मचारियों को निलम्बित करना गलत है। मामले के तथ्य यह है कि याचीगण अतुल कुमार नागर व सुनील शर्मा साइबर क्राइम थाना जनपद गौतमबुद्धनगर में कार्यरत थे एवं उनके विरुद्ध वादिनी मंजू चौहान द्वारा फेस-3 पर मु०अ०सं०-146 / 2021 धारा-342, 386 383 आई०पी०सी० व 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का अभियोग पंजीकृत कराया गया। प्रभारी निरीक्षक साइबर काइम थाना सेक्टर-36 नोएडा गौतमबुद्धनगर द्वारा रिपोर्ट प्रेषित करते हुए उक्त पुलिस कर्मचारियों के विरूद्ध यह कहा गया कि इनका कृत्य न केवल गम्भीर दुराचरण की श्रेणी में आता है अपितु पुलिस विभाग की छवि को भी गम्भीर क्षति पहुँचाता है। इनका उक्त कृत्य इनके कर्तव्यों के प्रति घोर लापरवाही उदासीनता एवं अकर्मण्यता का परिचायक है
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याचीगणों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का मुकदमा दर्ज कराते हुए शिकातयकर्ता मजू चौहान ने यह आरोप लगाया था कि 5 लोग शादे कपड़े में आये और उन्होंने अपने आपको नोएडा साइबर थाने की पुलिस बताया और साथ ही मेरे कम्पनी कार्यालय से वसीम परवेज व सुहैल को पूछताछ करने के बहाने पकड़कर अपने साथ ले गये। दो घंटे बाद उन्होंने मेरे मोबाइल व्हाट्सएप नम्बर पर परवेज के व्हाट्सएप नम्बर पर काल करके तीनों के छोड़ने के बदले 7 लाख रूपये माँगे तथा 5 लाख रूपये में मेरा सौदा तय हो गया। वादिनी मंजू चौहान का आरोप था कि 2 लाख रूपये मैने इन लोगो को दे दिये तथा तीन लाख रूपये मैने अगले दिन इंतजाम करके देने के लिए कहा तो इन्होंने मेरे तीनों आदमियों को छोड़ दिया। उक्त भ्रष्टाचार के मुकदमें में याचीगणों को माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत प्रदान की गयी। पुलिस अधीक्षक साइबर काइम उत्तर प्रदेश लखनऊ के आदेश दिनांक 15 फरवरी 2021 के आदेश के तहत उ०प्र० अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-17 (1) (क) के प्राविधानों के अन्तर्गत आपको तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिया।
उक्त निलम्बन आदेश दिनांक 15.02.2021 के विरूद्ध याची अतुल कुमार नागर एवं सुमित शर्मा ने अलग-अलग याचिकाएं योजित करते हुए माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में निलम्बन आदेश को चुनौती दी।
याचिका में कहा गया है कि प्रार्थी के ऊपर निलम्बन आदेश में जो आरोप लगाये गये है
वह बिल्कुल निराधार एवं असत्य है, एवं प्रार्थी ने कोई अवैध वसूली नहीं की गयी है और न ही
याची के पास से कोई रिकवरी हुई है।
याची के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विजय गौतम एवं अतिप्रिया गौतम ने बहस में यह कहा कि निलम्बन आदेश जारी करने के बाद अपर पुलिस महानिदेशक साइबर क्राइम उत्तर प्रदेश लखनऊ के आदेश दिनांक 02.09.2021 के तहत पुलिस उपाधीक्षक साइबर क्राइम उत्तर प्रदेश लखनऊ को प्रारम्भिक जाँच आवंटित की गयी तथा पुलिस उपाधीक्षक साइबर क्राइम ने याचीगणों को उक्त प्रकरण में अपना अभिकथन प्रारम्भिक जाँच में अंकित कराने के लिए दिनांक 03.09.2021 एवं तत्पश्चात दिनांक 23.11.2021 को उपस्थित होकर अभिकथन अंकित कराये जाने के लिए निर्देशित किया।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विजय गौतम का कहना था कि निलम्बित करते समय सक्षम अधिकारी के पास कोई साक्ष्य नहीं था और बिना ठोस साक्ष्य के निलम्बित करने का आदेश मनमाना कार्य है। बहस में यह भी कहा गया कि निलम्बन आदेश में गलत तथ्य दर्शाये गये है। याचीगणों को उक्त प्रकरण में अभी तक कोई चार्जशीट नहीं दी गयी है। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राजीव जोशी ने अपने आदेश में कहा है कि रिकार्ड अवलोकन करने के बाद यह प्रतीत होता है कि याचीगणों के विरूद्ध प्रारम्भिक जॉच विचाराधीन है तथा माननीय उच्च न्यायालय द्वारा सुधीर कुमार पाण्डेय के केस में यह व्यवस्था प्रतिपादित की गयी है कि जब नियमित जाँच प्रचलित हो, तो ही राज्य कर्मचारी को निलम्बित किया जा सकता है, अतः निलम्बन आदेश विधि के सिद्धान्तों के विरुद्ध है।
हाईकोर्ट ने पुलिस के आला अधिकारियों से 4 सप्ताह में जबाब तलब किया है एवं अग्रिम आदेशों तक निलम्बन आदेश दिनांक 15.02.2021 को अवैध मानते हुए स्थगित कर दिया है।