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आधा दर्जन से अधिक जिलों में तैनात दरोगाओं को नौकरी से हटाने का आदेश रद्द

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हाईकोर्ट ने सभी लाभों सहित की सेवा में बहाली का निर्देश दिया

याचियों को जगह किसी अन्य के परीक्षा देने का है आरोप

प्रयागराज 14 अप्रैल। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ, शाहजहांपुर , बरेली, फिरोजाबाद, गोरखपुर, अलीगढ़ एवं बलिया में तैनात दरोगाओं को राहत देते हुए उन्हें नौकरी से निकालने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने सभी दरोगाओं को सभी परिणामी लाभों सहित सेवा में उनकी बहाली का निर्देश दिया है। यह आदेश जस्टिस अजित कुमार ने
गौरव कुमार, रोहित कुमार, सुधीर कुमार गुप्ता निर्भय सिंह जादौन एवं ज्योति व अन्य दरोगाओं की याचिका पर दिया है।

दरोगाओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अतिप्रिया का कहना था कि याचीगण को नौकरी से निकालने से पूर्व उ प्र पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा न तो उनकी सेवा नियमावली का पालन किया गया था और न ही कोई विभागीय जांच सम्पादित की गई थी।

याचीगणों ने अलग अलग याचिका दाखिल कर उनकी दरोगा के पद पर की गयी नियुक्ति को निरस्त किये जाने एवं सेवा से हटाये जाने के विरूद्ध हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

मामले के अनुसार उ०प्र० पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड लखनऊ द्वारा 9027 पुलिस उपनिरीक्षकों के पदों की भर्ती के लिये विज्ञापन 24 फरवरी 2021 को निकाला गया था। चयन प्रक्रिया में ऑनलाइन लिखित परीक्षा, अभिलेखों की संवीक्षा एवं शारीरिक मानक परीक्षा, शारीरिक दक्षता परीक्षा तथा चिकित्सा परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य था। सभी याचीगणों का चयन पुलिस उपनिरीक्षक के पद पर सम्पूर्ण चयन प्रकिया में सफल घोषित होने के पश्चात् माह फरवरी 2023 में हुआ था। उन्हें उपनिरीक्षक के पद पर फरवरी 2023 में नियुक्ति प्रदान की गयी तथा मार्च 2023 में ट्रेनिंग पर भेजा गया। सभी याचीगणों ने अपना प्रशिक्षण सफलता पूर्वक उत्तीर्ण किया तत्पश्चात् उन्हें दरोगा के पद पर मार्च 2024 में उ प्र के विभिन्न जिलों में पोस्टिंग प्रदान की गयी।

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उप्र पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड, लखनऊ द्वारा दिनांक 27 अक्टूबर 2024 को इन सभी दरोगाओं का चयन निरस्त कर दिया गया तथा सेवा से हटा दिया गया। भर्ती बोर्ड द्वारा दरोगाओं के विरूद्ध पारित आदेश में यह आरोप लगाया गया था कि याचीगणों द्वारा चयन प्रकिया में लिखित परीक्षा के समय स्वयं परीक्षा नहीं दी। बल्कि उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा परीक्षा दी गयी। कार्यदायी संस्था के पास उपलब्ध लिखित परीक्षा में सम्मिलित अभ्यर्थियों के छाप अंगुष्ठ से कराया गया तो दोनों हाथों के अंगुष्ठ छाप का मिलान नहीं हुआ। इस कारण इन सभी दरोगाओं को सेवा से हटा दिया गया।

अधिवक्ता विजय गौतम ने बताया कि इसी चयन प्रक्रिया में अभिलेखों की संवीक्षा एवं शारीरिक मानक परीक्षा तथा शारीरिक दक्षता परीक्षा के समय सैकड़ों दरोगा के पद पर चयनित अभ्यार्थियों को भर्ती केन्द्र से ही एफआईआर दर्ज कराने के बाद गैर कानूनी तरीके से जेल भेज दिया गया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम का कहना था कि उक्त आदेश पारित करने से पूर्व उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली-1991 के नियम 14(1) के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया तथा याचियों के ऊपर जो आरोप लगाये गये है, उसके सम्बन्ध में कोई विभागीय जाँच भी नहीं पूरी की गयी। याचियों को कोई सुनवाई का अवसर नहीं प्रदान किया गया तथा नियम एवं कानून के विरूद्ध उनको सेवाओं से हटा दिया गया।

हाईकोर्ट ने रणविजय सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य तथा विजय पाल सिंह व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य में डिवीजन बेंच द्वारा प्रतिपादित किये गये विधि के सिद्धान्तों का हवाला देते हुए भर्ती बोर्ड द्वारा सेवा से हटाये जाने के आदेश को गैर कानूनी करार दिया तथा दरोगाओं का चयन निरस्तीकरण आदेश एवं सेवा से हटाये जाने के आदेश 27 अक्टूबर 2024 को रद्द कर दिया। कोर्ट ने सेवा को सभी लाभों सहित बहाल करते हुए विपक्षीगण को यह छूट दी है कि वे नये सिरे से नियम एवं कानून के तहत आदेश पारित कर सकते है।

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