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राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में रोड़ा बन रहे ये राज्य; पीएम मोदी ने खुद संभाला मोर्चा…की मैराथन बैठक

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा में हो रही देरी ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज कर दी हैं. मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल वैसे तो जनवरी 2025 में समाप्त हो चुका है, लेकिन अभी तक नए अध्यक्ष के नाम की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. इस देरी के पीछे कई संगठनात्मक और राजनीतिक कारण माने जा रहे हैं. वैसे तो संगठनात्मक चुनावों में देरी इसकी मुख्य वजह है. पार्टी सूत्रों की मानें तो मुख्य तौर पर दो राज्यों के कारण अध्यक्ष की घोषणा अटकी हुई है.

बीजेपी में लगातार बैठकों का दौर चल रहा है. सूत्रों की मानें तो संभावना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अगले महीने तक के लिए और टल सकता है. नियम के तौर पर ये चुनाव इस साल जनवरी में ही होना था. मगर पार्टी के संगठनात्मक चुनाव हो जाने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा की जाती है. पार्टी के विश्वस्त सूत्रों की मानें तो गुजरात और उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव न होने के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अटक गया है और पार्टी अध्यक्ष की घोषणा अभी तक नहीं कर पाई है.

सूत्रों के मुताबिक, जल्दी ही केंद्र सरकार और पार्टी संगठन दोनों में बड़े बदलाव होने हैं. नए अध्यक्ष के चुनाव के बाद बीजेपी संगठन में बड़े बदलाव कर सकती है.

सूत्रों के अनुसार, बीजेपी नेतृत्व का ध्यान फिलहाल मंत्रिमंडल विस्तार और संगठन में बड़े पैमाने पर फेरबदल पर भी है. अब मई 2025 तक अध्यक्ष की घोषणा होने की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 50% तक बदलाव की योजना बना रही है. इसके साथ ही, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में 9 रिक्त स्थानों को भरने की चर्चा भी चल रही है.

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पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक संस्था पार्लियामेंट्री बोर्ड में कद्दावर नेताओं को भी जगह देने की बात सामने आ रही है.

फिलहाल लो-प्रोफाइल नेताओं को जगह दी गई थी जिससे पार्टी ये संदेश देने में काफी हद तक सफल हो पाई थी कि पार्टी के इस सर्वोच्च बोर्ड, पार्लियामेंट्री बोर्ड में भी मध्यम स्तर के नेता शामिल हो सकते हैं.

अध्यक्ष के चयन पर आम राय बनाने की कोशिश

पार्टी के विश्वस्त सूत्रों की मानें तो नए अध्यक्ष के चयन को लेकर पार्टी में फिलहाल आम राय नहीं बन पा रही है. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी संगठन को मजबूत करने और उसे संभाल सकने वाले नेता को अध्यक्ष बनाना चाह रही है. इस बार अध्यक्ष के चयन में जातिगत समीकरण और संदेश के बजाय संगठन को मजबूत करने वाले नेता को प्राथमिकता दी जा सकती है.

सूत्रों के अनुसार, नए अध्यक्ष की घोषणा के बाद 50 प्रतिशत राष्ट्रीय महासचिव भी हटाए जा सकते हैं और नए महासचिवों में युवा नेताओं को भी तरजीह दी जा सकती है. मगर ये नए अध्यक्ष बनने के बाद ही होगा और नई टीम नया अध्यक्ष ही बनाएगा.

पार्टी सूत्रों की मानें तो जल्दी ही सरकार में बड़े फेरबदल भी दिख सकते हैं और केंद्र सरकार से भी कुछ नेताओं को संगठन में लाया जा सकता है. ये फेरबदल बिहार चुनाव से पहले हो सकता है जिसमें सहयोगी दलों को भी जगह मिल सकती है. सूत्रों के अनुसार एनडीए में हाल में शामिल हुए एआईएडीएमके को भी कैबिनेट में जगह मिल सकती है. वर्तमान में केंद्रीय मंत्रिमंडल में 9 जगह खाली है.

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बीजेपी ने संगठन चुनावों में जमीनी कार्यकर्ताओं को महत्व दिया है. जिला अध्यक्षों के चुनाव में 60 वर्ष की उम्र सीमा रखी गई, हालांकि कुछ अपवाद भी हैं. इसी तरह संगठन में कम से कम दस वर्ष से सक्रिय कार्यकर्ताओं को ही चुना जा रहा है. हालांकि इन नियमों में कुछ नेता ऐसे भी हैं मसलन केरल में राजीव चंद्रशेखर इसका अपवाद हैं.

नए अध्यक्ष की रेस में ये नेता शामिल

नए अध्यक्ष के लिए कई नाम चर्चा में हैं, जिनमें के. अन्नामलाई, विनोद तावड़े और सुनील बंसल जैसे नेता शामिल हैं. हालांकि, पार्टी एक ऐसे चेहरे की तलाश में है जो युवा ऊर्जा के साथ-साथ अनुभव का भी संगम हो. इसके अलावा, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए, पार्टी नेतृत्व एक रणनीतिक निर्णय भी लेना चाहता है.

हालांकि चर्चा इस बात की भी है कि इस सप्ताह के अंत तक नए अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है. लेकिन बीजेपी की ओर से इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि घोषणा से पहले सभी के बीच सहमति बनाना जरूरी होता है.

पार्टी नियम के अनुसार बीजेपी के नए अध्यक्ष के चयन में पार्टी के आंतरिक संगठनात्मक चुनाव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. पार्टी के 14 करोड़ से अधिक सदस्यों के साथ, इन चुनावों को पूरा करने में समय लगता है. इस मुद्दे पर हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि इतने बड़े संगठन में अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में समय लगना स्वाभाविक है. संगठनात्मक चुनाव अभी पूरे नहीं हुए हैं, जिसके कारण घोषणा में विलंब हो रहा है.

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इसके अलावा भाजपा अध्यक्ष के चयन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भी पार्टी के लिए वैचारिक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है. नए अध्यक्ष के चयन में आरएसएस की सहमति भी अहम होती है. सूत्रों के अनुसार, बीजेपी और आरएसएस के बीच नए चेहरे को लेकर चर्चा चल रही है, लेकिन अभी तक पूर्ण सहमति नहीं बन पाई है. सूत्रों की मानें तो आरएसएस एक युवा और अनुभवी नेता को प्राथमिकता देना चाहता है, जो पार्टी को नई दिशा दे सके.

मंत्रिमंडल विस्तार और संगठन में फेरबदल पर जोर

सूत्रों के अनुसार, बीजेपी नेतृत्व फिलहाल मंत्रिमंडल विस्तार और संगठन में बड़े पैमाने पर फेरबदल पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है, जबकि मई 2025 तक अध्यक्ष की घोषणा होने की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 50% तक बदलाव की योजना बना रही है. इसके साथ ही, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में नौ रिक्त स्थानों को भरने की उम्मीद है.

पार्टी अध्यक्ष के लिए एक ऐसे नेता की तलाश में है जो न केवल संगठन को मजबूत करे, बल्कि आगामी चुनावों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके. मई 2025 तक इस घोषणा के होने की उम्मीद है, लेकिन तब तक अटकलों का दौर जारी रहेगा.

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