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नोएडा में दिवालिया बिल्डर की परियोजनाओं में हजारों फ्लैट खरीदार फंसे

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ग्रेटर नोएडा। दिवालिया बिल्डर की परियोजनाओं में हजारों लोग फंसे हुए हैं। वर्ष 2022 में नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने अजनारा इंडिया को दिवालिया घोषित किया। बिल्डर के दिवालिया घोषित होते ही अजनारा होम्स में निर्माण कार्य बिल्डर की ओर से बंद कर दिया।

ट्रिब्यूनल की ओर से परियोजना को पूरा करने के लिए नियुक्त आइआरपी (इंसोल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रफेशनल) के अनुसार अजनारा होम्स का डेवलपर एपीवी रियल्टी ने किया है। दिवालिया प्रक्रिया में अजनारा होम्स शामिल नहीं है। ऐसे में अजनारा होम्स के 2200 खरीदार एक बिल्डर की दो कंपनियों के बीच में फंसे हुए हैं। अजनारा होम्स परियोजना का विकासकर्ता एपीवी रियल्टी है।

इस वजह से सीआइआरपी में यह परियोजना शामिल नहीं है। सोसायटी में कई फ्लैट तैयार नहीं हुए हैं। बेसमेंट में पार्किंग तैयार नहीं है। जलभराव की समस्या यहां आम हो गई है। फ्लैटों की रजिस्ट्री लंबे समय से लंबित है। ऐसे में खरीदार एक बिल्डर की दो कंपनियों के बीच फंसे हुए हैं।

प्राधिकरण ने कहा- एनसीएलएटी में है मामला

निवासी दिनकर पांडेय ने आइजीआरएस पर शिकायत दर्ज कराई। अगस्त माह में प्राधिकरण की ओर जवाब दिया गया है बिल्डर पर प्राधिकरण का बकाया है और मामला एनसीएलएटी में है। एनसीएलएटी से निर्णय के बाद ही कोई कार्रवाई की जा सकेगी।

बिजली बिल में गड़बडी

निवासियों ने हर महीने बिजली बिल में लाखों रुपये का गबन करने का का आरोप भी सोसायटी प्रबंधन ने गड़बडी के भी आरोप लगाए हैं। निवासियों ने 8000 यूनिट का फिक्स चार्ज वसूलकर बिजली कंपनी को 2500 यूनिट का भुगतान प्रबंधन की ओर से किया जा रहा है। बिजली बिल में प्रबंधन की ओर से लाखों रुपये का हेरफेर किया जा रहा है।

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क्या बोले लोग?

आइआरपी की ओर से मेल पर अजनारा होम्स परियोजना को इंसोलवेंसी प्रक्रिया में नहीं बताया गया है। बिल्डर की ओर से दिवालिया होने का हवाला देते हुए कार्य नहीं कराए जा रहे हैं। अधूरी परियोजना में खरीदार रह रहे हैं। – चंदन सिन्हा

कोई हिसाब नहीं है। मीटर में कोई और फिगर है, नो ब्रोकरहुड में कुछ और, डी टेक में कुछ और। रोज बिजली का एक ही बिल अमाउंट आना हास्यास्पद है। अकाउंटिंग पर यह बड़े सवाल खड़ा करता है। हिसाब बहुत ही ज्यादा गड़बड़ है।   – भारतेंदु शेखर

एनपीसीएल जितनी यूनिट चार्ज करता है, और मेंटेनेंस जितना यूनिट लोगों को बेचती है इसकी जांच होनी चाहिए। हर महीने जैसी डिस्काउंट मिलता है वो भी निवासियों को नहीं मिलता उसकी भी जांच होनी चाहिए।

– पंकज राय

फिक्स्ड चार्ज 8000 से ज्यादा यूनिट का वसूलते हैं। एनपीसीएल को सिर्फ 2500 यूनिट का देते हैं। ये महीने का 6.5 लाख से अधिक का होता है। साथ ही डीजी मिनिमम यूज और फिक्स्ड चार्ज का लाखों रुपए लेकर छह वर्षों में करोड़ों का घोटाला हुआ है।    – दिनकर पांडेय

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