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कर्ज से परेशान युवा किसान ने किया Suicide, प्रशासन ने रिपोर्ट देने के बजाए अवैध संबंध बता रफादफा किया केस

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बांदा के लुकतारा में एक युवा किसान ने कर्ज के दबाव में आकर खुदकुशी कर ली. लेकिन प्रशासन ने मामले में रिपोर्ट देने के बजाय इसे अवैध संबंध का मामला करार दिया है. इससे क्षेत्र के लोगों में काफी रोष है. बताया जा रहा है कि किसान ने सूदखोरों और बैंक से करीब तीन लाख रुपये का कर्ज लिया था, इस बार उसकी फसल अच्छी थी. उम्मीद थी कि कर्ज भी चुक जाएगा और कुछ बचत भी होगी, लेकिन पूरी फसल आवारा पशु खा गए थे. इधर कर्जदारों ने रकम वापसी के लिए दबाव बनाने लगे थे. ऐसे में किसान ने अपने घर में फंदा लगा कर जान दे दी है.

जानकारी के मुताबिक देहात कोतवाली क्षेत्र में लुक तारा गांव निवासी युवा किसान पुष्पेंद्र यादव (22) के पिता की तीन साल पहले ही मौत हो चुकी है. चूंकि उन्हें कोई रोजगार नहीं है, और कोई जमा पूंजी भी नहीं है. ऐसे में वह खेती करके ही अपने व अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे. परिजनों ने बताया कि इस साल उन्होंने करीब तीन लाख रुपये का कर्ज लेकर खेती किया था. इसमें काफी पैसा बैंक का था. यह कर्ज फसल बेच कर वापस करनी थी. इस फसल भी अच्छी थी, सबको लग रहा था कि बड़े आरोप से पूरा कर्ज चुकाने के बाद भी कुछ पैसे बचेंगे. लेकिन आवारा पशुओं ने एक ही दिन में पूरी फसल चट कर दी. ऐसे हालात में पुष्पेंद्र बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने फांसी लगा ली.

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सूदखोरों ने दी थी जेल भिजवाने की धमकी

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परिजनों ने बताया कि फसल बर्बाद होने के बाद अपने पैसे वापसी के लिए सूदखोरों ने दबाव बढ़ा दिया था. उन्हें जेल भिजवाने तक की धमकी देने लगे थे. इधर बैंक ने भी नोटिस भेज दिया. चूंकि भविष्य में इतना बड़ा कर्ज वापसी के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. ऐसे में पुष्पेंद्र के सामने आत्महत्या ही एक मात्र विकल्प नजर आया. उन्होंने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी है.

प्रशासन ने बताया अवैध संबंध

मामला तूल पकड़ने पर मीडिया ने इस घटना के संबंध में प्रशासन से बात की. किसान के परिजनों को आर्थिक सहायता के संबंध में पूछा गया. लेकिन प्रशासन ने इस घटना को अवैध संबंध का मामला बताते हुए टाल दिया है. उधर, प्रधान व पूर्व ब्लाक प्रमुख अड्डू यादव ने बताया आर्थिक तंगी थी. इसी प्रकार बुंदेलखंड किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष विमल शर्मा ने भी कहा कि आर्थिक तंगी के चलते किसान ने आत्महत्या की है. बावजूद इसके प्रशासन किसान की मौत का मजाक बना रहा है.

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