Home अपराध Vikas Dubey Encounter Case : रिटायर्ड जज व पूर्व डीजीपी को सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी में को भी किया शामिल
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Vikas Dubey Encounter Case : रिटायर्ड जज व पूर्व डीजीपी को सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी में को भी किया शामिल

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लखनऊ सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कानपुर के दुर्दांत अपराधी विकास दुबे एनकाउंटर केस और बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित कमेटी का पुनर्गठन किया है। कोर्ट ने कमेटी में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रस्तावित नामों को मंजूरी देते हुए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएस चौहान और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता को शामिल किया है। जस्टिस बीएस चौहान को जांच समिति का प्रमुख बनाया गया है। हाई कोर्ट के पूर्व जज शशिकांत अग्रवाल पहले से कमेटी में हैं। यह जांच कमेटी एक सप्ताह में काम शुरू करेगी और दो महीने में यूपी सरकार और सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी।

बता दें कि दुर्दांत अपराधी विकास दुबे के मामले में सोमवार को चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान हैरानी जताते हुए कहा था कि ऐसे अपराधी जिस पर ढेरों केस हों उसे जमानत देना संस्थागत विफलता को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार से विकास दुबे के मामले से संबंधित सभी आदेश पेश करने को भी कहा थी। कोर्ट के निर्देश पर प्रदेश सरकार विकास दुबे मुठभेड़ कांड की जांच कर रही समिति में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज और पूर्व डीजीपी को शामिल करने पर राजी हो गई थी। बुधवार को सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार इस संबंध में समिति के पुनर्गठन की अधिसूचना का प्रारूप कोर्ट में पेश किया, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया।

विकास दुबे पर वर्षों से संगीन अपराधों के कई मामले चल रहे थे। उसे सितंबर 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट से सप्लाई इंस्पेक्टर से मारपीट के एक मामले में जमानत मिली थी। इसके अलावा हत्या के एक मामले में उम्र कैद की सजा होने के बाद भी उसे जमानत मिली थी। कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में उज्जैन से कानपुर लाने के दौरान भागने की कोशिश में वह पुलिस की गोली से मारा गया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं, जिनमें विकास दुबे और उसके साथियों के मुठभेड़ में मारे जाने की घटनाओं पर सवाल उठाए गए हैं। साथ ही मुठभेड़ कांड की जांच सीबीआई, एनआईए या कोर्ट की निगरानी में एसआईटी से कराए जाने की मांग की गई है।

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